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दुष्यंत कुमार की कविता: मैं फिर जनम लूँगा फिर मैं इसी जगह आऊँगा

दुष्यंत कुमार की कविता
                
                                                                                 
                            मैं फिर जनम लूँगा 
                                                                                                

फिर मैं 
इसी जगह आऊँगा 
उचटती निगाहों की भीड़ में 
अभावों के बीच 
लोगों की क्षत-विक्षत पीठ सहलाऊँगा 

लँगड़ाकर चलते हुए पावों को 
कंधा दूँगा 
गिरी हुई पद-मर्दित पराजित विवशता को 
बाँहों में उठाऊँगा । 
मैं फिर जनम लूँगा 
फिर मैं 
इसी जगह आऊँगा... आगे पढ़ें

1 month ago

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