प्रसंग - रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी आज के युग में होते और सरकारी दफ्तरों के बाबुओं से दो-चार हो रहे होते, तो अपनी अवधी में किस तरह से वार्तालाप कर रहे होते, बस यही छोटा सा प्रयास किया है इस रचना में।
चित्रकूट के राशनकार्ड दफ्तर में लोगों की लाइन लगी थी.. हर किसी को चाह थी कि प्रधानमंत्री योजना के तहत मिलने वाला सरकारी मुफ़्त राशन उसके घर भी पहुंचे। छोटे बाबू लगातार लोगों से लेनदेन के मामले में उलझे हुए थे। सामने फाइलों का अंबार लगा था।
ये किसकी फाइल है भाई, तुलसी कौन है? कौन है तुलसीदास? - छोटे बाबू बोले।
तभी चोटीधारी एक शख्स माथे पर टीका लगाए धोती में छोटे बाबू के सामने नमूदार होता है, और कहता है -
हर दिन आवत जात हूं, लगी रहता है आस
राशन कार्ड बना नहीं, नाम है तुलसीदास ।
छोटे बाबू ने ऐनक नीचे करते हुए तुलसीदास को बड़े गौर से देखा और बोले - क्या कहना चाहते हो?
तुलसी बोले- अब विलम्ब केहि कारन कीन्हा, जौन कह्यों तौन हम दीन्हां।
लेकिन तुमने सब कुछ तो दिया, आधार नहीं दिया -छोटे बाबू बोले।
सकल बिस्व कै राम अधारा, हमरौ करिहैं बेड़ा पारा -तुलसीदास बोले।
लेकिन बाबा यहां तो प्रमाणपत्र चलता है, कागज वाला, वही लाओ -छोटे बाबू बोले।
जस प्रमाण दीन्हेंनि हनुमंता, वस चाहौ तौ देइ तुरंता -तुलसीदास खीझते हुए बोले।
छोटे बाबू बोले -नहीं महाराज, आपको छाती फाड़ने की ज़रूरत नहीं है। अच्छा बताइये आपके परिवार में कितने लोग हैं, कौन-कौन है।
पत्नी एक नाम है रत्ना, बालक नाहिं करेहुं बहु जतना, याचक की तरह तुलसी का दर्द फूटा।
अच्छा अब सबसे ज़रूरी बात ये बताइये कि आपकी इनकम कितनी है, यानी आमदनी - छोटे बाबू मुद्दे पर आए।
मैं चाकर हूं राम पियारा, बिनु वेतन अरु बिन आहारा -तुलसी बोले।
मेरा मतलब था कि तुम टैक्स पेयर हो या नहीं? किसी टैक्स स्लैब में आते हो या नहीं, ओह, तुम तो अंग्रेजी जानते नहीं हो। मेरा मतलब कि कर देते हो या नहीं?, उंगलियों से पैसे का इशारा करते हुए छोटे बाबू बोले।
हाथ जोड़ते हुए तुलसी विनम्र हो कर बोले -
कर-कर के कर दुख गए, जोड़े हूं कर भाय
का करिहौ कर पूछिकै, कर दीजौ कोऊ उपाय।
अच्छा ये बताओ कि तुम किराए पर रहते हो या अपना मकान है, कितने स्क्वायर फीट में है, कौन गांव है? – छोटे बाबू ने आखिरी पासा फेंकना चाहा।
दीन-हीन तुलसी बोले -
गंगा तीरे रहत हूं, जहं तरुवर की छांव
पर्ण कुटी छाई अहै, उहै हमारो गांव।
तब तो आपका जाति प्रमाणपत्र भी नहीं होगा, कौन जाति के हो –छोटे बाबू तुलसी को हेय दृष्टि से देखते हुए बोले।
सिर पर शिखा विराजती, माथे पर तिरपुण्ड
तबहुं नहीं तुम चीन्हते, समझे का काकभुशुण्ड?।
परेशान हो कर छोटे बाबू बोले - तो सीधे-सीधे काहे नहीं कहते हो कि ब्राह्मण हो, पहेली क्यों बुझाते हो? कार्ड चाहिए तो कुछ खर्चा-पानी करो, EWS कोटा से जुगाड़ हो जाएगा, बोलो मंजूर है?
दमड़ी पीछे अस पड़े, जस चिउंटा गुड़ माहि
धरौ कार्ड तुम आपुनो, हमै चाहिए नाहिं।
और छोटे बाबू के सामने गुस्से में अपनी फाइल पटकते हुए, अपनी शिखा पर हाथ फेरते हुए तुलसीदास घर को वापस लौट आए और फिर व्यथित मन से यें दोहा गढ़ डाला –
तुलसी कबहुं न जाइए, सरकारी बाबू के पास,
बोटी-बोटी नोचिहैं, रहए न पाए मांस।
- करुणेश त्रिपाठी
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1 week ago
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