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अनंतनाग। सेना ने कहा कि आतंकवाद में स्थानीय युवाओं की भर्ती में भी काफी गिरावट दर्ज की गई है। इसके पीछे अभिभावकों का बहुत बड़ा योगदान है। आज आतंकी की जिंदगी बहुत कम है। कोई मां-बाप ऐसा नहीं चाहेगा कि उनका बच्चा मारा जाए। अब धीरे-धीरे लोग सच्चाई से अवगत हो चुके हैं और अब वह अपने साथ-साथ विशेष रूप से अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोच रहे हैं।
सेना के एक अधिकारी ने आतंकियों को आत्मसमर्पण करवाने की नीति पर कहा कि सेना पेशेवर तरीके से अपने काम को अंजाम दे रही है। भटके हुए युवाओं को मुख्यधारा में वापस लाने के लिए मुठभेड़ के दौरान आत्मसमर्पण का मौका दिया जा रहा है और कई बार वह सफल भी हुए हैं।
आईएसआई ने मुख्य संगठनों से ध्यान हटाने के लिए टीआरएफ बनवाई
अधिकारी ने कहा कि आईएसआई पिछले करीब तीन दशकों से सीमा पार से एक नकारात्मक भूमिका निभा रहा है। सेना के जवानों की चौकसी के चलते आतंकियों की घुसपैठ और हथियारों को इस पार भेजने पर रोक लग गई है। इसलिए एलओसी पर मुंह की खाने के बाद आईएसआई नई तकनीकों को अपना रहा है और हथियारों को इस पार भेजने के लिए ड्रोन का भी इस्तेमाल कर रहा है। घाटी में टीआरएफ जैसी नई तंजीमों का गठन कर आईएसआई यह साबित करना चाहता है आतंकवाद स्वदेशी है ताकि वह अपने मुख्य संगठनों से ध्यान हटवा सके।
आईईडी बड़ा खतरा और चुनौती
स्थानीय आतंकियों के शवों को परिजनों को सौंपने के मामले में कहा कि यह ऐसा मामला है जिस पर सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन फैसला लेगा। अधिकारी ने बताया कि सुरक्षा बलों के लिए आईईडी एक बड़ा खतरा और चुनौती है, जिसको लेकर वह काम कर रहे हैं। आईईडी के लिए अमूमन जैश ए मोहम्मद के कैडर को ट्रेन किया जाता है। इससे निपटने के लिए सेना निवारक अभ्यास करती है।
अनंतनाग। सेना ने कहा कि आतंकवाद में स्थानीय युवाओं की भर्ती में भी काफी गिरावट दर्ज की गई है। इसके पीछे अभिभावकों का बहुत बड़ा योगदान है। आज आतंकी की जिंदगी बहुत कम है। कोई मां-बाप ऐसा नहीं चाहेगा कि उनका बच्चा मारा जाए। अब धीरे-धीरे लोग सच्चाई से अवगत हो चुके हैं और अब वह अपने साथ-साथ विशेष रूप से अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के बारे में सोच रहे हैं।
सेना के एक अधिकारी ने आतंकियों को आत्मसमर्पण करवाने की नीति पर कहा कि सेना पेशेवर तरीके से अपने काम को अंजाम दे रही है। भटके हुए युवाओं को मुख्यधारा में वापस लाने के लिए मुठभेड़ के दौरान आत्मसमर्पण का मौका दिया जा रहा है और कई बार वह सफल भी हुए हैं।
आईएसआई ने मुख्य संगठनों से ध्यान हटाने के लिए टीआरएफ बनवाई
अधिकारी ने कहा कि आईएसआई पिछले करीब तीन दशकों से सीमा पार से एक नकारात्मक भूमिका निभा रहा है। सेना के जवानों की चौकसी के चलते आतंकियों की घुसपैठ और हथियारों को इस पार भेजने पर रोक लग गई है। इसलिए एलओसी पर मुंह की खाने के बाद आईएसआई नई तकनीकों को अपना रहा है और हथियारों को इस पार भेजने के लिए ड्रोन का भी इस्तेमाल कर रहा है। घाटी में टीआरएफ जैसी नई तंजीमों का गठन कर आईएसआई यह साबित करना चाहता है आतंकवाद स्वदेशी है ताकि वह अपने मुख्य संगठनों से ध्यान हटवा सके।
आईईडी बड़ा खतरा और चुनौती
स्थानीय आतंकियों के शवों को परिजनों को सौंपने के मामले में कहा कि यह ऐसा मामला है जिस पर सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन फैसला लेगा। अधिकारी ने बताया कि सुरक्षा बलों के लिए आईईडी एक बड़ा खतरा और चुनौती है, जिसको लेकर वह काम कर रहे हैं। आईईडी के लिए अमूमन जैश ए मोहम्मद के कैडर को ट्रेन किया जाता है। इससे निपटने के लिए सेना निवारक अभ्यास करती है।