'मिर्जापुर वेब सिरीज' के वकील साहब रमाकांत पंडित (अभिनेता- राजेश तैलंग) को फिल्मी किरदार में देखकर उनकी अदाकारी का अंदाजा तो सहज लग ही गया था, लेकिन जब उनसे मुलाकात हुई तब पता चला कि सिनेमा में सच्चाई और ईमानदारी जैसे मूल्यों के लिए लड़ने वाले एक जिम्मेदार बाप की भूमिका निभाने वाले इस कलाकार की आत्मा प्रेम के रंगों में भीगी हुई है, जो छनकर उनकी कविताओं में सामने आती है।
डायरी लिखता था ,
अपने लिए लिखता था,
लिखना ही मुक़म्मल था,
पढ़ने के लिए न थी वो,
कविता छपने के लिए नहीं लिखता,
तेरे लिए लिखता हूँ,
तू पढ़ ले,
मुक़म्मल हो जाएगी।
अमर उजाला काव्य कैफे के सेट पर जब उनसे मुलाकात हुई और बतकही की शुरुआत ही उन्होंने इस बात से की कि- मैं तो कोई कवि नहीं हूं, अभिनेता लेकिन बचपन में डायरी लिखा करता था। कुछ समय बाद डायरी लेखन बंद हो गया लेकिन कविताएं लिखने लगा और सिर्फ प्रेम कविताएं ही लिखीं।
राजेश तैलंग अपनी रचनात्मकता में प्रेम का अलग दृष्टिकोण लिए उपस्थित होते हैं और कहते हैं कि प्रेम से बड़ी कोई क्रांति नहीं है और जिस क्रांति में प्रेम ना हो उस क्रांति का क्या मतलब?
आज चुप हैं अल्फाज़,
बस ख़याल चीख़ रहे हैं,
आज कोरा कागज़ है,
सिर्फ कलम घसीट रहे हैं,
कविता डेट पे नहीं आई,
और हम टेबल कुरेद रहे हैं।
प्रेम इस जगत् के लिए अनुपम उपलब्धि है। प्रेम है तो जीवन है, प्रेम की अनुपस्थिति में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मनोभावों की क्रमिक अवस्था में भी प्रेम सर्वोपरि भाव है। असल में प्रेम एक ऐसी अुनुभूति है, जो चित्त को ऊंचाई देती है।
कहानी में एक आदि होता है,
कहानी में एक मध्य होता है,
कहानी में एक अंत होता है,
और जो तेरे मेरे मध्य होता है,
वही तो कविता का असल छन्द होता है।
अपनी रचनात्मक यात्रा पर चर्चा करते हुए राजेश बताते हैं कि शुरुआत में तो किसी व्यक्ति विशेष के लिए कविताएं लिखीं, लेकिन एक समय ऐसा आता है जब वह व्यक्ति भी कोई विचार बन जाता है। कारण कि आपको कभी भी किसी का संपूर्ण नहीं मिल पाता और ना ही आप संपूर्ण किसी को दे पाते हैं, इसलिए आप उस रोमांटिक एहसासों को अल्फ़ाज़ देने लग जाते हैं। ऐसे में हर कोई अपने लिए कुछ न कुछ पा सकता है। उनकी कविताओं में प्रेमाभिव्यक्ति देखिए-
सिक्का-सिक्का जमा करते जाना है दस्तूर,
प्यार एक मिट्टी की गुल्लक,
यूँ तो एक पैसा भी चुराना मुश्किल है इसमें से,
और वैसे चाहो तो एक पल में तोड़ दो इसे,
गुल्लक बड़ी नाजुक होती है,
मजबूत होता है ना तोड़ने का वादा इसे,
महफूज़ रखता है जो कच्ची गुल्लक को।
महबूब से मुलाकातें जब बंद हो जाती हैं तब भी उनसे कविताओं में मिला जा सकता है। आम चलन में हमने किसी तारीख़ों में मिलना, इज़हार करना शुरू कर दिया है मसलन वैलेंटाइन डे, प्रेम सप्ताह इत्यादि। राजेश जी कहते हैं कि यह सब मार्केटिंग है जबकि प्रेम इन सबसे मुक्त है। इश्क़ किसी तारीख़ का मोहताज़ नहीं।
अच्छे थे कड़की के दिन,
खिड़की के दिन,
उस लड़की के दिन।
प्रेम को कविताओं में व्यक्त करने के लिए बतौर कवि राजेश तैलंग की कहन शैली आम चलन के एकदम विपरीत है। उनकी शैली इश्क़ के एहसासों को अभिव्यक्त करने के स्थापित मानदंडों से अलग है। राजेश जी अपनी कविताओं में चांद-तारों, बादल, पहाड़, मौसम, बारिश जैसे बिंबों का बहुत कम इस्तेमाल करते हैं और बोलचाल में प्रयोग होने वाली भाषा का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं।
मेरी कविताएँ मत फाड़ना,
ये दस्तावेज़ हैं इतिहास का,
इन्हीं से तो जानेंगे आने वाले लोग,
तेरी सुन्दरता और मेरा पागलपन।।
यही कारण है कि उनकी कविताओं में ख़यालों, विचारों का ताजापन साफ झलकता है। बिंबों के प्रयोग पर उनका मानना है कि आज हम उत्तर आधुनिक दौर में प्रवेश कर चुके हैं जहां संदेशों के आदान प्रदान के लिए उच्च कोटि के तकनीकों मसलन इंटरनेट, मोबाइल इत्यादि से लैस हैं, ऐसे में इन्हें बतौर बिंब इस्तेमाल करना जायज़ होगा।
मैं हवा में तैरती अफ़वाह नहीं,
चार लोग जो करते हैं वो अफ़वाह नहीं,
अकेलेपन की चुप्पी में ख़यालात की चीटियाँ,
रसोईं से चुराया चीनी का दाना,
किनारे रख कर, रुक कर,
जो आपस में बतियाती हैं,
मेरे शख़्सियत का असल जि़क्र करती है,
मैंने कई बार सुना है,
उन्हें अकेले में फुसफुसाते हुए।
मानव जीवन का लंबा इतिहास रहा है। इस इतिहास की सबसे दिलचस्प कहानी यह रही है कि मनुष्य एक-दूसरे के साथ रहने का कोई तरीका अभी तक विकसित नहीं कर पाया है। इसलिए साथ रहते हुए कड़वाहटें होती हैं और राजेश तैलंग कहते हैं कि रिश्तों को निभाना भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है, इसलिए उन्हें कभी भी किसी खास तरह के आदर्शों से दबाना नहीं चाहिए। किसी रिश्ते को आदर्शों के बोझ से दबाना उस रिश्ते को मारने की शुरुआत है।
अगर मेरा बस चलता,
एक शब्द ना होता,
इस कविता में तेरे सामने,
चुप बैठा रहता मैं,
अगर बस चलता,
तैरी धड़कनों को सुनता,
और मेरे धड़कनों के,
बीच की बढ़ती चुप्पी,
सुना देते मैं,
अगर मेरा बस चलता,
कविता कभी न लिखता मैं।।
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