अल्ताफ़ हुसैन हाली उर्दू अदब के बड़े नामों में से एक हैं और उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब की जीवनी 'यादगार-ए-ग़ालिब भी लिखी हैं। पेश हैं हाली के लिखे ये बड़े शेर
आगे बढ़े न क़िस्सा-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम
सब कुछ कहा मगर न खुले राज़-दाँ से हम
बहुत जी ख़ुश हुआ 'हाली' से मिल कर
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जहाँ में
चोर है दिल में कुछ न कुछ यारो
नींद फिर रात भर न आई आज
दरिया को अपनी मौज की तुग़्यानियों से काम
कश्ती किसी की पार हो या दरमियाँ रहे
दिखाना पड़ेगा मुझे ज़ख़्म-ए-दिल
अगर तीर उस का ख़ता हो गया
दिल से ख़याल-ए-दोस्त भुलाया न जाएगा
सीने में दाग़ है कि मिटाया न जाएगा
फ़राग़त से दुनिया में हर दम न बैठो
अगर चाहते हो फ़राग़त ज़ियादा
फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना
मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा
इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद
ख़ुद-बख़ुद दिल में है इक शख़्स समाया जाता
कहते हैं जिस को जन्नत वो इक झलक है तेरी
सब वाइज़ों की बाक़ी रंगीं-बयानियाँ हैं
क्यूँ बढ़ाते हो इख़्तिलात बहुत
हम को ताक़त नहीं जुदाई की
क़लक़ और दिल में सिवा हो गया
दिलासा तुम्हारा बला हो गया
तुम ऐसे कौन ख़ुदा हो कि उम्र भर तुम से
उमीद भी न रखूँ ना-उमीद भी न रहूँ
तुम को हज़ार शर्म सही मुझ को लाख ज़ब्त
उल्फ़त वो राज़ है कि छुपाया न जाएगा
उस के जाते ही ये क्या हो गई घर की सूरत
न वो दीवार की सूरत है न दर की सूरत
है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ
अब ठहरती है देखिए जा कर नज़र कहाँ
हम जिस पे मर रहे हैं वो है बात ही कुछ और
आलम में तुझ से लाख सही तू मगर कहाँ
हम ने अव्वल से पढ़ी है ये किताब आख़िर तक
हम से पूछे कोई होती है मोहब्बत कैसी
मुझे कल के वादे पे करते हैं रुख़्सत
कोई वादा पूरा हुआ चाहता है
सदा एक ही रुख़ नहीं नाव चलती
चलो तुम उधर को हवा हो जिधर की
आगे पढ़ें
चोर है दिल में
7 months ago
कमेंट
कमेंट X