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Book Review: नदी सिंदूरी - एक गोंड बहुल गांव में खो रही संस्कृति की स्मृति कथा

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समीक्षक -  चेतन कश्यप



''जहां नब्बे के दौर में देश-दुनिया की कई बड़ी घटनाएँ अब इतिहास में दर्ज हो चुकी हैं तो वहीं उसी दौरान दूर-दराज के किसी देहात में घटने वाली घटनाओं को यहां संस्मरण और कहानियों के रूप में दर्ज कराया गया है। 'नदी सिंदूरी' में दर्ज ये कहानियां यथार्थ और असली पात्रों के बेहद करीब हैं और कुछ जगहों पर व्यक्तियों के नाम भी नहीं बदले गए हैं।'' 'नदी सिंदूरी' शिरीष खरे की नवीनतम किताब है। करीब दो साल पहले आई इनकी पिछली किताब 'एक देश बारह दुनिया' काफी चर्चित रही है और यह किताब 'स्वयं प्रकाश स्मृति सम्मान' से पुरस्कृत हुई है। देखा जाए तो हर संस्मरण अपने समय के परिवेश की कहानी ही होता है, जिसका एक पात्र लेखक स्वयं है। इस लिहाज से देखें तो 'नदी सिंदूरी' की तेरह कहानियां, लेखक की उन तेरह कहानियों का संग्रह है जिसमें वह खुद भी एक पात्र है।

वैसे भी संस्मरण इतिहास की तरह घटनाओं का तथ्यात्मक ब्यौरा-मात्र नहीं होता। प्रेमचंद ने कहानी-कला पर विचार करते हुए एक लेख में लिखा है कि इतिहास में सब कुछ यथार्थ होते हुए भी वह असत्य है और कथा-साहित्य में सब कुछ काल्पनिक होते हुए भी वह सत्य है। कहानी-कला पर ही एक दूसरे लेख में वे कहते हैं, ''कितने ही सिद्धान्त, जो एक जमाने में सत्य समझे जाते थे, आज असत्य सिद्ध हो गए हैं, पर कथाएं आज भी उतनी ही सत्य हैं, क्योंकि उनका सम्बन्ध मनोभावों से है और मनोभावों में कभी परिवर्तन नहीं होता।'' इस दृष्टि से देखें तो 'नदी सिंदूरी' की कहानियों ने अपने समय के सत्य को दर्ज किया है ।

'नदी सिंदूरी' के केन्द्र में 1993-94 का एक गांव है। शिवपूजन सहाय के 'देहाती दुनिया' के केन्द्र में 1920-25 का गांव है तो रेणु के 'मैला आँचल' में स्वतंत्रता के कुछ वर्षों के बाद का गांव। किताब के शीर्षक के विषय में लिखते हुए शिरीष खरे लिखते हैं, ''इस बीच यदि कोई नदी दिखती है तो पता नहीं कैसे बहुत भीतर तक सिंदूरी की धारा फूट पड़ती है। इसलिए, कहानियों के भीतर सामान्यतः आपको एक बहती हुई नदी दिखेगी।'' यह नदी 'देहाती दुनिया' और 'मैला आँचल' से होती हुई 'नदी सिंदूरी' तक आती है। यह अकारण नहीं है कि 'नदी सिंदूरी' को पढ़ते हुए लोगों को 'देहाती दुनिया' और रेणु याद आए।

'नदी सिंदूरी' पढ़ते हुए महादेवी वर्मा की 'स्मृति की रेखाएँ' याद आईं, रांगेय राघव का लेखन याद आया। इस क्रम में ज्ञान चतुर्वेदी का 'हम न मरब' भी याद किया जा सकता है। हर अच्छा लेखक अपनी परम्परा से कटकर नहीं, उससे जुड़े रहकर उसको आगे बढ़ाता है।

प्रेमचंद ने लिखा है कि मनोभावों में कभी परिवर्तन नहीं होता, उसे इस संग्रह की कहानियों को पढ़ते हुए बखूबी समझा सकता है। लेखक ने विविध भावों का चित्रण किया है और सबको एक सूत्र में पिरो कर भी रखा है। ये मनोभाव मनुष्यता के शाश्वत मनोभाव हैं। यह सूत्र क्या है? यह सूत्र है लेखक का अपने पात्रों से, अपने गांव से, अपनी नदी से रागात्मक संबंध। यही रागात्मकता है कि लेखक को नदी के आधिकारिक नाम 'सिंदूर' की जगह 'सिंदूरी' पसंद है, इसलिए कि 'सिंदूर' में 'सिंदूरी' जैसा ममत्व नहीं।

'नदी सिंदूरी' में अच्छाई भी है, बुराई भी है, प्रेम भी है, झगड़े भी हैं, उम्मीद भी, निराशा भी, सादगी भी, चालबाजी भी है। इन कहानियों से गुजरते हुए आप यह सब महसूस करते हैं। पाठक इन पात्रों से, घटनाओं से एक जुड़ाव महसूस करता है। लेखक का अपनी भाषा पर अधिकार है। अपनी पिछली किताब 'एक देश बारह दुनिया' में भी लेखक ने अपने वर्णन से, अपनी भाषा शैली से पाठक को बांधा था, वह इस किताब में उतनी ही मजबूती के साथ उपस्थित है। 'एक देश बारह दुनिया' अगर देश के अलग-अलग हिस्सों की यात्रा थी तो 'नदी सिंदूरी' लेखक के खुद के भीतर की यात्रा है जिसमें वह पाठक को भी शामिल कर लेने में सफल है। 

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2 months ago

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