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Explainer: जयपुर बम ब्लास्ट में 71 मौतें और 185 घायल, 1293 लोगों की गवाही, फिर हाईकोर्ट से कैसे बरी हुए आरोपी?

Neeraj Sharma नीरज शर्मा
Updated Sun, 02 Apr 2023 08:52 AM IST
सार

जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट:  निचली अदालत से मृत्युदंड और राजद्रोह के दोषियों का हाईकोर्ट से बरी होना और हाईकोर्ट की जांच एजेंसी पर टिप्पणी गंभीर सवाल खड़े करती है। आइए, इस EXPLAINER में जानते हैं बम ब्लास्ट से लेकर हाईकोर्ट के फैसले तक की पूरी कहानी... 

All You Need To Know About Jaipur Serial Bomb Blast Case Rajasthan High Court Verdict
जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट - फोटो : Amar Ujala Digital

विस्तार

13 मई 2008 गुलाबी नगरी की वो शाम, जब आतंकी जयपुर शहर को खून से रंग से रंग गए। परकोटे में 8 सीरियल बम ब्लास्ट मंदिरों के बाहर और मुख्य बाजारों में हुए। इनमें 71 लोगों की मौत हुई और 185 से ज्यादा घायल हुए। कोर्ट में लंबी सुनवाई के बाद चार आरोपियों को दोषी करार देते हुए मृत्युदंड दिया गया। इसके बाद बीते बुधवार को हाईकोर्ट से चारों आरोपी बरी हो गए। 



कुल 9 बम जयपुर शहर में फिट किए गए, 8 में धमाके हुए, बड़ी संख्या में लोगों की जानें गईं। कई परिवार उजड़ गए। 1293 गवाह और कई सुबूत पेश हुए। फिर भी आरोपी बरी हो गए। यह जांच एजेंसी, एटीएस, राजस्थान सरकार की ओर से पैरवी पर बड़े सवाल खड़े करता है।


जस्टिस पंकज भंडारी और समीर जैन की डिविजनल बेंच ने सुनाया फैसला
राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज भंडारी और समीर जैन की डिविजनल बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जांच अधिकारी को लीगल जानकारी नहीं है। इसलिए जांच अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई के लिए DGP को निर्देश दिए। कोर्ट ने मुख्य सचिव को भी जांच करने वाले अफसरों की जांच कराने को कहा है। निचली कोर्ट ने UAPA के तहत अलग-अलग धाराओं में चार आरोपियों को दोषी माना था और एक आरोपी को बरी भी कर दिया था। मामले में कुल पांच आरोपी थे। इस मामले में 24 गवाह बचाव पक्ष ने पेश किए थे, जबकि सरकार की ओर से 1270 गवाह पेश हुए थे। सरकार की ओर से वकीलों ने 800 पेज की बहस की थी। कोर्ट ने 2500 पेज का फैसला सुनाया था। तभी से चारों आरोपी जेल में बंद हैं।

ये थे आरोपी
आरोपी शाहबाज हुसैन निवासी मौलवीगंज यूपी को 8 सितंबर 2008, मोहम्मद सैफ निवासी सरायमीर आजमगढ़ यूपी को 23 दिसंबर 2008, मोहम्मद सरवर आजमी निवासी चांदपट्टी, आजमगढ़ यूपी को 29 जनवरी 2009, सैफ उर्फ सैफुर्रहमान निवासी आजमगढ़ यूपी को 23 अप्रैल 2009 और मोहम्मद सलमान निवासी निजामाबाद यूपी को तीन दिसंबर 2010 को गिरफ्तार किया गया था।

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जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट के चार दोषी थे - फोटो : Amar Ujala Digital
किसे कहां ब्लास्ट का दोषी माना गया था?
सरवर आजमी को चांदपोल हनुमान मंदिर के पास बम रखने में दोषी माना था।
सलमान को सांगानेरी गेट पर हनुमान मंदिर के पास बम रखने में दोषी माना था।
मोहम्मद सैफ को माणकचौक के पास बम रखने में दोषी माना था।
सैफुर्रहमान को छोटी चौपड़ के पास बम रखने में दोषी माना था।

8 प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज हुई थी
राजस्थान हाईकोर्ट की टिप्पणी भी जांच एजेंसी और सरकार के सिस्टम पर बड़े सवाल खड़े करती है।  ब्लास्ट में पीड़ित परिवारों को न्याय के लिए 11 साल 7 महीने के लंबे वक्त का इंतजार करना पड़ा था। लेकिन हाईकोर्ट की ओर से आरोपियों के बरी हो जाने पर उन्हें बड़ा धक्का लगा है। इस केस में कुल 8 प्राथमिकी दर्ज की गई, 4 प्राथमिकी थाना कोतवाली में और 4 प्राथमिकी थाना माणक चौक में दर्ज की गई। चार्जशीट में 169 लोगों के बयान रखे गए थे। लेकिन सब धरे रह गए और आरोपी छूट गए।

