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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला: सखि, वसंत आया

कविता
                
                                                                                 
                            सखि, वसंत आया। 
                                                                                                

भरा हर्ष वन के मन, 
नवोत्कर्ष छाया। 

किसलय-वसना नव-वय-लतिका 
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका, 
मधुप-वृंद बंदी— 
पिक-स्वर नभ सरसाया।  आगे पढ़ें

1 month ago

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😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
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