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Hasya-Vyangya: वेदप्रकाश वेद की कविता- हँसी खेल नहीं है

हास्य
                
                                                                                 
                            

लड़का 


लड़की के चक्कर में 
रोज़ाना छह मील से आता था, 
उसे छेड़ता था और एक ही गाना गाता था— 
तेरे घर के सामने एक घर बनाऊँगा। 
तेरे घर के सामने एक घर बनाऊँगा। 

लड़की को ये बातें 
बिल्कुल भी नहीं पचती थीं, 
वो ऐसी-वैसी बातों से बचती , 
सो मरती क्या न करती 
एक दिन डरती-डरती अपने बाप को सारी बातें बता बैठी 
बाप की मूँछें ग़ुस्से में ऐंठी— अच्छा! मेरे घर के सामने घर बनाने का ख़्वाब?
लगता है, 
उसके दिन आ गए 
ख़राब बरबाद होना उसकी क़िस्मत में है लिखा, 
अब कभी गा दे ये गाना दोबारा, 
तो कहना घर बनाने की छोड़ तू ख़ाली प्लॉट लेकर ही दिखा?

बीस हज़ार का भाव है, 
मेरी कॉलोनी में 
पूरा का पूरा खप जाएगा, 
प्लॉट के बदले ख़ुद नप जाएगा।

यदि हो ही जाए कोई अजूबा 
पूरा कर ही ले वो अपना मंसूबा 
तो बेटी! 
तू भी निस्संकोच उसको वर लेना 
एक झटके में शादी कर लेना 
क्योंकि वो लड़का, 
जीवन के किसी भी स्तर पर 
फ़ेल नहीं है, 
घर बनाना आज के ज़माने में 
कोई हँसी-खेल नहीं है। 

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1 month ago

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