राजस्थान हाईकोर्ट की टिप्पणी: 29/03/2023
राजस्थान हाईकोर्ट ने बुधवार 29 मार्च 2023 को जांच थ्योरी को गलत बताते हुए जयपुर बम धमाकों के उन चार आरोपियों को बरी कर दिया, जिन्होंने अदालत के समक्ष 28 अपीलें दायर की थीं। अपने फैसले में बेंच ने कथित तौर पर कहा कि जांच अधिकारी को कानूनी ज्ञान नहीं था। इसलिए जांच अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश डीजीपी को दिए गए। कोर्ट ने मुख्य सचिव को जांच अधिकारी से जांच कराने को भी कहा है।

हाईकोर्ट ने एटीएस की पूरी थ्योरी को गलत बताया
आरोपियों की पैरवी कर रहे एडवोकेट सैयद सादात अली ने कहा-'' हाईकोर्ट ने एटीएस की पूरी थ्योरी को गलत बताया है, इसलिए आरोपियों को बरी कर दिया गया है। '' 
 -सैयद सादात अली, आरोपियों के वकील

एएजी राजेश महर्षि बोले-सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे
एडिशनल एडवोकेट जनरल (AAG) राजेश महर्षि ने कहा-''हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे। इसकी तैयारी कर रहे हैं।''
-राजेश महर्षि, एडिशनल एडवोकेट जनरल (AAG),राजस्थान सरकार

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जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट के बाद का दृश्य - फोटो : Amar Ujala Digital
जमात-ए-इस्लामी हिंद (JIH) ने हाईकोर्ट के ऑर्डर का किया स्वागत
बम धमाकों के आरोपियों को बरी किए जाने पर हाईकोर्ट के इस फैसले का जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) ने गुरुवार को स्वागत किया। जेआईएच ने मामले में झूठे आरोप लगाने वाली पुलिस टीम के खिलाफ कार्रवाई की मांग के अलावा बरी हुए लोगों के लिए मुआवजे की मांग भी की है।

जमात-ए-इस्लामी-हिन्द के उपाध्यक्ष सलीम इंजीनियर ने कहा- '' जमात 2008 के जयपुर बम विस्फोट मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत करती है। न्यायमूर्ति पंकज भंडारी और न्यायमूर्ति समीर जैन के फैसले ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया है, जिसने इस मामले में चार आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी। हालांकि ये फैसला कुछ परेशान करने वाले सवाल उठाता है। जैसा कि अभियुक्तों को निर्दोष घोषित किया गया है, इसका अर्थ है कि अपराध के असली अपराधी अभी भी बड़े पैमाने पर हैं। क्या सरकार विस्फोटों की योजना बनाने और उन्हें अंजाम देने वाले अपराधियों की जांच और पता लगाने के लिए एक नई टीम का गठन करेगी? इसे ऐसा करना चाहिए, क्योंकि विस्फोटों में मारे गए लोगों के परिजनों को न्याय नहीं मिला है। विस्फोटों के पीड़ितों के लिए न्याय का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने जांच में कई खामियों की पहचान की है। जेआईएच अदालत से सहमत है कि झूठे आरोप लगाने वाले दोषी पुलिस अधिकारियों की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें दंडित किया जाना चाहिए। जमात-ए-इस्लामी हिंद की मांग है कि बरी हुए 5 लोगों को मुआवजा दिया जाए, क्योंकि उन्होंने अपने खिलाफ बनाए झूठे मुकदमों में 15 साल जेल में गंवाए।'' 
-सलीम इंजीनियर, उपाध्यक्ष, जमात-ए-इस्लामी-हिन्द

क्या है पूरा घटनाक्रम?
13 मई 2008 को जयपुर में सीरियल ब्लास्ट हुए थे। इसमें 71 लोगों की मौतें हुईं, 185 घायल हुए थे। 20 दिसम्बर 2019 को जिला न्यायालय की स्पेशल कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत फांसी की सजा सुनाई थी। एक आरोपी नाबालिग था। जानकारी के मुताबिक पांचों आरोपी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। एटीएस ने मामले में जांच कर थ्योरी पेश की थी। इसके बाद सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील कर दी थी। 

एटीएस की इस थ्योरी को हाईकोर्ट ने गलत माना ?
जयपुर सीरियल ब्लास्ट में बरी आरोपियों के एडवोकेट सैयद सादात अली के मुताबिक एटीएस की इस थ्योरी को हाईकोर्ट ने गलत माना है।

कोई आरोप साबित नहीं ?
आरोपियों पर जो चार्ज लगाए गए हैं, वो प्रूफ नहीं होते। एटीएस और सरकारी वकील एक भी चीज साबित नहीं कर पाए। जिन आरोपियों पर मुकदमा लगाया गया है उनके दिल्ली से जयपुर यात्रा करने, साइकिल खरीदने, बम इम्प्लांट करने की बात साबित नहीं हो पाई है।

