ना दौलत से मिले, ना वो शोहरत से मिले
अज़ीज दोस्त तो सिर्फ़ मुहब्बत से मिले
पड़ा जो वक़्त तो साये की तरह साथ रहे
जैसे श्रीकृष्ण, अर्जुन को इबादत से मिले
मिलने भी आए मुझसे तो मक़सद उनका
अपनी ज़रूरत से नहीं,मेरी ज़रूरत से मिले
कई मज़बूरियाँ उलझन उन्हें भी थे लेकिन
सामना जब भी हुआ बहुत फ़ुर्सत से मिले
शुक्रिया कैसे करूं परवरदिगार मैं तेरा
मुझ नाचीज़ को मोती तेरी रहमत से मिले
दिनेशचंद शर्मा (चाँद भरतपुरी)
(2)आवारा बंजारा
तुम्हें याद दिलाने को फ़साने तो बहुत हैं
ताज़ा हैं अभी तक जो पुराने तो बहुत हैं
मर्ज़ी है ज़माने की, माने या न माने
माने तो मेरी बातों के माने तो बहुत हैं
कहीं टिक के नहीं रहता आवारा बंजारा
होने को ज़माने में ठिकाने तो बहुत हैं
जो तेरा सहारा है, तो हैं कितने सहारे
यूँ मौत के आने के बहाने तो बहुत हैं
दिनेशचंद शर्मा (चाँद भरतपुरी)
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