गाथा यह शक्ति सन्तुलन की
यह पाप पुण्य का निर्णय भी
यह कथा मोह की , बन्धन की
सौ बार शांति के पक्षधरों ने बात यही दोहराई
अब तो बस कर मेरे भाई
शांति बड़ी है किंतु बताओ मूल्य शांति का क्या हो
अधिकार सदा वंचना सहे , और लोभ की सदा जय हो
और युद्ध नही केवल वह ही जो होते कुरुक्षेत्रों में
युद्धों की नींव रखी धृतराष्ट्रों के मूंदे नेत्रों में
इस महासमर का शिलान्यास शकुनि के ही जैसों ने
कुरुओं की राजसभाओं में , द्रौपदियों के केशों ने
कृष्ण न्याय है यही के सबको मिलती करम कमाई
अब तो बस कर मेरे भाई
यह प्रतिहिंसक था कर्ण के जिसके काम चढ़ा कांधे पर
और क्रोध नशे का रूप धरे बैठा दुर्योधन सर पर
यह अंहकार , धृतराष्ट्र बना बैठा था सिंहासन पर
और लोभ वहीं पर जहां द्रोण बैठे थे कुछ सकुचाकर
यह मोह उपस्थित स्वयं पितामह बनकर शीश झुकाकर
यह काम क्रोध मद लोभ मोह थे पांचों उच्च शिखर पर
रो रो कर द्रुपद सुता शैतानों को देती रही दुहाई
अब तो बस कर मेरे भाई
यह स्वप्न शांति का सिर्फ एक की आंखों में पलने से
है शांति नही सम्भव दूजे के हिंसा में जलने से
औचित्य विचारों युद्धों का , पर प्रथम धर्म भी जानो
युद्धों से मूल्य सुरक्षित हो तो वही धर्म है मानो
यह शांति युद्ध था पृथ्वी पर साधारण युद्ध नही था
केशव नामक वो जग सारथि तो धर्म विरुद्ध नही था
संधिपत्र लेकर बैरंग लौटे थे कुँवर कन्हाई
अब तो बस कर मेरे भाई
प्रतिउत्तर न हो तो राजा को धरती हीन करेंगे
इनके वंशज फिर से नारी को वस्त्रविहीन करेंगे
आदेश चक्रधारी का , पापों की वंशावली खँगालो
हे अर्जुन , बन्धु बांधवों के आचरणों को मथ डालो
हिंसा से बचते हो लेकिन हिंसा क्या है ये जानो
यदि सही व्यक्ति भी गलत पक्ष में खड़ा , गलत ही मानो
जिन पैरों में फटती केवल जाने वही बिवाई
अब तो बस कर मेरे भाई
है धर्म वही जिसमे शस्त्रों से निर्बल सरंक्षित हो
है धर्म वही जिसमे दीनों , दुखियों का सबका हित हो
है धर्म वही जिसको धारण करने में सात्विकता हो
है धर्म वही पर जहाँ सत्य सौ प्रतिशत प्रायिकता हो
जब कर्म विचार तंतु अपृथक हों आपस मे जुड़ जाएं
श्रेष्ठ विचार , सर्वश्रेष्ठ कर्म जुड़कर ही धर्म कहाये
केशव ने गीता में अर्जुन को बात यही समझाई
अब तो बस कर मेरे भाई
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