हाईकोर्ट ने किसकी गलती बताई ?
आरोपियों के एडवोकेट के मुताबिक कोर्ट ने केस की जांच में ढिलाई के लिए पूरी गलती एटीएस अफसरों की बताई है। कोर्ट ने कहा-एटीएस के अधिकारियों ने जांच में कई कमियां रखीं। वह अपनी कहानी को कोर्ट के सामने सही तरीके और सबूतों के साथ पेश नहीं कर सकी। पुलिस जांच एजेंसी का कर्तव्य है कि सुरक्षित और रिकॉर्ड सहित सबूतों के जरिए ईमानदारी से जांच करें और आरोपियों को पहचान कर आरोप तय करें। इस मामले में एजेंसी फेल रही। इसलिए डीजीपी को जांच अधिकारियों पर कार्रवाई करने को कहा। साथ ही यह भी कहा कि जांच एजेंसी इतने सालों में यह पता नहीं लगा सकी कि बम किसने रखे। इसकी जांच आज भी जारी है।

हाईकोर्ट ने कहा जांच अधिकारी को कानूनी जानकारी ही नहीं 
एटीएस को 13 सितंबर 2008 को पहला डिस्क्लोजर स्टेटमेंट मिला, जबकि जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट 4 महीने पहले 13 मई 2008 को हुए थे। एटीएस ने 4 महीनों में बम धमाकों में इस्तेमाल साइकिलों को खरीदने के सभी बिल बरामद किए थे, तो एटीएस को धमाके के तीन दिन बाद किसने बताया कि यहां से साइकिलें खरीदी गई हैं। धमाकों के बाद 4 महीनों के दौरान एटीएस ने क्या कार्रवाई की ?
  • हाईकोर्ट ने कहा - साइकिलें खरीदने की पेश बिल बुक पर साइकिल के जो नम्बर हैं, वो सीज की गई साइकिलों के नंबर से मिसमैच करते हैं। इसलिए एटीएस की यह थ्योरी भी गलत मानी गई।
  • एटीएस ने बताया था कि 13 मई 2008 को आरोपी दिल्ली से जयपुर आए। फिर जालूपुरा स्थित करीम होटल पर खाना खाया और किशनपोल बाजार से साइकिलें खरीदीं। फिर उनमें बम प्लांट किए और शाम 4.30 से 5 बजे के बीच जयपुर रेलवे स्टेशन से शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन से वापस दिल्ली चले गए। यह सब एक ही दिन में कैसे मुमकिन हो सकता है? 
  • कोर्ट ने कहा- एटीएस और सरकारी वकील आरोपियों के दिल्ली से जयपुर यात्रा करने के उनके नाम के टिकट पेश नहीं कर सके, साइकिलें खरीदने के बिल उनके नाम से नहीं मिले। 
  • एटीएस ने आतंकियों का बम में इस्तेमाल करने वाले छर्रे दिल्ली की जामा मस्जिद के पास से खरीदना बताया, लेकिन एटीएस-पुलिस ने जो छर्रे पेश किए और बम में इस्तेमाल हुए छर्रों की एफएसएल रिपोर्ट मेल नहीं खा सकी। एफएसएल रिपोर्ट में सामने आया कि घटना स्थल पर मिले छर्रे और मारे गए और लोगों के शरीर में घुरे छर्रे एटीएस की ओर से पेश छर्रों से मैच नहीं करते हैं।

शिनाख्ती परेड को गैर कानूनी बताया
हाईकोर्ट ने आरोपियों की शिनाख्ती परेड को गैर कानूनी कहा है, क्योंकि मजिस्ट्रेट और आईओ एक ही समय में शिनाख्ती परेड के दौरान जेल में मौजूद थे। नियमों के मुताबिक शिनाख्ती परेड के दौरान जांच अधिकारी (आईओ)  जेल परिसर में मौजूद नहीं होना चाहिए, लेकिन आईओ और मजिस्ट्रेट के जेल में एक समय पर जाने और आने के रजिस्टर में मिले साइन कोर्ट में पेश किए गए।

न्यूज चैनल प्रतिनिधियों को कोर्ट में पेश ही नहीं किया
दिल्ली से दो न्यूज चैनलों ने दावा किया था कि उन्हें ईमेल और वीडियो मिले हैं। इसमें इंडियन मुजाहिद्दीन ने ब्लास्ट की जिम्मेदारी ली थी। उस ई मेल को कोर्ट के सामने पेश ही नहीं किया गया। जिन लोगों ने दावा किया था कि उनके न्यूज चैनल में ई मेल आया है उन्हें कोर्ट में एग्जामिन नहीं कराया गया। अगर दोनों ही न्यूज चैनलों के प्रतिनिधियों को कोर्ट के सामने पेश किया जाता, तो कई जानकारी सामने आ सकती थीं, लेकिन एटीएस के अधिकारियों ने उन्हें पेश नहीं किया। 

