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अमर उजाला EXPLAINER: राइट टू हेल्थ बिल को लेकर डॉक्टर्स और सरकार के बीच तकरार, जानिए क्या है विवाद की वजह

Neeraj Sharma नीरज शर्मा
Updated Tue, 04 Apr 2023 01:38 PM IST
सार

RTH bill: प्राइवेट डॉक्टर्स और रेजीडेंट डॉक्टर्स के साथ ही सरकारी सेवारत डॉक्टर्स ने 29 मार्च को सामूहिक अवकाश का एलान किया है। इससे 14 हजार डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ प्रभावित होंगे। अमर उजाला EXPLAINER के जरिए बता रहा है कि क्या है पूरे विवाद की जड़...

Dispute between doctors and government regarding Right to Health Bill
राइट टू हेल्थ बिल का विरोध - फोटो : Amar Ujala Digital

विस्तार

राइट टू हेल्थ (RTH) बिल में प्रावधान है कि कोई भी हॉस्पिटल या डॉक्टर मरीज को इलाज के लिए मना नहीं कर सकता है। इमरजेंसी में आए मरीज का सबसे पहले इलाज करना होगा। ये बिल कानून बनने के बाद बिना किसी तरह का पैसा डिपॉजिट किए ही मरीज को पूरा इलाज मिल सकेगा।





अभी तक यह होता आया है कि प्राइवेट हॉस्पिटल में जब तक मरीज के परिजन एडमिशन फीस नहीं देते, बीमारी के एस्टीमेट का एडवांस जमा नहीं करवाते हैं, तब तक अस्पताल में मरीज को भर्ती नहीं किया जाता है और इलाज शुरू नहीं किया जाता है। एक्ट बनने के बाद डॉक्टर या प्राइवेट हॉस्पिटल मरीज को भर्ती करने या उसका इलाज करने से मना नहीं कर सकेंगे। ये कानून सरकारी के साथ ही निजी अस्पतालों और हेल्थ केयर सेंटर पर भी लागू होगा।

'इमरजेंसी' शब्द पर विवाद
सबसे बड़ा विवाद 'इमरजेंसी' शब्द को लेकर है। डॉक्टर्स की चिंता है कि इमरजेंसी को परिभाषित नहीं किया गया है। इमरजेंसी के नाम पर कोई भी मरीज या उसका परिजन किसी भी प्राइवेट हॉस्पिटल में आकर मुफ्त इलाज की मांग कर सकता है। इससे मरीज, उनके परिजनों से अस्पतालों के स्टाफ और डॉक्टर्स के झगड़े बढ़ जाएंगे। पुलिस एफआईआर, कोर्ट-कचहरी मुकदमेबाजी और सरकारी कार्रवाई में डॉक्टर्स और अस्पताल उलझ कर रह जाएंगे।

Dispute between doctors and government regarding Right to Health Bill
राइट टू हेल्थ बिल के नियम और शर्तें - फोटो : Amar Ujala Digital
बिल के नियम और शर्तें
  • बिल में प्रावधान किया गया है कि हॉस्पिटल या डॉक्टर मरीज को इमरजेंसी में फ्री इलाज उपलब्ध करवाएंगे।
  • मरीज या उसके परिजनों से कोई फीस नहीं ली जाएगी।
  • इलाज के बाद ही मरीज या उसके परिजनों से फीस ली जा सकती है।
  • अगर मरीज या परिजन फीस देने में असमर्थ रहते हैं, तो बकाया फीस और चार्जेज़ सरकार चुकाएगी।
  • मरीज को किसी दूसरे अस्पताल में भी शिफ्ट किया जा सकता है।
  • इलाज करने से इनकार किया, तो अस्पताल पर जुर्माना लगेगा
  • मरीज का इलाज करने से इनकार करने पर पहली बार में 10 हजार रुपये जुर्माना लगाया जाएगा, दूसरी बार मना करने पर जुर्माना 25 हजार रुपये वसूला जाएगा। 

