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काका हाथरसी की हास्य कविता- दहेज की बारात

काका हाथरसी
                
                                                         
                            जा दिन एक बारात को मिल्यौ निमंत्रण-पत्र
                                                                 
                            
फूले-फूले हम फिरें, यत्र-तत्र-सर्वत्र
यत्र-तत्र-सर्वत्र, फरकती बोटी-बोटी
बा दिन अच्छी नाहिं लगी अपने घर रोटी
कहँ 'काका' कविराय, लार म्हौंड़े सों टपके
कर लड़ुअन की याद, जीभ स्याँपन सी लपके
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एक महीने पहले

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