एडीजी क्राइम के सुपरविजन में बनी थी जांच टीम
जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट मामले की जांच के लिए एडीजी क्राइम और एडीजी एटीएस-एसओजी एके जैन के नेतृत्व में SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) गठित हुई थी। जिसमें आईजी रैंक लक्ष्मण मीणा (अभी बस्सी से विधायक),डीआईजी रैंक अफसर ए.पोन्नूचामी, डीआईजी क्राइम सौरभ श्रीवास्तव, एसपी सिटी नॉर्थ राघवेंद्र सुहासा, एएसपी सत्येंद्र राणावत, एएसपी महेंद्र सिंह चौधरी ने मामले की जांच की थी। एएसपी सिटी नॉर्थ महेन्द्र चौधरी को आईओ बनाया गया था। चालान पेश करने वाले एएसपी सुत्येन्द्र सिंह राणावत थे। लेकिन इस मामले में और जांच में खामियों को लेकर इसमें से अभी तक किसी ने कोई बयान नहीं दिया है।

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जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट के बाद का दृश्य - फोटो : Amar Ujala Digital
यह थी राजस्थान एटीएस की थ्योरी
  • इंडियन मुजाहिद्दीन (IM) के 12 आतंकवादी 13 मई 2008 को दिल्ली से डीलक्स बस में सवार होकर बम लेकर जयपुर आए थे।
  • जालूपुरा में एक होटल पर इन्होंने खाना खाया।
  • आरोपियों ने जयपुर के किशनपोल बाजार से 9 साइकिलें खरीदी थीं।
  • साइकिलों के पीछे की सीट पर बैग या टोकरी में टाइम बम फिट करके इन्हें जयपुर के परकोटा शहर में अलग-अलग भीड़भाड़ वाली और धार्मिक जगहों पर खड़ा कर दिया गया।
  • इसके बाद सभी आतंकवादी रेलवे स्टेशन पर एक साथ शाम 4.30-5 बजे के करीब मिले और शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन से दिल्ली पहुंच गए। 
  • जयपुर शहर में उन टाइम बमों से एक के बाद एक सिलसिलेवार 8 धमाके हुए। जिसनें पूरे शहर को दहला दिया। 9वें बम को बम डिस्पोजल स्क्वॉयड ने डिफ्यूज कर दिया। 
  • डिफ्यूज किया गया 9वां बम बेहद खतरनाक था। रात 8:10 बजे चांदपोल बाजार में बम डिस्पोजल स्कवॉड को साइकिल पर स्कूल बैग में 8 किलो वजन का टाइम बम मिला था। जो 9 बजे फटना तय था। 
  • रात 8:40 बजे बम डिफ्यूज हो गया था। इस बम में टाइमर, डेटोनेटर, साइकिल के छर्रें, लोहे की छोटी प्लेटें, बारूद और कई अन्य विस्फोटक सामग्री मिली थी। बम डिस्पोजल स्क्वॉयड ने इसे सबसे शक्तिशाली बम माना था। यह फट जाता तो बहुत से लोगों की जानें और जातीं।
  • जांच में सामने आया कि आतंकवादियों ने बम धमाकों से हताहत लोगों और फैली दहशत की खबरों को न्यूज चैनल पर देखा।
  • धमाकों के अगले दिन 14 मई को इंडियन मुजाहिद्दीन के नाम से एक ईमेल जारी हुआ। जिसमें जयपुर के सीरियल बम धमाकों की जिम्मेदारी ली गई। 
  • जांच-पड़ताल में सामने आया कि उत्तरप्रदेश के साहिबाबाद की एक कम्प्यूटर जॉब वर्क दुकान से यह ईमेल जारी हुआ था। 

केस में कुल कितने आरोपी हैं ?
पुलिस ने कुल 13 लोगों को आरोपी बनाया था। मुख्य रूप से इन 4 आरोपियों पर एटीएस ने नकेल कसी। जो जयपुर जेल में बंद थे, जिन्हें निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी।  कुल 13 लोगों में से 3 आरोपी अब तक फरार है, जबकि 3 दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं। बाकी बचे 2 गुनाहगार दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। 1 आरोपी को सबूतों के अभाव में कोर्ट पहले ही बरी कर चुका है।

