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ओम निश्चल की रचना: देखो देखो बसंत कैसा खिल आया!

कविता
                
                                                                                 
                            बिलम-बिलम जाए मन
                                                                                                

वन्य वीथियों में
मक्खनी सुचिक्कन सी
शब्द-वीथियों में।

एक छुवन भर देती 
फागुन की सिहरन
प्राण फूंक देती है
रह-रह कर चितवन
भर जाती है मिठास
प्रचुर लीचियों में।

देखो देखो बसंत 
कैसा खिल आया
सरसों सा प्रिय का 
हिय जैसे पियराया
बल्ब जल उठे कितने
सजल दीठियों में। आगे पढ़ें

1 month ago

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