एक दिन और गाँठ के आगे का, खुला हुआ कोमलता में एक और पंखुरी उज्ज्वलता में एक और क्षण, परिपक्वता में एक और भराव- एक दिन और फिर उसका, उसी का जैसे दिन की शिला पर उत्कीर्ण हो सिर्फ़ उसका हरा-भरा नाम घास से।
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