जयपुर की निचली स्पेशल अदालत (डिस्ट्रिक्ट कोर्ट) ने आरोपियों को क्या सजा सुनाई थी ?
निचली अदालत ने 4 आरोपियों को 20 दिसंबर 2019 में फांसी की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने 4 आरोपियों को सजा सुनाते वक्त कहा था कि विस्फोट के पीछे जेहादी मानसिकता थी। कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी पाया था।   जयपुर धमाकों के बाद अहमदाबाद और दिल्ली में भी बम धमाके हुए। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ आरोपी हाईकोर्ट में अपील लेकर गए।   एक आरोपी घटना के दिन नाबालिग था, कोर्ट ने माना है कि वह 13 मई 2008 को 16 साल 10 महीने का था। 
  • 20 दिसम्बर 2019 को स्पेशल कोर्ट ने 4 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई और 1 को बरी कर दिया था।
  • मोहम्मद सैफ उर्फ कैरीऑन को बड़ी चौपड़, माणक चौक चूड़ीवालों के खंदे में हुए बम धमाके का दोषी माना गया।
  • सैफ उर्फ सैफुर्रहमान अंसारी को छोटी चौपड़ पर फूलवालों के खंदे में हुए बम धमाके का दोषी माना गया।
  • मोहम्मद सलमान को सांगानेरी गेट हनुमान मंदिर के बाहर बम धमाके केा दोषी माना गया।
  • मोहम्मद सरवर आज़मी को चांदपोल हनुमान मंदिर के बाहर बम धमाके का दोषी माना गया।
  • स्पेशल कोर्ट ने आरोपी शाहबाज हुसैन को सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।

ये तीन आतंकी तिहाड़ जेल में बंद 
3 आतंकी आरोपी दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद। आरिज उर्फ जुनैद दिल्ली में भी सीरियल बम धमाके करने के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद है। यासीन भटकल उर्फ अहमद सिद्दीकी और असदुल्लाह अख्तर उर्फ हड्डी भी तिहाड़ जेल में बंद हैं।

ये दो आरोपी एनकाउंटर में मारे गए
दो आरोपी एनकाउंटर में मारे गए। आतंकी मोहम्मद आतिफ और छोटा साजिद को दिल्ली एटीएस ने 19 सितम्बर 2008 को बाटला एनकाउंटर में मार कर ढेर कर दिया था। मोहम्मद सैफ ने पूछताछ में बताया था कि आतिफ ने जयपुर के छोटी चौपड़ पर बम प्लांट किया था। आतिफ ने बम प्लांट करने का वीडियो भी बनाया था। 

ये 3 आतंक के आरोपी अभी तक फरार
तीन आतंकी अभी तक फरार चल रहे हैं। इनमें मिर्जा शादाब उर्फ मलिक, मोहम्मद खालिद और साजिद बट बड़ा शामिल हैं। करीब 14-15 साल बाद भी एटीएस सुराग लगाकर इन्हें पकड़ नहीं सकी है।

आरोपियों ने हाईकोर्ट में क्या अपील की?
आरोपियों ने हाईकोर्ट में वकील के जरिए गुहार लगाते हुए कहा था कि हम बेगुनाह हैं, हमें झूठा फंसाया गया है और इस केस से हमारा कोई संबंध नहीं है। साथ ही 28 तरह की अपीलें हाईकोर्ट से की गई थीं।

