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विश्व मस्तिष्क ट्यूमर दिवस: फोन की ‘स्मार्ट’ लत, मस्तिष्क की दुश्मन, देश में 11 फीसदी की दर से बढ़ रहे मामले

परीक्षित निर्भय, नई दिल्ली। Published by: देव कश्यप Updated Thu, 08 Jun 2023 06:43 AM IST
सार

घंटों फोन पर रहना, सोते समय भी कान के पास रखना और कई घंटे तक वेब सीरीज देखने की आदत। यह सब आगे चलकर मस्तिष्क से जुड़ी गंभीर बीमारियां पैदा कर सकती हैं, जिनमें से एक मस्तिष्क ट्यूमर यानी ब्रेन ट्यूमर भी है। विश्व मस्तिष्क ट्यूमर दिवस पर बीमारी से बचने, समय पर जांच और इलाज के बारे में बताती परीक्षित निर्भय की यह रिपोर्ट...

World Brain Tumor Day: smart Phones addiction enemy of the brain
ब्रेन ट्यूमर (सांकेतिक तस्वीर)। - फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार
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नई दिल्ली स्थित सफदरजंग अस्पताल के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. केबी शंकर बताते हैं कि डिजिटल स्क्रीन का संबंध सीधे मस्तिष्क और उससे जुड़े विकारों से है। इसे लेकर अब तक कई अध्ययन भी सामने आए हैं। हालांकि, जिस तरह कुछ साल पहले तक फेफड़े के कैंसर और धूम्रपान के बीच संबंध स्थापित नहीं हुआ था, उसी तरह फोन और ब्रेन ट्यूमर के बीच संबंध विधिवत स्थापित नहीं है, लेकिन अगले 5-10 साल में यह प्रमाणित हो जाएगा कि मोबाइल फोन की वजह से इसके मामले बढ़ रहे हैं। इसके अलावा तनावपूर्ण जीवन शैली, प्रदूषण और खानपान भी इसके कारण हैं।

  • 11 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं भारत में ब्रेन ट्यूमर के मामले।
  • 2025 तक सालाना 36,258 मामले दर्ज किए जा सकते हैं।
  • 2020 में 32,729 लोगों में ब्रेन ट्यूमर की पुष्टि हुई।


जल्दी जांच से बचेगी जान, एआई मददगार
विशेषज्ञों के अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जरिए ब्रेन ट्यूमर की जल्दी पहचान हो सकती है। जिन शहरों में विशेषज्ञता युक्त अस्पताल नहीं है, वहां जिला अस्पतालों में इस तरह की मशीनें होनी चाहिए। मौजूदा समय में ज्यादातर एमआरआई मशीन एआई आधारित हैं, यह मस्तिष्क में ट्यूमर की सही जगह के साथ उसके आसपास की कोशिकाओं के बारे में भी बता सकती हैं।



सभी मामलों में सर्जरी की जरूरत नहीं
नई दिल्ली स्थित जीबी पंत सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के डॉ. दलजीत सिंह बताते हैं कि  हर ट्यूमर की सर्जरी भी जरूरी नहीं होती। अगर मरीज का ट्यूमर बहुत छोटा है, तो पहले दवाएं दी जाती हैं। एक निश्चित समय तक मरीज में दवाओं का असर देखा जाता है। फिर से उसकी एमआरआई कराते हैं और देखते हैं कि ट्यूमर के आकार में कोई बदलाव आया या नहीं। अगर आकार नहीं बदला है तो सर्जरी को टाला भी जा सकता है।
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