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ब्रजभाषा विशेष: घनानन्द की कविता का मुल्यांकन वही कर सकता है जो बहुत बड़ा प्रेमी हो

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अगर कोई व्यक्ति आपके शहर या देश का ना भी हो लेकिन अगर वह आपकी भाषा बोल रहा हो तो उससे वही अपनापन महसूस होगा जो अपने प्रदेश के किसी व्यक्ति से महसूस होता है। इस प्रकार भाषा भूगोल की सभी सीमाओं को मिटाते हुए अपनाईयत के रिश्ते स्थापित करती है।

रीतिकाल के रीतिमुक्त कवि घनानंद ब्रज भाषा में अपनी काव्य रचनाओं के कारण ब्रज के क्षेत्र से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। घनानंद का जन्म दिल्ली या आस-पास ही माना जाता है लेकिन दिल्ली ब्रज से यूं भी बहुत दूर नहीं है और बोली स्थान-विशेष की मोहताज नहीं होती। अपनी रचनाओं की विशिष्टताओं के कारण घनानंद ब्रज क्षेत्र से सीधे संबंधित ना होकर भी ब्रज के एक महत्वपूर्ण कवि हैं।

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कला हमेशा ही प्रेम का आलिंगन करना चाहती है

4 वर्ष पहले

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