आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

दीनदयाल उपाध्याय की बाल कविता- ताक धिना-धिन

प्रतीकात्मक तस्वीर
                
                                                                                 
                            ताक धिना-धिन, ता-ता धिन-धिन!
                                                                                                

किरनें लाईं सोने से दिन!
चिड़िया चहकी
फर-फर फड़की,
हवा बह उठी
हल्की-हल्की,
सरसर सरकी छन-छन, छिन-छिन!
किरनें लाईं सोने से दिन!
धरती जागी
कलियाँ जागीं,
सोई सभी
तितलियाँ जागीं,
फूल खिले बगिया में अनगिन!
किरनें लाईं सोने से दिन!
जगी किताबें
जगे मदरसे,
बड़ी दूर जाना है
घर से,
उठ ले, उठकर तू गिनती गिन!
किरनें लाईं सोने से दिन!

2 months ago

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही