देश की आबादी का बड़ा हिस्सा गावों में रहता है और खेती ही उसकी आजीविका का साधन है। लेकिन अब वह सूखे की मार बेहाल है। रोज़मर्रा की ज़रूरतों ने लोगों को इस कदर मजबूर किया है कि लोग शहरों की तरफ भी भागे चले आ रहे हैं। किसानों पर राजनीति तो सभी दल करते हैं लेकिन हर सरकार में वो पीड़ित रहता है। गांव से शहर जिस उम्मीद में आता वो तो नहीं मिलता, उपेक्षा ज़रूर मिलती है। पेश है ग्रामीण जीवन और खेती-किसानी पर कुछ चुनिंदा शेर-
मत मारो गोलियों से मुझे मैं पहले से एक दुखी इंसान हूँ,
मेरी मौत कि वजह यही हैं कि मैं पेशे से एक किसान हूँ
चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें
चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम को
-अदम गोंडवी
नैनों में था रास्ता, हृदय में था गांव
हुई न पूरी यात्रा, छलनी हो गए पांव
-निदा फ़ाज़ली
एक बार आकर देख कैसा, ह्रदय विदारक मंजर हैं,
पसलियों से लग गयी हैं आंतें, खेत अभी भी बंजर हैं
ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हमको
गांव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैं
-बेदिल हैदरी
जो मेरे गांव के खेतों में...
जो मेरे गांव के खेतों में भूख उगने लगी
मेरे किसानों ने शहरों में नौकरी कर ली
-आरिफ़ शफ़ीक़
धान के खेतों का सब सोना किस ने चुराया कौन कहे
बे-मौसम बे-फ़स्ल अभी तक इस इज़हार की धरती है
- हकीम मंज़ूर
सुना है उसने खरीद लिया है करोड़ों का घर शहर में
मगर आंगन दिखाने आज भी वो बच्चों को गांव लाता है
-अज्ञात
अब कहाँ वो मुलाकात करते हैं
किसानों से अब कहाँ वो मुलाकात करते हैं,
बस ऱोज नये ख्वाबों की बात करते हैं
खींच लाता है गांव में बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद,
लस्सी, गुड़ के साथ बाजरे की रोटी का स्वाद
- डॉ सुलक्षणा अहलावत
वो जो पिछले साल सब खेतों को सोना दे गया
अब के वो तूफ़ान किस किस का मकाँ ले जाएगा
- क़मर जलालाबादी
शहरों में कहां मिलता है...
शहरों में कहां मिलता है वो सुकून जो गांव में था,
जो मां की गोदी और नीम पीपल की छांव में था
-डॉ सुलक्षणा अहलावत
आप आएं तो कभी गांव की चौपालों में
मैं रहूं या न रहूं, भूख मेजबां होगी
-अदम गोंडवी
यूं खुद की लाश अपने कांधे पर उठाये हैं
ऐ शहर के वाशिंदों ! हम गाँव से आये हैं
-अदम गोंडवी
आप आएं तो कभी गाँव की चौपालों में
मैं रहूँ या न रहूँ, भूख मेजबां होगी
-अदम गोंडवी
चीनी नहीं है घर में, लो, मेहमान आ गये
मंहगाई की भट्ठी पे शराफत उबाल दो
-अदम गोंडवी
घर के ठंडे चूल्हे पर खाली पतीली है
बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है
-अदम गोंडवी
मेरे खेत की मिट्टी से पलता है
मेरे ख़तों को जलाने से कुछ नहीं होगा
हवा में राख उड़ाने से कुछ नहीं होगा
- सीमा शर्मा मेरठी
गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा
एक ही रंग है दुनिया को जिधर से देखा
- असअ'द बदायुनी
मेरे खेत की मिट्टी से पलता है तेरे शहर का पेट
मेरा नादान गांव अब भी उलझा है किश्तों में
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खेत अभी भी बंजर हैं
4 years ago
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