शैशव मन बड़ा अद्भुद.
है कोरा पत्र सा
लिखे जाने को प्रस्तुत.
वक्त लिखता है कथा कुछ
चक्र घटना का भी चिन्हें छोड़ता कुछ.
कुछ कहानी पूर्वजों के मृत्यु,जीवन का.
कुछ कहानी अग्रजों के जय,पराजय का.
अत:
जिसे होता रहा उपहास का अहसास,
उपेक्षित जो रहा हरपल,
अन्तर्मुखी होता गया मानव
हमेशा भीड़ से
पलायन को प्रस्तुत
वह रहा योद्धा.
कि जिसने यातना के हर पलों को
खुद जिया,और
यातना ही यातना देखा किया हर क्षण
ऋणात्मक रुख करेगा.
यदि वह पा सका अवसर
बगावत को उठेगा
विद्रोह को वह हवा देगा.
कहीं दु:ख से घिरे समुदाय में हो
पीड़ा झेलकर व सोखकर आंसू
विवशता में यदि बढ़कर बड़ा हो.
सहेगा दु:ख,श्रमी होगा परन्तु,
आक्रोश उसके साथ पलता ही रहेगा
किन्तु,दया,करुणा,कृपा का पर्यायवाची
सहिष्णु होगा वह निश्चित
और सत्य के संग्राम को जीवित करेगा.
हारना या जितना कोई अर्थ का दावा न होगा.
यदि किसी राजकुल में पल गया तो
इंद्र की ही मानसिकता से सदा जलता रहेगा.
युद्ध में झोंका करेगा गुलामों की तरह
हर ही शाषित वर्ग को वह.
यदि 'जीवन के लिए’ विद्रोह के ही बीच जन्मा
विरोधों से ही उसने हर्फ़ सीखे
हरेक मानवीय संग्राम को प्रस्तुत रहेगा.
समर ही जिन्दगी का अर्थ वह करता रहेगा.
यदि अर्थ के गणित और समीकरण
विरासत में मिलेगा,ज्ञात है तो
कायरों की तरह भागते संघर्ष से हर,
वह विरासत बाँटता जीवित रहेगा.
अगर पहचान कर्मफल से वह पाता रहा तो
भला नेता,पुरोधा,सुधारक,श्रेष्ठ होगा.
प्रशंसा ही यदि जाता किया हो
उसके हर कथन का हर क्रिया का
कि वह उठता है अथवा बैठता है
बुरे में एवम् भले में
डर है कि
अंतर कर सकेगा.
बढ़ावा जो कहीं पाता रहा हो
बड़े विश्वास से वह खड़ा होगा.
बढ़ेगी क्षमता हर संघर्ष की तब
नयापन कार्य हर में सदा प्रारंभ होगा.
यदि वह न्याय करना जानता है
उसे है ज्ञात कि अन्याय क्या है
बहुत नजदीक से बर्बाद होते
और रोते व सिसकते
सत्य को देखा किया है.
जो पाता प्यार दुनिया में सभी से
पला यदि मित्रता के बीच है वह
यदि देखा किया उसने सदा कि
कैसे लोग लोगों को स्वीकृति दे गये हैं.
कि कैसे स्नेह को वह बांटते हैं
बांचते हैं,सांचते हैं
बड़ा इन्सान होगा.
आशय उसका महान होगा.
अंतर्राष्ट्रीयता की बातें कर सकेगा.
यदि अपराध करते देखते है
पला वह मुफ्तखोरी में सदा यह जानिए.
सिखाता है नहीं अपराध करना
यह गरीबी वह गरीबी
इतना तो बन्धु मानिये.
यदि देह ने अन्याय झेला
और मन इस देह पर अन्याय को
अस्वीकार कर दे, युगपुरुष होगा.
युग बदलने को दृढ़ तथा प्रतिबद्ध होगा.
संकल्प लेने हाथ में जल ले न लेवे
संकल्प उसके हाथ में अस्तित्व होगा.
छिद्रान्वेषी लोग जो भी हो गये हैं
ईर्ष्या,द्वेष में पलते रहे हैं.
सराहेगा तो केवल एक केवल
सराहा ही गया जो जिन्दगी में.
अस्वीकृति के सिवा जो कुछ न पाया
उद्दण्डता के सिवा क्या जान सकता.
अस्वीकार में ही सुख सदा है देख सकता.
कि जिनके माँ-पिता हैं सौम्य,संस्कृत
सभ्य,परिष्कृत
अनुशासन-प्रिय सभी सन्तान होंगे.
वहाँ से सीखकर वह वैर आया
प्रशस्ति पा सका न
स्वीकृति पा सका न
अहम एवम् रहा हावी सदा ही.
अगर छेड़ी गयी हैं भावनाएं
दैहिक,देव-दत्त या कि भौतिक,आध्यात्मिक
तो होगी आस्था खण्डित तुरत ही.
जिसे अहसास होगा गहन पीड़ा मानवों के
कहीं गाँधी,कहीं गौतम,कहीं सुकरात होगा.
सत्य ये भी है ये जानिए कि
शिक्षा है बदलता आत्म-मन आदमी का.
आत्म मंथन गहन को
प्रेरित करे, हर ग्रहण से राहू हटाता.
और अशिक्षा आत्म हनन कर
स्वार्थ को परमार्थ से उपर उठाता.
जीवन जगत में परमार्थ ही है स्वार्थ.
आत्मोप्निषद् यह जानिए जी.
अरुण कुमार प्रसाद
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