आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

दिनेश देवघरिया की कविता- सरकारी दफ़्तर का हाल और कविताओं का कमाल

दिनेश देवघरिया
                
                                                                                 
                            इक्कीस दिनों से
                                                                                                

पिताजी के पेंशन की फ़ाइल
सरकारी दफ्तर की
धूल फाँक रही थी।
मैं रोज पिताजी के साथ
दफतर के चक्कर
काट रहा था
पर बात नहीं बन पा रही थी।
“आज बड़े बाबू नहीं
आए हैं
तो आज कर्मचारी
छुट्टी पर हैं,
हो जाएगा
किस बात की इतनी
हड़बड़ है।”
मैं समझ गया
यहाँ कुछ और ही गड़बड़ है।
  आगे पढ़ें

2 months ago

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही