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कठुआ। शहर के शहीद जोगिंदर नगर में जन्मे एक नौजवान ने देश की खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया। देशभक्ति का जज्बा और कुछ कर दिखाने की चाह जब दोनों मिले तो होनहार मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित शहीद कैप्टन सुनील चौधरी ने सेना में जाकर देश की रक्षा का प्रण लिया। आखिर असम के तिनसुकिया में उल्फा उग्रवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए कैप्टन चौधरी ने शहादत पाई। सत्ताईस जनवरी को सुनील चौधरी की शहादत को पांच साल पूरे हो जाएंगे। ऐसे में शहीद के परिवार के साथ-साथ शहरवासी भी उनकी शहादत को सलाम करने के लिए कैप्टन सुनील चौधरी चौक स्थित स्मारक पर एकत्रित होंगे।
सत्ताईस जनवरी 2008 को देश का सपूत उल्फा आतंकियों के विरुद्ध छेड़े गए अभियान में अपनी टीम सहित रवाना हुआ। एक दिन पूर्व छब्बीस जनवरी को कैप्टन सुनील चौधरी को सेना मेडल से भी नवाजा गया था। आतंकियों से लोहा लेते हुए अपनी शहादत से पूर्व कैप्टन सुनील चौधरी ने घायल होने के बावजूद क्षेत्र में दहशत फैलाने वाले तीन आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए मातृभूमि के नाम प्राणों की आहुति देने वाले शहीद कैप्टन सुनील चौधरी को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। गुमनामी के अंधेरे में इस नाम को डूबने से बचाने में पिता ने अहम भूमिका निभाते हुए जद्दोजहद कर एक स्मारक से उस वीर का नाम अमर कर दिया।
पिता की चाह, अमर हो जाए बेटा
सेवानिवृत्त कर्नल प्यारा लाल चौधरी ने अपने बेटे की शहादत को अमर करते हुए एक गैरसरकारी संस्था के साथ शहीद कैप्टन सुनील चौधरी का नाम जोड़कर सेना और अर्धसैनिक बल के जवानों के परिवारों को पेश आने वाले दिक्कतों को हल करवाने का निश्चय किया है। वहीं शहीदों के साथ राज्य में होने वाले भेदभाव के विरोध में आवाज उठाने की भी तैयारी कर रहे हैं। अमर उजाला से विशेष बातचीत में उन्होंने बताया- मैं चाहता हूं कि युवा पीढ़ी को ऐसा संदेश िदया जाए िक कैप्टन सुनील चौधरी का बलिदान अमर हो जाए।
स्मारक की देखभाल को आगे आएं युवा
शहीद कैप्टन सुनील चौधरी स्मारक की देखभाल निजी तौर पर करते हुए पांच साल बीत गए हैं। सेवानिवृत्त होने के बाद पिता को यह भी डर सताने लगा है कि कहीं देश के सपूत की याद धुंधली न हो जाए। उन्होंने कहा कि जीवनकाल तक हर संभव प्रयास करूंगा कि मेरे बेटे की शहादत को याद रखा जाए। प्रशासन की ओर से सहयोग तो दिया जाता है पर शहरवासियों के सहयोग से आहत हूं। उन्होंने कहा कि युवाओं को स्मारक को संजोने में सहयोग करना चाहिए। इसके लिए जो भी वित्तिय सहायता निजी तौर पर की जा सकती है इसके लिए परिवार भी तैयार है।
कठुआ। शहर के शहीद जोगिंदर नगर में जन्मे एक नौजवान ने देश की खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया। देशभक्ति का जज्बा और कुछ कर दिखाने की चाह जब दोनों मिले तो होनहार मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित शहीद कैप्टन सुनील चौधरी ने सेना में जाकर देश की रक्षा का प्रण लिया। आखिर असम के तिनसुकिया में उल्फा उग्रवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए कैप्टन चौधरी ने शहादत पाई। सत्ताईस जनवरी को सुनील चौधरी की शहादत को पांच साल पूरे हो जाएंगे। ऐसे में शहीद के परिवार के साथ-साथ शहरवासी भी उनकी शहादत को सलाम करने के लिए कैप्टन सुनील चौधरी चौक स्थित स्मारक पर एकत्रित होंगे।
सत्ताईस जनवरी 2008 को देश का सपूत उल्फा आतंकियों के विरुद्ध छेड़े गए अभियान में अपनी टीम सहित रवाना हुआ। एक दिन पूर्व छब्बीस जनवरी को कैप्टन सुनील चौधरी को सेना मेडल से भी नवाजा गया था। आतंकियों से लोहा लेते हुए अपनी शहादत से पूर्व कैप्टन सुनील चौधरी ने घायल होने के बावजूद क्षेत्र में दहशत फैलाने वाले तीन आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए मातृभूमि के नाम प्राणों की आहुति देने वाले शहीद कैप्टन सुनील चौधरी को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। गुमनामी के अंधेरे में इस नाम को डूबने से बचाने में पिता ने अहम भूमिका निभाते हुए जद्दोजहद कर एक स्मारक से उस वीर का नाम अमर कर दिया।
पिता की चाह, अमर हो जाए बेटा
सेवानिवृत्त कर्नल प्यारा लाल चौधरी ने अपने बेटे की शहादत को अमर करते हुए एक गैरसरकारी संस्था के साथ शहीद कैप्टन सुनील चौधरी का नाम जोड़कर सेना और अर्धसैनिक बल के जवानों के परिवारों को पेश आने वाले दिक्कतों को हल करवाने का निश्चय किया है। वहीं शहीदों के साथ राज्य में होने वाले भेदभाव के विरोध में आवाज उठाने की भी तैयारी कर रहे हैं। अमर उजाला से विशेष बातचीत में उन्होंने बताया- मैं चाहता हूं कि युवा पीढ़ी को ऐसा संदेश िदया जाए िक कैप्टन सुनील चौधरी का बलिदान अमर हो जाए।
स्मारक की देखभाल को आगे आएं युवा
शहीद कैप्टन सुनील चौधरी स्मारक की देखभाल निजी तौर पर करते हुए पांच साल बीत गए हैं। सेवानिवृत्त होने के बाद पिता को यह भी डर सताने लगा है कि कहीं देश के सपूत की याद धुंधली न हो जाए। उन्होंने कहा कि जीवनकाल तक हर संभव प्रयास करूंगा कि मेरे बेटे की शहादत को याद रखा जाए। प्रशासन की ओर से सहयोग तो दिया जाता है पर शहरवासियों के सहयोग से आहत हूं। उन्होंने कहा कि युवाओं को स्मारक को संजोने में सहयोग करना चाहिए। इसके लिए जो भी वित्तिय सहायता निजी तौर पर की जा सकती है इसके लिए परिवार भी तैयार है।