Dispute between doctors and government regarding Right to Health Bill
राइट टू हेल्थ बिल का विरोध - फोटो : Amar Ujala Digital
सरकारी सेवारत चिकित्सकों का एलान?
अखिल राजस्थान सेवारत चिकित्सक संघ (ARISDA) ने 28 मार्च को दो घंटे का पेनडाउन और 29 मार्च को सामूहिक अवकाश पर जाने का ऐलान किया है। ARISDA प्रदेशाध्यक्ष डॉ. लक्ष्मण सिंह ओला और प्रदेश महासचिव डॉ. दुर्गाशंकर सैनी ने आंदोलनकारी चिकित्सकों से वार्ता और सेवारत चिकित्सकों की लंबित मांगों पर संज्ञान नहीं लेने तक राज्य सरकार को सामूहिक अवकाश पर जाने की चेतावनी दी है। उन्होंने इसे चिकित्सक अस्मिता का आंदोलन बताते हुए एकता के साथ आंदोलन में शामिल होने की बात कही है। सूत्रों के मुताबिक इससे करीब 14 हजार सरकारी क्षेत्र के चिकित्सक और चिकित्सा कर्मी आंदोलन पर जा सकते हैं।

क्या है डॉक्टर्स की मांग?
  • जब तक राइट टू हेल्थ बिल को वापस नहीं लिया जाएगा, आंदोलन और विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा। बिल वापसी पर डॉक्टर्स अड़े हैं।
  • डॉक्टर्स का आरोप है कि यह बिल लागू होने पर प्राइवेट अस्पतालों में भी सरकारी अस्पतालों जैसी अव्यवस्थाएं और भीड़ बढ़ जाएगी। निजी अस्पतालों के कामकाज और उपचार में सरकार का सीधे दखल बढ़ जाएगा।
  • डॉक्टर्स का आरोप है कि इमरजेंसी शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। कोई भी मरीज या उसका परिजन इमरजेंसी की बात कहकर किसी भी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंच जाएगा। फ्री इलाज करने की बात करेगा।
  • इससे अस्पताल, डॉक्टर्स और मरीज के परिजनों में झगड़े और टकराव बढ़ेंगे। कोर्ट-कचहरी और मुकदमेबाजी आम हो जाएगी। इसलिए बिल को वापस लिया जाए।

