बेटी की अस्मत लूट रहे कुछ राक्षस ,पर ....
हम तो अभी तौलेंगे इसे जाति पाति के पलड़े पर ।।
कोई तो इन्हें बताए ,कोई इनको समझाए ।
राक्षस की कोई जाति नही पर कौन इन्हें बतलाए ।।
बेटी, बहन और माँ ये दया और करुणा की मूर्ति है ।
प्रतिफल की तू प्रतीक्षा कर, ये काली और दुर्गा की मूर्ति हैं ।।
दावानल सी दहक रही ,रुक जा रुक जा ,मैं आती हुँ ।
करने को तेरा अंत अभी ,काली का रूप बनाती हुँ ।।
अब तो ना धृतराष्ट्र बनो ,ना करो प्रतीक्षा बारी का पर ।
हम तो अभी तौलेंगे इसे ,जाति पाति के पलड़े पर ।।
अनुनय विनय करू मैं ,लोकतंत्र के चारो स्तम्भों से ।
कुछ करो कि बच जाए सभी प्यारी बेटी,इन राक्षस और दरिंदों से ।।
जिस ओर नज़र जाए मेरी ,पाऊँ कौरव के सभाकक्ष,पर......
बेटी की अस्मत लूट रहे कुछ राक्षस, पर.....
। निःशब्द ।
- आनन्द तिवारी, वाराणसी
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