13 मई 2008, गुलाबी नगरी, ये 8 सिलसिलेवार धमाके हुए
  • 13 मई 2008 की शाम 7:20 बजे पहला धमाका बड़ी चौपड़ पर हवामहल के सामने खंदा माणकचौक पर हुआ। जिसमें 1 महिला की मौत हुई, 18 लोग घायल हुए।
  • शाम 7:25 बजे दूसरा धमाका बड़ी चौपड़ के पास त्रिपोलिया बाजार स्थित मणिहारों के खंदे में ताला-चाबी वालों की दुकानों के पास हुआ था। धमाके में 6 लोगों की मौत हुई, 27 घायल हुए।
  • शाम 7:30 बजे तीसरा धमाका छोटी चौपड़ पर कोतवाली पुलिस स्टेशन के बाहर वाहन पार्किंग में हुआ। इसमें 2 पुलिसकर्मियों समेत 7 लोगों की मौत हुई, 17 व्यक्ति घायल हुए। 
  • शाम 7:30 बजे ही चौथा धमाका त्रिपोलिया बाजार में हुआ। जिसमें 5 लोगों की मौत हुई, 4 घायल हुए।
  • शाम 7:30 बजे पांचवा धमाका चांदपोल बाजार स्थित हनुमान मंदिर के बाहर हुआ। इस ब्लास्ट में सबसे ज्यादा 25 लोगों की जानें गईं। 49 लोग घायल हुए।
  • शाम 7:30 बजे छठा धमाका जौहरी बाजरा में नेशनल हैंडलूम के सामने हुआ। इसमें 9 लोगों की मौत हुई, 19 व्यक्ति घायल हुए।
  • शाम 7.35 बजे सातवां धमाका छोटी चौपड़ पर देवप्रकाश ज्वेलर्स शॉप के बाहर हुआ। जिसमें 2 लोगों की मौत हुई, 15 लोग घायल हुए।
  • शाम 7:36 बजे आठवां धमाका सांगानेरी गेट हनुमान मंदिर के बाहर हुआ। इसमें 17 लोगों की मौत हुई, 36 व्यक्ति घायल हुए।
  • 9वां बम चांदपोल बाजार में एक गेस्ट हाउस के बाहर ब्लास्ट करने की आतंकी साजिश थी। इसमें रात 9 बजे का टाइमर सेट किया गया था। लेकिन सूचना लगने पर बम डिस्पोज़ल स्क्वॉयड ने इसे करीब पौने 9 बजे डिफ्यूज कर निष्क्रिय कर दिया। यह बम नहीं फटा था।
हाईकोर्ट से कैसे बरी हुए आरोपी ?
राजस्थान पुलिस-एटीएस हमले की जिम्मेदारी लेने वालों तक पहुंची और आरोपियों को पकड़ा। लेकिन दोष साबित नहीं कर सकी। विस्फोट की जिम्मेदारी लेने वाला ईमेल यूपी के साहिबाबाद से भेजा गया था,वो मधुकर मिश्रा के साइबर कैफे से था। पुलिस ने आईपी एड्रेस के आधार पर साइबर कैफे से सीपीयू का रिकॉर्ड खंगाला और मेल करने वाले शाहबाज को गिरफ्तार किया। शाहबाज की शिनाख्त साइबर कैफे संचालक मधुकर मिश्रा से करवाई। मधुकर मिश्रा ने कोर्ट में शाहबाज की पहचान भी की थी।
  • पुलिस ने जांच कर शाहबाज को बम ब्लास्ट का पहला आरोपी बनाया था। लेकिन एटीएस साइबर कैफे में आने-जाने वालों की एंट्री वाला रजिस्टर सबूत के तौर पर पेश नहीं कर पाई। क्योंकि एटीएस ने उस रजिस्टर को जब्त ही नहीं किया।  
  • रजिस्टर से साबित होता कि शाहबाज साइबर कैफे में बम ब्लास्ट का मेल करने आया था। साइबर कैफे मालिक मधुकर मिश्रा से पूछताछ के बाद ईमेल करने वाले शख्स का जो स्कैक एटीएस ने तैयार करवाया था, वो कोर्ट में पेश नहीं किया गया। जबकि उसके आधार पर शाहबाज को पुलिस ने पकड़ा था। 
  • राजस्थान सरकार के वकील ने कोर्ट में स्केच को रिकॉर्ड पर ही नहीं लिया और पेश भी नहीं किया।  अगर स्केच कोर्ट में पेश होता, तो  शाहबाज का चेहरा मैच होने पर उसे सजा हो सकती थी। 
  • लेकिन आरोपी के वकील का पक्ष है कि एटीएस-पुलिस को स्केच में शाहबाज से शक्ल मिलती नहीं दिखी, उसे गलत आरोपी बनाया गया। इसलिए जानबूझकर स्केक की बात को कोर्ट से छिपाया गया।
  • आरोपी शाहबाज के वकील ने कोर्ट में सवाल उठाया कि पुलिस ने शाहबाज की मधुकर से शिनाख्त करवाने के लिए 2 सितंबर 2008 को मजिस्ट्रेट को आवेदन किया। उसी दिन पुलिस जयपुर से 400 किलोमीटर दूरी पर यूपी के साहिबाबाद में रहने वाले मधुकर मिश्रा को नोटिस कैसे तामील करवा सकती है। इससे साबित होता है कि   मधुकर मिश्रा उस वक्त जयपुर में थे और आरोपी शाहबाज भी उस समय पुलिस हिरासत में था। आरोपी के वकील ने कहा-पुलिस ने पहले ही मधुकर से शाहबाज की पहचान करवा दी थी। फिर पुलिस ने 3 सितंबर को शाहबाज को जेल भिजवाकर मधुकर मिश्रा की जेल में शाहबाज से शिनाख्त करवाई। शिनाख्तगी के दौरान पुलिस ने शाहबाज की भौहों पर कट का निशान नियमानुसार नहीं छिपाया, जिससे शिनाख्त परेड की विश्वसनीयता कम हो गई।
  • यूपी के साहिबाबाद के साइबर कैफे के जिस कंप्यूटर से बम ब्लास्ट के बाद ईमेल किया गया, पुलिस-एटीएस ने उसके सीपीयू को जब्त नहीं किया। शाहबाज को ईमेल करने के लिए सीडी किसने भेजी थी और उसके इंडियन मुजाहिद्दीन से संबंध को भी साबित नहीं किया जा सका। 
  • आरोपी शाहबाज ने खुद अपना लाई डिटेक्टर टेस्ट करने की मांग करते हुए कोर्ट में आवेदन किया। लेकिन राज्य सरकार ने इसका विरोध किया। इससे शाहबाज का पक्ष मजबूत हुआ कि वह सच बोल रहा है और वो इसे साबित भी करना चाहता है। लेकिन राज्य सरकार के वकीलों के विरोध से सरकार का पक्ष कमजोर हुआ।
  • मामले में जांच अधिकारी ने कोर्ट में स्वीकार कर लिया कि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है,  जिससे यह साबित किया जा सके कि शाहबाज बम ब्लास्ट करने वाले आरोपियों से मिला हुआ है। बम ब्लास्ट मामले में गिरफ्तार पहले आरोपी का ही दोष साबित नहीं हो सका।
  • जयपुर के किशनपोल बाजार के दुकानदार भी साइकिल खरीदने वाले आतंकियों की पहचान नहीं कर पाए।
  • पुलिस को तमाम कड़ियां जोड़कर आरोपियों का दोष साबित करना था। पुलिस को सलमान के साइकिल खरीदने, बम इम्प्लांट करने की कड़ी जोड़नी थई। साइकिल शॉप के मालिक राजेश लखवानी से सलमान की पहचान करवाना महत्वपूर्ण था। 13 मई 2008 के बाद 2 साल 6 महीने 11 दिन बीत जाने के बाद 24 मई नवम्बर 2010 को राजेश लखवानी से आरोपी समलान की शिनाख्त परेड़ करवाई गई। राजेश लखवानी तब आरोपी सलमान के चेहरे या हुलिए की कोई विशेष पहचान नहीं बता सका, जिससे वह उसे 2 साल बाद भी पहचान सके। सलमान के चेहरे पर निशान होने के कारण शिनाख्त परेड़ के दौरान उसके चेहरे पर सफेद टेप लगाया था। लेकिन कोर्ट में गवाही देते समय राजेश लखवानी ने कहा- उसे याद नहीं है कि सलमान के चेहरे पर ऐसी कोई टेप लगाई गई थी या नहीं।
  • शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन और डीलक्स बस में आरोपियों की पहचान करने वाले गवाह नहीं मिले। सलमान के लिए शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन का टिकट जितेंद्र सिंह नाम से करवाना बताया गया। जितेंद्र सिंह का नाम रिजर्वेशन में था, लेकिन सलमान के सफर करने की पहचान करने वाला नहीं मिला। बस स्टेंड और रेलवे स्टेशन के स्टाफ, कंडक्टर, टीटी को भी गवाह के तौर पर पेश नहीं किया जा सका। बस और ट्रेन के रिर्जेवेशन फॉर्म भी जब्त नहीं किए गए।
  • बताया गया कि आरोपी मोहम्मद सलमान ने जितेंद्र सिंह के नाम से राजेश लखवानी की दुकान से साइकिल खरीदी थी। राजेश लखवानी के हेमराज साइकिल एंड स्टोव वर्क्स और हरिओम साइकिल शॉप नाम से दो दुकान हैं। सलमान ने साइकिल हरिओम साइकिल स्टोर से खरीदी, लेकिन पुलिस ने हेमराज साइकिल एंड स्टोव वर्क्स नाम की दुकान से साइकिल बेचने का बिल कोर्ट में पेश किया। जबकि दोनों दुकान का रजिस्ट्रेशन अलग-अलग नंबर का है।  गलत बिल पेश करने से सलमान की दुकान से साइकिल खरीदने की बात साबित नहीं हो सकी।
  • बम ब्लास्ट के तुरंत साइकिल खरीद की बिल बुक जब्त करने की बजाय 4 साल बाद 28 मई 2012 को कोर्ट में पेश की गई।
  • जिस अंजू साइकिल कंपनी से खरीदी गई साइकिल से बम ब्लास्ट किया गया, उसका फ्रेम नम्बर मैच नहीं हुआ। पुलिस ने जिस साइकिल का बिल दिया, उसकी फ्रेम संख्या 97908 थी, जो साइकिल विस्फोट स्थल से बरामद हुई उसकी फ्रेम संख्या 30616 थी। बिल बुक में 682 नाम से दो बिल थे। इनमें एक 682 नंबर के बिल को नीली स्याही से '2' को '1' बनाकर कार्बन कॉपी में बदलकर 681 कर दिया गया। मूल बिल संख्या 682 के फॉन्ट को भी 681 कर दिया गया । बिलों में कांट-छांट पाई गई। 
  • जो  बिल बुक कोर्ट में पेश की गई,वो बिजनेस में काम में नहीं ली जाती थी, यह भी पता चला। क्योंकि उस बिल बुक में कोई VAT नहीं लगाया गया।  जबकि दुकान से जारी बाकी बिलों में VAT का कॉलम भरा हुआ पाया गया।

