कोई बात नहीं है फिर भी सहमी डरी तुम्हारी आँखें
पिछले कई दिनों से अक्सर देखीं भरी तुम्हारी आँखें
जैसे कोई नदी कैद हो बाहर बहना चाह रही हो
तुम कुछ कहना चाह रही हो ?
बहुत दिनों से दिखी न मुझको पहले सी मुस्कान तुम्हारी
जाने किस उलझन में उलझी यह नन्ही सी जान तुम्हारी!
आखिर क्यों सब तुम्हीं अकेले दम पर सहना चाह रही हो
तुम कुछ कहना चाह रही हो ?
तुम जो छुपा रही हो मुझसे मैं उससे अनजान नहीं हूँ
यह घटना तो घटनी ही थी इसीलिये हैरान नहीं हूँ
मैं पत्थर हूँ लेकिन तुम हीरे का गहना चाह रही हो
तुम कुछ कहना चाह रही हो ?
जाओ पंथ निहार रहा है कोई राजकुमार तुम्हारा
मैं खुशकिस्मत था जो पाया कुछ घडि़यों का प्यार तुम्हारा
मैं क्या ही बोलूँ जब तुम केवल चुप रहना चाह रही हो
तुम कुछ कहना चाह रही हो ?
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