कोरोना के काल में बंद पड़े सब शौक,
हम रहे कढ़ाही में पड़े रहीं श्रीमती छौंक,
रहीं श्रीमती छौंक के कोई नहीं बचावै,
बाहर जावे की ज्यों सोचें सुज के आवैं,
बेहतर है अनुमान बनो तुम घर के वासी,
बीमारी से बचो मिले ताज़ी या बासी।
-आशीष शर्मा
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