"सदियाँ दर सदियाँ बीत गयीं,
हमारी हालत बद से बदतर हो गयी;
कहने को तो सरकार हमारी है,
लेकिन यह बात बस फाइलों में जारी है;
हमारे भले को नित नए नियम बनते हैं,
लेकिन वो धरातल पर कम ही दिखते हैं;
हम विकास के मूक नायक कहे जाते हैं;
उद्योग धंधे हमारे दम पर फलते-फूलते हैं;
भवनों की गगनचुंबी हम ही बनाते हैं;
खेती किसानी में हमारे ही पसीने बहते हैं;
हर बड़े कार्य की नींव हम ही होते हैं;
लेकिन यह भी है कि.......
हम ही सबसे ज्यादा परेशानी सहते हैं;
हर ओर से दुत्कारे जाते हैं;
पाई-पाई को मोहताज रहते हैं;
खुले आसमां के नीचे रात बिताते हैं;
अक्सर भूखे पेट सो जाते हैं;
हर ओर से लाचार रहते हैं;
लेकिन फिर भी मुस्कुराते हैं..
खुद तप कर देश व समाज को कुंदन बनाते हैं;
हम मजदूर हैं साहब.....
जो मूक नायक कहे जाते हैं!!"
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