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मुनीर की शायरी में जज़्बे को ज़बान देने का अमल है- शीन काफ़ निज़ाम

मुनीर की शायरी में जज़्बे को ज़बान देने का अमल है- शीन काफ़ निज़ाम
                
                                                         
                            मशहूर शायर शीन काफ़ निज़ाम लिखते हैं कि मुनीर की शायरी में बनावट और बुनावट नहीं, सीधे-सीधे अहसास को अल्फ़ाज और ज़ज़्बे को ज़बान देने का अमल है। उनकी शायरी का ग्राफ बाहर से अंदर और अंदर से अंदर की तरफ है। एक ऐसी तलाश जो परेशान भी करती है और प्राप्य पर हैरान भी, जो हर सच्चे और अच्छे शायर का मुकद्दर है। 
                                                                 
                            

इक तेज़ तीर था कि लगा और निकल गया 
मारी जो चीख़ रेल ने जंगल दहल गया 

सोया हुआ था शहर किसी साँप की तरह 
मैं देखता ही रह गया और चाँद ढल गया 
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4 वर्ष पहले

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