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ना-मुकम्मल इश्क़ और मोहब्बत की बेक़द्री की यादें ताज़ा करता ये दिलकश फ़िल्मी नग़मा

फिल्म निकाह का पोस्टर
                
                                                                                 
                            इस दुनिया में हर ग़म की दवा देर सवेर मिल ही जाती है। लेकिन आशिक को लगता है कि उसके ग़म की कोई दवा नहीं है और यह है ग़मे मोहब्बत। वक़्त भले ही इस दर्द पर मरहम लगा दे। लेकिन कुछ आशिक़ों को ग़मे मोहब्बत की टीस ज़िंदगी भी सालती रहती है। 
                                                                                                


पहली मोहब्बत या अपनी आशिक़ी के ज़माने को कौन भूल सकता है। रात की तन्हाई में दिलबर की याद आ ही जाती है। ऐसे समय में ग़ुलाम अली की आवाज़ में यह ग़ज़ल हर आशिक के जख़्म को हरा भी कर देता है और दिल को कुछ राहत भी पहुंचाता है। 

चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

खींच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़अतन
और दुपट्टे में वो तेरा मुंह छुपाना याद है


रात की तन्हाई में यह ग़ज़ल अधूरी मोहब्बत के मर्ज़ की दवा होती है। इसे सुनकर कुछ वक़्त के लिए दिल के ज़ख़्मों पर मरहम लगा महसूस होता है। यह ग़ज़ल 'निकाह' फ़िल्म में फिल्माया गया है। आगे पढ़ें

1 month ago

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