Dispute between doctors and government regarding Right to Health Bill
बिल को लेकर डॉक्टरों का डर - फोटो : social media
क्या है प्राइवेट और सरकारी डॉक्टर्स का डर?
  • आंखों के अस्पताल में अन्य बीमारी या हादसे से ग्रसित मरीज आ गया, तो उसका इलाज कैसे संभव है।  
  • महिलाओं की डिलीवरी और गायनी अस्पताल में हार्ट पेशेंट या स्नेक बाइट का मरीज आ गया, तो वहां इमरजेंसी की हालत में भी उसका इलाज सम्भव नहीं है। इसलिए डॉक्टरों को इमरजेंसी के नाम पर सभी मरीजों का इलाज करने को बाध्य करना उचित नहीं है। यह तकनीकि और साइंटिफिकली अनुचित है।
  • RTH लागू होने पर हर मरीज के इलाज की गारंटी डॉक्टर की हो जाएगी। कोई गंभीर मरीज अस्पताल पहुंचा और अस्पताल में इलाज संभव नहीं है, तो स्वाभाविक रूप से मरीज को बड़े या संबंधित स्पेशलाइजेशन वाले अस्पताल में रेफर करना पड़ेगा।
  • रेफर के दौरान बड़े अस्पताल पहुंचने से पहले अगर मरीज की मौत हो गई, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा और उसकी गारंटी कौन लेगा ?
  • रेफर होने वाले मरीज की मौत नहीं हो, इसकी गारंटी डॉक्टर कैसे ले सकते हैं? इसलिए बिल के प्रावधान के कारण प्राइवेट हॉस्पिटल और मरीज के परिजनों में झगड़े-विवाद होंगे और मुकदमेबाजी बढ़ेगी।
  • प्राइवेट और सरकारी डॉक्टर्स का सबसे बड़ा डर यह है कि उन्हें सरकारी रेट पर मरीजों का इलाज करना होगा।
  • मरीज के बिल का भुगतान जब सरकार से मांगा जाएगा, तो उसमें बहुत लेट लतीफी होगी और 6 महीने तक लग सकते हैं।
  • विवाद की स्थिति में भुगतान पेंडिंग में भी चल सकता है।
  • प्राइवेट अस्पतालों में इलाज की रेट और सरकारी अस्पतालों में इलाज की रेट अलग-अलग होती है। सरकार अपनी तय रेट के हिसाब से भुगतान के लिए अस्पतालों को बाध्य करेगी।
  • मरीज को इलाज देने के बाद प्राइवेट हॉस्पिटल को अपनी एम्बुलेंस से ही ट्रांसफर करना, शिफ्ट करना या घर छोड़ना पड़ेगा। इससे क्रिटिकल मरीजों की क्वालिटी केयर पर असर पड़ेगा।
  • राजस्थान के अस्पतालों में व्यवस्थाएं चरमराने पर मरीज दिल्ली-मुम्बई जैसे महानगरों में इलाज के लिए जाने को मजबूर होंगे। यह बिल राजस्थान में चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं को दो दशक पीछे धकेलने वाला कदम साबित हो सकता है।
  • घाटे और आर्थिक तंगी, अव्यवस्थाओं के कारण प्रदेश के प्राइवेट हॉस्पिटल्स बंद होने के कगार पर आ सकते हैं।
  • डॉक्टर्स का तर्क है कि इंदिरा रसोई की तर्ज पर सरकार प्राइवेट होटल, रेस्टोरेंट को राइट टू फूड के लिए जिस तरह मजबूर नहीं कर सकती है। उनकी क्वालिटी के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है, उसी तरह प्राइवेट हॉस्पिटल में भी दखल नहीं दिया जाना चाहिए।
  • डॉक्टर्स का कहना है कि बहुत कम और बड़े ट्रस्ट के अस्पतालों को ही सरकार ने रियायती जमीनें दी हैं, उन पर सरकार चाहे तो बिल लागू कर सकती है। लेकिन सभी प्राइवेट अस्पतालों पर बिल को लागू नहीं किया जाना चाहिए।
  • प्राइवेट हॉस्पिटल या हेल्थ केयर सेंटर में किराया, बिजली का बिल, डॉक्टर्स, मेडिकल, पैरामेडिकल, नर्सिंग स्टाफ और अन्य कर्मचारियों की सैलरी, हाइजीन, सुविधाओं, एयरकंडीशनिंग, महंगी मशीनों, उपकरणों के बिल, ईएमआई, खर्चे अस्पतालों को चुकाने पड़ते हैं। सरकार प्राइवेट हॉस्पिटल को ये सारी सुविधाएं और चार्ज उपलब्ध करवाने को तैयार है, तो प्राइवेट डॉक्टर्स फ्री या सरकारी रेट्स पर सर्विसेज देने को तैयार हैं।
  • रेजीडेंट डॉक्टर्स के बाद सरकारी सेवारत डॉक्टर्स ने भी डॉक्टर्स के समर्थन में हड़ताल पर जाने का ऐलान किया है। सेवारत डॉक्टर्स भी बड़ी संख्या में प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं। क्लीनिक और हेल्थ केयर सेंटर चलाते हैं। सूत्रों के मुताबिक बहुत से डॉक्टर्स प्राइवेट अस्पतालों में ऑपरेशन और प्रैक्टिस भी करते हैं। बिल का असर उन पर भी पड़ेगा। सरकारी सेवा से रिटायरमेंट के बाद खुद का प्राइवेट हॉस्पिटल खुलने की मंशा रखने वाले डॉक्टर्स भी बिल से चिंतित हैं।

