आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

दिलावर फ़िगार का मज़ाहिया कलाम 'शाइर से शेर सुनिए तो मिस्रा उठाइए'

dilawar figar mazahiya shayari
                
                                                         
                            

शाइ'र से शेर सुनिए तो मिस्रा उठाइए
इक बार अगर न उट्ठे दोबारा उठाइए

कोई किसी की लाश उठाता नहीं यहां
अब ख़ुद ही अपना अपना जनाज़ा उठाइए

अग़वा ही करना था तो कोई कम थे लख-पति
किस ने कहा था रोड से कंगला उठाइए

कोई क़दम उठाना तो है राह-ए-शौक़ में
अगला क़दम न उठ्ठे तो पिछ्ला उठाइए

स्टेज पर पड़ा था जो पर्दा वो उठ चुका
जो अक़्ल पर पड़ा है वो पर्दा उठाइए

पोशीदा बम भी होते हैं कचरे के ढेर में
हुश्यार हो के रोड से कचरा उठाइए

2 वर्ष पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही
X
Jobs

सभी नौकरियों के बारे में जानने के लिए अभी डाउनलोड करें अमर उजाला ऐप

Download App Now