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प्लास्टिक हमारे खून तक पहुंच रहा है क्योंकि प्रकृति इसे वापस लौटा रही है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह पता चला है कि हमारे नमक में माइक्रोप्लास्टिक मिल रहा है। हम हर दिन हजारों टन प्लास्टिक कचरा पैदा कर रहे हैं। इसलिए गंगा से लेकर समुद्र तक में प्लास्टिक का कचरा बढ़ रहा है।
नदियों के जरिये गंगा में पहुंच रहा
नेशनल प्रॉडक्टिविटी काउंसिल (एनपीसी) ने यूनाइटेड नेशन्स एनवायरनमेंट प्रोग्राम (यूनेप) के साथ मिलकर गंगा तट पर बसे हरिद्वार, आगरा और प्रयागराज के किनारे प्लास्टिक प्रदूषण के स्रोत की पड़ताल की।
हमारे रक्त में प्लास्टिक
हमारे शरीर में नमक के सहारे माइक्रोप्लास्टिक पहुंच रहा है। इसमें पॉलीइथाइलीन, पॉलिएस्टर और पॉलीविनाइल क्लोराइड जैसे पॉलिमर हैं, जो गैर संचारी रोगों को बढ़ावा दे रहे हैं।
सरकार की पहल
पृथ्वी मंत्रालय ने जानकारी दी है कि प्लास्टिक के खिलाफ 2019 में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लिया। प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण, संग्रहण और निपटान के लिए बुनियादी ढांचा मजबूत किया जा रहा है।
लाल रक्त कोशिकाओं की झिल्लियों से चिपक सकता है
नई दिल्ली स्थित एम्स के डॉ. संजय राय ने बताया-
पांच बार लपेट लो पूरी धरती
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर वर्ष दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक बैग उपयोग होते हैं, जो सभी प्रकार के अपशिष्टों का 10 फीसदी है। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पूरे विश्व में इतना प्लास्टिक हो गया है कि इससे पृथ्वी को पांच बार लपेटा जा सकता है।
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