वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से लोग घरों में कैद हैं और हर तरह ही गतिविधियां बंद हैं। लोगों को सामाजिक दूरी का पालन करते हुए ही ज़रूरी कामों को करने की इजाज़त दी गयी है। ऐसे में लम्बे वक़्त से घरों में बंद लोग डिजिटल माध्यम से ही एक-दूसरे के संपर्क में हैं जो सुरक्षित और कारगर तरीका है। इस मुश्किल वक़्त में साहित्य और कला से जुड़े कई संस्थान हैं जो डिजिटल माध्यम में पाठकों और श्रोताओं तक पाठाहार पहुंचा रहे हैं।
ऐसा ही सराहनीय प्रयास साहित्यिक संस्था 'अनुगूँज' भी कर रही है। इस कोरोना काल में उनके साहित्यिक मंच द्वारा 14 अप्रैल से लेकर अभी तक 28 लाइव कार्यक्रम आयोजित किये जा चुके हैं जो अभी भी जारी है। उनके द्वारा आयोजित किये जा रहे काव्य पाठ में हिंदी-उर्दू और अंग्रेजी तीनों ही प्रमुख भाषा के प्रख्यात वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ-साथ युवा रचनाकारों को भी लोगों से जुड़ने का मौका दिया जा रहा है।
अनुगूँज साहित्यिक संस्था की संस्थापक और आयोजक निवेदिता चक्रवर्ती हैं। निवेदिता का मानना है कि हर रचना ईश्वर का आशीर्वाद होती है, हर लेखक साधक होता है और उसका लेखन उसकी साधना।
निवेदिता स्वयं भी एक लेखिका हैं अपने लेखन को साहित्य सेवा का माध्यम मानती हैं। आगे पेश है निवेदिता चक्रवर्ती द्वारा स्वरचित एक गीत जिससे वे अपनी संस्था का आह्वान गीत मानती हैं-
हमें भीड़ नहीं चाहिए
बस चाहिए मुट्ठी भर लोग
विनम्रता हो जिनमें, सरल मन हो
मधुर भाषी हों, थोड़ा सा दर्शन हो
जिनका हो निर्मल स्वभाव
विचारों में हो थोड़ा ठहराव
लेखन लगता हो जिन्हें आशीर्वाद
अहंकार रहित हो जिनका संवाद
दूसरों का आदर करते हों जो
साथ सबको लेकर चलते हों जो
मनुष्यता भरी हो जिनके व्यक्तित्व में
जो आस्था रखते हों नश्वर अस्तित्व में
जिनको वैभव माटी सा दिखता हो
जिनको यश धूमिल सा लगता हो
जो समर्पित हो चुके शब्दों की अर्चना में
जो समिधा बन गए साहित्य की साधना में
कुछ ऐसी हो उनकी तपस्या
कुछ ऐसा हो उनका योग
नहीं चाहिए हमको भीड़
आगे पढ़ें