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गोपालदास 'नीरज' की कविता- अब तुम्हारा प्यार भी

गोपालदास 'नीरज'
                
                                                                                 
                            अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !
                                                                                                

चाहता था जब हृदय बनना तुम्हारा ही पुजारी,
छीनकर सर्वस्व मेरा तब कहा तुमने भिखारी,
आँसुओं से रात दिन मैंने चरण धोये तुम्हारे,
पर न भीगी एक क्षण भी चिर निठुर चितवन तुम्हारी,
जब तरस कर आज पूजा-भावना ही मर चुकी है,
तुम चलीं मुझको दिखाने भावमय संसार प्रेयसि !
अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसि !
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2 months ago

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