All You Need To Know About Jaipur Serial Bomb Blast Case Rajasthan High Court Verdict
जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट के बाद का दृश्य - फोटो : Amar Ujala Digital
हाईकोर्ट के आदेश के बाद नेताओं के महत्वूपूर्ण बयान बयान
''आतंकी घटना करने वालों की रिहाई दुखद है। किसी ने तो ब्लास्ट किए होंगे ना ? जांच में लापरवाही होना बेहद अफसोसजनक है। सरकार नए सिरे से जांच करे। इसलिए सरकार को निर्णय के खिलाफ अपील दायर कर नए सिरे से जांच कर सबूत इकट्ठा करने चाहिए। साथ ही जिम्मेदार लोगों के खिलाफ जांच होनी चाहिए कि ऐसा कैसे हुआ ? उन लोगों को लोअर कोर्ट से मौत की सजा सुनाई गई है, तो सजा कम होना एक अलग बात होती है या उनमें उसमें असहमति होना एक बात होती है। लेकिन सबूतों की वजह से उन्हें रिहा कर दिया गया है। यह बहुत गंभीर मामला है। जिन घरों में लोगों की मौतें हुई हैं, उन्हें भी तो हमें जवाब देना पड़ेगा।''
- सचिन पायलट, पूर्व डिप्टी सीएम, राजस्थान

