इस दुनिया में हर ग़म की दवा देर सवेर मिल ही जाती है। लेकिन आशिक को लगता है कि उसके ग़म की कोई दवा नहीं है और यह है ग़मे मोहब्बत। वक़्त भले ही इस दर्द पर मरहम लगा दे। लेकिन कुछ आशिक़ों को ग़मे मोहब्बत की टीस ज़िंदगी भी सालती रहती है।
पहली मोहब्बत या अपनी आशिक़ी के ज़माने को कौन भूल सकता है। रात की तन्हाई में दिलबर की याद आ ही जाती है। ऐसे समय में ग़ुलाम अली की आवाज़ में यह ग़ज़ल हर आशिक के जख़्म को हरा भी कर देता है और दिल को कुछ राहत भी पहुंचाता है।
चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
खींच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़अतन
और दुपट्टे में वो तेरा मुंह छुपाना याद है
रात की तन्हाई में यह ग़ज़ल अधूरी मोहब्बत के मर्ज़ की दवा होती है। इसे सुनकर कुछ वक़्त के लिए दिल के ज़ख़्मों पर मरहम लगा महसूस होता है। यह ग़ज़ल 'निकाह' फ़िल्म में फिल्माया गया है।
इस ग़ज़ल के रचनाकार हैं आजादी की लड़ाई में अंग्रेज़ों से लोहा लेने वाले और मशहूर शायर हसरत मोहानी साहब। हालांकि, ये ग़ज़ल काफ़ी पुरानी है पर अपने ख़ास अंदाज़ की वजह से इस ग़ज़ल की मक़बूलियत में दिन-ब-दिन इज़ाफा ही हुआ। अधूरी मोहब्बत की कैफ़ियत को मरहम नुमा अल्फाज़ इस ग़ज़ल के अलावा शायद कहीं और मिलें।
इस ग़ज़ल के अल्फ़ाज़ से ना-मुकम्मल इश्क़ और मोहब्बत की बेक़द्री की यादें ताज़ा हो जाती हैं। और दिमाग़ दिल से कहता है कि दिले नादां अरसा बीत जाने के बाद भी तू उसे भुलाने को क्यों राज़ी नहीं। तो इस पर गम़ से लबरेज़ दिल कह उठता है -
बेरुखी के साथ सुनना दर्द-ए-दिल की दास्तां
वो कलाई में तेरा कंगन घुमाना याद है
वक़्त-ए-रुख़्सत अलविदा का लफ़्ज़ कहने के लिये
वो तेरे सूखे लबों का थर-थराना याद है
इतना ज़रूर है कि अफ़्सोस के आंसुओं के निकलने से आशिक के भारी दिल को कुछ हल्केपन का एससास होता है। जब रात में पुरानी यादें ज़हन के दरीचों से दिल में उतरतीं है तो ऐसा ही एहसास होता है। तल्ख़ और दिल को ग़मगीन बनाने वाली यादें बहुत तकलीफ़देह होती हैं, दुनिया की हर शय मुरझाई हुई और बेरौनक़ लगती हैं।
लोग सोचते हैं कि महबूब को न पाने से मोहब्बत ख़त्म हो जाती है। जबकि ऐसा है नहीं। मोहब्बत हमारी मिल्कियत होती है और इस के राज़दार सिर्फ हम होते हैं। वो यादें भुलाए नहीं भूलतीं...
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिये
वो छज्जे पर तेरा नंगे पांव आना याद है
तुझसे मिलते ही वो बेबाक़ हो जाना मेरा
और तेरा दांतों में वो उंगली दबाना याद है
हालांकि आशिक अपने दिल से उन सुनहरी यादों को कभी भुला नहीं पाता या वह ऐसा चाहता ही नहीं। एक आशिक को उसकी मोहब्बत कभी कमज़ोर नहीं बनाती बल्कि दुनिया के कश्मकश के तूफ़ानों से पार पाने का हौसला देती है। दिल को एक सब्र मिलता है और वो यही कहता है -
चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है
यादों का यह सिलसिला ग़म देने के बजाए ता-ज़िंदगी साथ रहने वाला मोहब्बत का बेशक़ीमती ख़ज़ाना बन जाता है।
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