Dispute between doctors and government regarding Right to Health Bill
बिल को लेकर सरकार का मत - फोटो : Amar Ujala Digital
क्या है सरकार का पक्ष ?
  • मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने डॉक्टर्स से हड़ताल खत्म करने की अपील करते हुए कहा है कि यह जनहित में नहीं है। गहलोत इस मुद्दे पर लगातार मुख्य सचिव और चिकित्सा मंत्री, अधिकारियों के साथ बैठकें कर रहे हैं।
  • सीएम अशोक गहलोत का कहना है कि राजस्थान सरकार प्रदेश की जनता को स्वास्थ्य की देखभाल के लिए कानूनी अधिकार देना चाहती है।
  • गहलोत का कहना है कि सरकार की मंशा और नीयत को डॉक्टर्स को देखना चाहिए। राजस्थान देश में ऐसा पहला राज्य है जहां राइट टू हेल्थ बिल पास हुआ है। इससे निरोगी राजस्थान और स्वास्थ्य का अधिकार आम जनता को मिल सकेगा। गरीब, मिडिल क्लास सभी वर्गों की मेडिकल फैसिलिटी और इलाज पर बराबर पहुंच बनेगी। बिना इलाज या इलाज के अभाव में किसी राजस्थान वासी या मरीज की मृत्यु नहीं हो, सरकार की यह मंशा है।
  • चिकित्सा और स्वास्थ्य मंत्री परसादीलाल मीणा का कहना है कि इस बिल को वापस नहीं लिया जाएगा। राजस्थान पहला राज्य है जहां राइट टू हेल्थ लागू किया जा रहा है।
  • सरकार हड़ताल कर रहे प्राइवेट अस्पतालों और डॉक्टर्स से लगातार बातचीत कर रही है। खुद सीएम, चिकित्सा मंत्री, मुख्य सचिव स्तर पर उच्च स्तरीय बैठक लगातार की जा रही हैं।
  • डॉक्टर्स के प्रतिनिधिमंडल से जायज और उचित मांगें रखने को कहा गया है, जिस पर सरकार पॉजिटिव निर्णय लेने को तैयार है। लेकिन बिल वापसी की मांग उचित नहीं है।
  • चिकित्सा मंत्री परसादीलाल मीणा का कहना है कि बहुत से निजी अस्पताल और मेडिकल कॉलेजों ने राज्य सरकार से रियायती दरों पर और एक रुपये टोकन मनी पर जमीनें ली हैं। अब उनका फर्ज बनता है कि वो प्रदेश की आम जनता के इलाज और स्वास्थ्य के अधिकार के लिए भागीदारी निभाएं।
  • सरकार चाहती है कि चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना और सरकारी कर्मचारियों की राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) के दायरे में ज्यादातर प्राइवेट अस्पताल आएं और योजना में खुद को एम्पेनल्ड करवाएं। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को 25 लाख रुपये तक का उपचार मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत अस्पतालों में मिल सके।
  • सरकार का यह भी कहना है कि आईएमए, डॉक्टर्स और विपक्ष सभी से बातचीत और सुझावों के आधार पर ही आरटीएच बिल विधानसभा में पास किया गया है। इसका अवमानना कर चिकित्सक विधानसभा का अपमान नहीं कर सकते हैं। विपक्ष और चिकित्सकों की मांग पर 50 बेड से ज्यादा बेड संख्या वाले अस्पतालों को रूल्स में शामिल किया जाएगा।
  • सरकार का कहना है कि बिल में प्रावधान किया गया है कि मरीज या उनके परिजन इलाज के बाद अस्पताल का बिल चुकाने में असमर्थ रहते हैं तो सरकार बिल का पुनर्भरण करेगी। इसलिए निजी चिकित्सकों और अस्पतालों की आपत्ति जायज नहीं है।
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