जम्मू। सात साल पहले केएएस अफसर नियुक्त होने वाले शहनाज अख्तर की अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने रियासत के मुख्य सचिव और सामान्य प्रशासनिक विभाग (जीएडी) को समन भेज तमाम रिकार्ड तलब किया है। हाईकोर्ट में दायर याचिका में अख्तर ने कहा कि सात साल पहले वह केएएस अफसर नियुक्त हुए और उन्हें प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में तैनात किया गया लेकिन उनकी वरिष्ठता तय करते समय बिना कोई कानूनी कारण बताए उन्हें कार्यात्मक प्रबंधक (फंक्शनल मैनेजर) दर्शाया गया। साथ ही उचित समय पर पदोन्नति लाभ भी नहीं दिए गए। याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट की जस्टिस ताशी रबसटन ने दायर अवमानना याचिका पर उक्त आदेश दिया, जिसमें याची ने कहा कि उद्योग और वाणिज्य विभाग में प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में वरिष्ठता सूची में उनके नाम को शामिल करने के दावे को खारिज कर दिया गया। अवमानना याचिका में कहा गया कि 4 फरवरी, 2013 को कोर्ट के आदेश के बावजूद न तो सूची में उनके नाम को शामिल किया गया और न ही उन्हें 22 जुलाई, 2008 से एसटी वर्ग के लाभ दिए गए। अदालत ने चार फरवरी के फैसले के आधार पर याचिका को अवमानना के रूप में स्वीकार किया। इसलिए अवमानना याचिका खारिज करने के जवाबदेह के दावे का कोई औचित्य नहीं बनता। जवाबदेह को अदालत की अवमानना के अधिनियम के तहत ही आगे बढ़ना होगा। जेएनएफ
जम्मू। सात साल पहले केएएस अफसर नियुक्त होने वाले शहनाज अख्तर की अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने रियासत के मुख्य सचिव और सामान्य प्रशासनिक विभाग (जीएडी) को समन भेज तमाम रिकार्ड तलब किया है। हाईकोर्ट में दायर याचिका में अख्तर ने कहा कि सात साल पहले वह केएएस अफसर नियुक्त हुए और उन्हें प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में तैनात किया गया लेकिन उनकी वरिष्ठता तय करते समय बिना कोई कानूनी कारण बताए उन्हें कार्यात्मक प्रबंधक (फंक्शनल मैनेजर) दर्शाया गया। साथ ही उचित समय पर पदोन्नति लाभ भी नहीं दिए गए। याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट की जस्टिस ताशी रबसटन ने दायर अवमानना याचिका पर उक्त आदेश दिया, जिसमें याची ने कहा कि उद्योग और वाणिज्य विभाग में प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में वरिष्ठता सूची में उनके नाम को शामिल करने के दावे को खारिज कर दिया गया। अवमानना याचिका में कहा गया कि 4 फरवरी, 2013 को कोर्ट के आदेश के बावजूद न तो सूची में उनके नाम को शामिल किया गया और न ही उन्हें 22 जुलाई, 2008 से एसटी वर्ग के लाभ दिए गए। अदालत ने चार फरवरी के फैसले के आधार पर याचिका को अवमानना के रूप में स्वीकार किया। इसलिए अवमानना याचिका खारिज करने के जवाबदेह के दावे का कोई औचित्य नहीं बनता। जवाबदेह को अदालत की अवमानना के अधिनियम के तहत ही आगे बढ़ना होगा। जेएनएफ
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