'हिंदी हैं हम' शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- 'छागल'। इस शब्द को कई अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है। मसलन, पैरों में पहनने वाले विशेष आभूषण के अर्थ में और पानी भरने वाले मशक के अर्थ में। बंगाल में 'छागल' का अर्थ है बकरा। इस शब्द पर आज आपके लिए प्रस्तुत है हिंदी के सुप्रसिद्ध गीतकार बु्द्धिनाथ मिश्र की रचना- चांद। यह एक प्रेमगीत है और इस गीत में 'छागल' शब्द का प्रयोग पायल के अर्थ में किया गया है।
चाँद उगे चले आना
पिया, कोई जाने ना।
दूँगी तुझे नजराना
पिया, कोई जाने ना।
जाग रही चौखट की साँकल
जाग रही पनघट पर छागल
सो जाएँ जब घाट नदी के
तुम चुपके से आना
पिया, कोई जाने ना।
सोना देंगे, चाँदी देंगे
पल भर में सदियाँ जी लेंगे
छूटेगा कजरा, टूटेगा गजरा
पूछेगा सारा जमाना
पिया,कोई जाने ना।
पँखुरी-पँखुरी ओस नहाए
पोर-पोर बंसी लहराए
तू गोकुल है मेरे मन का
मैं तेरी बरसाना
पिया, कोई जाने ना।
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2 years ago
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