अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
हसरतों का हो गया है इस क़दर दिल में हुजूम
सांस रस्ता ढूंढ़ती है आने जाने के लिए
- जिगर जालंधरी
कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
शाम से सुब्ह हुई सुब्ह से फिर शाम हुई
- शाद अज़ीमाबादी
आज उस से मैं ने शिकवा किया था शरारतन
किस को ख़बर थी इतना बुरा मान जाएगा
- फ़ना निज़ामी कानपुरी
वो क्या मंज़िल जहां से रास्ते आगे निकल जाएं
सो अब फिर इक सफ़र का सिलसिला करना पड़ेगा
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
काव्य डेस्क, नई दिल्ली
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