''राज्य सरकार जयपुर बम ब्लास्ट मामले में बरी हुए आरोपियों को लेकर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी। सरकार 2008 के जयपुर सीरियल ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करेगी। 2019 के जिला न्यायालय के फैसले को पलटते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय ने सभी आरोपियों को बरी किया है। राज्य सरकार की मंशा है कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले, इसलिए हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध राज्य सरकार उच्चतम न्यायालय में शीघ्र ही विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल करेगी। साथ ही इस प्रकरण में पैरवी के लिए नियुक्त अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेन्द्र यादव की सेवाएं समाप्त करने का निर्णय लिया है।''
- अशोक गहलोत, मुख्यमंत्री, राजस्थान

'' जयपुर बम धमाके के सभी आरोपियों का बरी हो जाना बताता है कांग्रेस न्याय नहीं वोट देख रही है। विस्फोट में 80 निर्दोष लोगों की जान गई,लेकिन गहलोत सरकार ने तुष्टिकरण को चुना, जिसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि सरकार के वकील सुनवाई में ही नहीं गए और ये पहली बार नहीं है। यही कांग्रेस की सियासत है।''
- गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय जलशक्ति मंत्री

'' कांग्रेस हमेशा तुष्टिकरण की राजनीति करती है। जयपुर बम ब्लास्ट के मामले में हाईकोर्ट में सरकार ने प्रभावी पैरवी नहीं की, जबकि कांग्रेस सरकार संकट में आती हैं,तो अपने को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील खड़े करती हैं। इस केस में तो सरकार द्वारा नियुक्त अतिरिक्त महाअधिवक्ता ने कई दिनों तक पैरवी नहीं की, सवाल उठता है,ऐसा उन्होंने किसके कहने पर किया।''
- सीपी जोशी, प्रदेशाध्यक्ष, बीजेपी, राजस्थान

'' जयपुर को छलनी कर 80 निर्दोष लोगों की जान लेने वाले आतंकियों को सरकार की लापरवाही से बरी कर दिया गया। ये लापरवाही नहीं अपराध है। इसकी जांच होनी चाहिए कि इन आतंकियों को बचाने के लिए सरकार ने किसके दबाव में आकर काम किया है?  आखिर क्यों पैरवी ठीक से नहीं की? ''
- सतीश पूनिया, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष, बीजेपी, राजस्थान

"मई 2008 में गुलाबी नगर को रक्त रंजित कर 80 लोगों की जान लेने और कई लोगों को अपाहिज बनाने वाले जयपुर बम ब्लास्ट मामले में कांग्रेस सरकार ने ढंग से पैरवी नहीं की। हाईकोर्ट का यह फ़ैसला उसी का परिणाम है। घटना के बाद आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन ने इसकी ज़िम्मेदारी ली थी।ऐसे गम्भीर प्रकरण को सरकार ने जान बूझकर हल्के में लिया, वरना निचली अदालत का फ़ैसला बरकरार रहता। इस केस में तो सरकार के अतिरिक्त महाअधिवक्ताओं ने कई दिनों तक पैरवी ही नहीं की। कहीं सरकार के इशारे पर तो ऐसा नहीं हुआ ? आज उन परिवारों पर क्या बीती होगी, जिनके अपने उस वक्त हुए धमाकों में जान गँवा बैठे? किसी का सुहाग उजड़ा तो किसी का भाई उससे जुदा हुआ।किसी का पिता, किसी की माँ, किसी की बहन,किसी के बच्चे इस हादसे में चल बसे। क्या उनकी चीखें इस सरकार के कानों तक नही पहुंच रहीं ? कहीं सरकार ने तुष्टिकरण के चलते तो ऐसा नहीं किया ? इस प्रकरण में सरकार दोषी है। सरकार की मंशा के अनुरूप जयपुर में हुए बम ब्लास्ट के आरोपी भले ही फ़िलहाल बरी हो गए हों, लेकिन जनता समय पर इसका जवाब देगी।"
- वसुंधरा राजे, पूर्व सीएम
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