इश्क़ में नाराज होना या ख़फ़ा होना भी एक अदा है, आशिक़ और माशूक़ के बीच इन अदाओं का खेल होता रहता है। कई बार यह खूबसूरत एहसासों का रूप लिए आता है तो कई बार यह नाराज़गी भारी हो जा जाती है। आम जीवन में भी नाराज़गी निहायत इंसानी हरक़त है। शायर नाराज़गी के उन हर पहलुओं को अपने ढंग से देखता है और उसे लफ़्ज़ देता है। पेश है ख़फ़ा होने पर शायरों के अल्फ़ाज़-
हमारे दिल न देने पर ख़फ़ा हो
लुटाते हो तुम्हीं ख़ैरात कितनी
- नूह नारवी
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
-अज्ञात
ख़फ़ा तुम से हो कर ख़फ़ा तुम को कर के
मज़ाक़-ए-हुनर कुछ फ़ुज़ूँ चाहता हूँ
- इशरत अनवर
छेड़ मत हर दम न आईना दिखा
अपनी सूरत से ख़फ़ा बैठे हैं हम
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़ुदाई को भी हम न ख़ुश रख सके
ख़ुदा भी ख़फ़ा का ख़फ़ा रह गया
- गौहर होशियारपुरी
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझसे,
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझसे
-अज्ञात
इश्क़ में तहज़ीब के हैं और ही कुछ फ़लसफ़े
तुझ से हो कर हम ख़फ़ा ख़ुद से ख़फ़ा रहने लगे
- आलम ख़ुर्शीद
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है
- जिगर मुरादाबादी
वो आए थे मेरा दुख-दर्द बाँटने के लिए,
मुझे खुश देखा तो ख़फ़ा होकर चल दिये
-अज्ञात
नाराज़गी न हो तो मोहब्बत है बे-मज़ा
हस्ती ख़ुशी भी ग़म भी है नफ़रत भी प्यार भी
- जामी रुदौलवी
जिस की हवस के वास्ते दुनिया हुई अज़ीज़
वापस हुए तो उसकी मोहब्बत ख़फ़ा मिली
- साक़ी फ़ारुक़ी
वो दिल न रहा जा नाज़ उठाऊँ
मैं भी हूँ ख़फ़ा जो वो ख़फ़ा है
- इमदाद अली बहर
एक ही फ़न तो हम ने सीखा है
जिस से मिलिए उसे ख़फ़ा कीजे
- जौन एलिया
क्या कहूँ क्या है मेरे दिल की ख़ुशी
तुम चले जाओगे ख़फ़ा हो कर
- हसन बरेलवी
हुस्न यूँ इश्क़ से नाराज़ है अब
फूल ख़ुश्बू से ख़फ़ा हो जैसे
- इफ़्तिख़ार आज़मी
कभी बोलना वो ख़फ़ा ख़फ़ा कभी बैठना वो जुदा जुदा
वो ज़माना नाज़ ओ नियाज़ का तुम्हें याद हो कि न याद हो
- ज़हीर देहलवी
अब तो हर शहर में उसके ही क़सीदे पढ़िए
वो जो पहले ही ख़फ़ा है वो ख़फ़ा और सही
- जमीलुद्दीन आली
लेक मैं ओढूँ बिछाऊँ या लपेटूँ क्या करूँ
रूखी फीकी ऐसी सूखी मेहरबानी आप की
- इंशा अल्लाह ख़ान
मुझको हसरत कि हक़ीक़त में न देखा उसको
उसको नाराज़गी क्यूँ ख़्वाब में देखा था मुझे
- शोहरत बुख़ारी
मैं ने रो कर गुज़ार दी ऐ अब्र
जैसे तू ने बरस के काटी है
- मुज़्तर ख़ैराबादी
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4 years ago
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