न्यूज डेस्क, अमर उजाला, रांची
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Fri, 02 Apr 2021 07:17 PM IST
झारखंड के बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान ने एक ऐसी व्यवस्था विकसित की है जिसके माध्यम से पानी से आर्सेनिक को आसानी से निकाला जा सकता है। इसे बाजार में आसानी से उपलब्ध द्रवों से तैयार किया गया है। जानकारी के अनुसार यह मशीन आसानी से पानी को फिल्टर कर उसे पीने योग्य बना सकती है।
संस्थान के शोध अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार स्वेन की अध्यक्षता में यह तकनीकी (आर्सेनिक निस्पंदन सिस्टम) विकसित की गई है। डॉ. संजय के अनुसार प्रारंभिक चरण में फिल्टर की चार इकाइयां स्थापित की गई हैं। यह फिल्टर पानी से आर्सेनिक जैसे घातक तत्वों को निकालने में पूरी तरह सफल साबित हुआ है।
बता दें कि देश के कई हिस्सों में दूषित पानी की समस्या गंभीर हो रही है। झारखंड के ही कई हिस्सों में दूषित पानी पीने से होने वाली आर्सेनिकोसिस बमारी के मामले लंबे समय से सामने आते रहे हैं। शोधार्थियों का कहना है कि यह नई फिल्टर तकनीकी लोगों को साफ पानी मुहैया कराने में मदद कर सकती है।
डॉ. संजय ने कहा कि रांची के कुछ इलाकों में भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी मिली है। प्रदूषित क्षेत्रों में आर्सेनिक की मात्रा 1 पीपीएम तक है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की अधिनियमित मात्रा (0.01 पीपीएम) से कहीं अधिक है। कई जगहों पर भूजल में आर्सेनिक के साथ आयरन की मात्रा भी काफी अधिक है।
उन्होंने बताया कि इस फिल्टर मशीन के शोध को अभी निबंधित किया जाना बाकी है, इसलिए इसके पदार्थों के बारे में अभी जानकारी नहीं दी जा सकती। हालांकि, उन्होंने कहा कि लोग इसे कम लागत पर बना सकेंगे और इसकी स्थापना भी बहुत कठिन नहीं है। इसे चलाने के लिए बिजली की जरूरत भी नहीं है।
डॉ. संजय ने बताया कि पानी फिल्टर करने की इस तकनीकी से रोजाना 200 से 240 लीटर पानी शुद्ध किया जा सकता है। यानी हर घंटे में 10 से 12 लीटर पानी को शुद्ध किया जा सकता है। वहीं,लागत को लेकर उन्होंने कहा, एक लीटर पानी को शुद्ध करने में खर्च केवल 0.03 रुपये आएगा, जो कि काफी कम है।
विस्तार
झारखंड के बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान ने एक ऐसी व्यवस्था विकसित की है जिसके माध्यम से पानी से आर्सेनिक को आसानी से निकाला जा सकता है। इसे बाजार में आसानी से उपलब्ध द्रवों से तैयार किया गया है। जानकारी के अनुसार यह मशीन आसानी से पानी को फिल्टर कर उसे पीने योग्य बना सकती है।
संस्थान के शोध अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार स्वेन की अध्यक्षता में यह तकनीकी (आर्सेनिक निस्पंदन सिस्टम) विकसित की गई है। डॉ. संजय के अनुसार प्रारंभिक चरण में फिल्टर की चार इकाइयां स्थापित की गई हैं। यह फिल्टर पानी से आर्सेनिक जैसे घातक तत्वों को निकालने में पूरी तरह सफल साबित हुआ है।
बता दें कि देश के कई हिस्सों में दूषित पानी की समस्या गंभीर हो रही है। झारखंड के ही कई हिस्सों में दूषित पानी पीने से होने वाली आर्सेनिकोसिस बमारी के मामले लंबे समय से सामने आते रहे हैं। शोधार्थियों का कहना है कि यह नई फिल्टर तकनीकी लोगों को साफ पानी मुहैया कराने में मदद कर सकती है।
डॉ. संजय ने कहा कि रांची के कुछ इलाकों में भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी मिली है। प्रदूषित क्षेत्रों में आर्सेनिक की मात्रा 1 पीपीएम तक है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की अधिनियमित मात्रा (0.01 पीपीएम) से कहीं अधिक है। कई जगहों पर भूजल में आर्सेनिक के साथ आयरन की मात्रा भी काफी अधिक है।
उन्होंने बताया कि इस फिल्टर मशीन के शोध को अभी निबंधित किया जाना बाकी है, इसलिए इसके पदार्थों के बारे में अभी जानकारी नहीं दी जा सकती। हालांकि, उन्होंने कहा कि लोग इसे कम लागत पर बना सकेंगे और इसकी स्थापना भी बहुत कठिन नहीं है। इसे चलाने के लिए बिजली की जरूरत भी नहीं है।
डॉ. संजय ने बताया कि पानी फिल्टर करने की इस तकनीकी से रोजाना 200 से 240 लीटर पानी शुद्ध किया जा सकता है। यानी हर घंटे में 10 से 12 लीटर पानी को शुद्ध किया जा सकता है। वहीं,लागत को लेकर उन्होंने कहा, एक लीटर पानी को शुद्ध करने में खर्च केवल 0.03 रुपये आएगा, जो कि काफी कम है।