झरोखों से देखती हैं उनकी वो आंखें
कितनी खूबसूरत है उनकी वो आंखें।
दिल से धड़कनें भी आज फना हो गयीं,
देखी है जब से हसीन उनकी वो आंखें।
नीली गहरी समुंदर सी काजल लगी हुई,
कत्ल का सामान है उनकी वो आंखें।
हम देखना भी चाहें तो नजर फेर लेते हैं,
जाने क्यों हमसे खफा है उनकी वो आंखें।
इधर देखती हैं तो कभी उधर देखती हैं,
है कितनी बेचैन सी उनकी वो आंखें।
इक नमी सी है उनकी पलकों के आसपास,
शायद पानी से भीगी हैं उनकी वो आंखें।
खामोशी सी छाई है महफिल में गुमनाम,
लेकिन बहुत बोलती हैं उनकी वो आंखें।
-बृज मोहन सिंह बिष्ट
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