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why Akhilesh Yadav's pre-poll alliances fails every time explained
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SP Alliance: 2017 से हर चुनाव में अलग साथी के साथ गए अखिलेश, चुनाव खत्म-साथ खत्म, आखिर क्या है इसकी वजह?
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: जयदेव सिंह
Updated Sat, 09 Jul 2022 11:29 AM IST
सार
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2017 से हर चुनाव के पहले अखिलेश को नए साथी मिले। किसी भी चुनाव में उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं आए। नतीजे के बाद कभी सहयोगी ने साथ छोड़ दिया तो कभी खुद अखिलेश ने उनसे किनारा कर लिया।
समाजवादी पार्टी के बदलते साथी।
- फोटो : अमर उजाला।
2022 के विधानसभा चुनाव में कई छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़े अखिलेश के लिए चुनाव के बाद परेशानियां कम नहीं हो रही हैं। पहले चाचा शिवपाल यादव नाराज हुए। फिर आजम खान के नाराज होने की खबरें महीनों चलती रहीं। राज्यसभा चुनाव के बाद गठबंधन की साथी महान दल ने साथ छोड़ दिया। अब समाजवादी पार्टी गठबंधन में शामिल एक और पार्टी के गठबंधन छोड़ने की अटकलें हैं।
शुक्रवार रात एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के सम्मान में मुख्यमंत्री आवास पर रात्रि भोज का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में सपा विधायक शिवपाल यादव और सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर भी पहुंचे। कहा जा रहा है कि ओम प्रकाश राजभर की पार्टी भी गठबंधन छोड़ सकती है।
अखिलेश के लिए चुनाव के पहले गठबंधन और चुनाव खत्म होने के बाद उसके टूटने का ये पहला मौका नहीं है। 2016 में पार्टी पर प्रभुत्व के लिए परिवार में हुए संघर्ष के बाद हर चुनाव में ये देखने को मिलता है। यानी, जब से पार्टी अखिलेश यादव के नियंत्रण में आई है उसके बाद जितने चुनाव हुए हर चुनाव में ऐसा ही देखा गया।
चुनाव के पहले अखिलेश को नए साथी मिले। तब से अब तक किसी भी चुनाव में उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं आए। नतीजे के बाद कभी सहयोगी ने साथ छोड़ दिया तो कभी खुद अखिलेश ने उनसे किनारा कर लिया। आइये जानते हैं पिछले दस साल में सपा ने कब कैसे चुनाव लड़ा? चुनाव का नतीजा क्या रहा है? नतीजे का उसके गठबंधन पर क्या असर पड़ा?
अखिलेश यादव।
- फोटो : ANI
2012: अकेले चुनाव लड़कर सत्ता में आई थी सपा
2012 में समाजवादी पार्टी 401 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी। दो सीटों पर उनसे उम्मीदवार नहीं उतारे थे। कुंडा में राजा भैया और बाबगंज में राजा भैया के करीबी विनोद सोनकर के पक्ष में उम्मीदवार नहीं उतारे थे। दोनों सपा के समर्थन से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे और जीते थे। हालांकि, अब दोनों के बीच काफी तल्ख रिश्ता है। कभी अखिलेश कैबिनेट में मंत्री रहे राजा भैया ने अब अपना दल बना लिया है। 2022 के चुनाव में उनकी पार्टी को दो सीटें मिली हैं। ये वही सीटें हैं जो राजा भैया और विनोद सोनकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीतते रहे हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव में सपा ने किसी दल से गठबंधन नहीं किया था। राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 78 पर पार्टी ने चुनाव लड़ा। अमेठी और रायबरेली सीट पर राहुल गांधी और सोनिया गांधी के समर्थन पार्टी ने उम्मीदवार नहीं उतारे।
2017 में चुनाव की घोषणा के बाद एक साथ आए थे सपा और कांग्रेस।
- फोटो : सोशल मीडिया
2017: घऱ में घिरे अखिलेश ने लिया राहुल का साथ
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। इन चुनावों में 311 सीटों पर सपा ने उम्मीदवार उतारे। वहीं, 114 सीटों पर कांगेस ने चुनाव लड़ा। गठबंधन के बाद भी 24 सीटों पर दोनों के प्रत्याशी आमने-सामने थे। कुंडा और बाबागंज में 2012 की तरह ही 2017 में भी सपा ने राजा भैया और विनोद सोनकर को समर्थन दिया। इन दोनों सीटों पर कांग्रेस और सपा ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे। ये वही दौर था जब अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच सपा पर कब्जे की लड़ाई चल रही थी। परिवार में अकेले पड़े अखिलेश ने कांग्रेस का साथ लिया। हालांकि, चुनाव में उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। अखिलेश को सत्ता गंवानी पड़ी।
2019 में 25 साल बाद साथ आए थे मायावती और मुलायम सिंह यादव।
- फोटो : ANI
2018: लोकसभा उपचुनाव में अलग हुए सपा-कांग्रेस, बसपा से गठबंधन की नींव पड़ी
उत्तर प्रदेश में हुए चुनाव के करीब एक साल बाद राज्य में फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस और सपा के रास्ते अलग हो गए। दोनों ने इन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। लोकसभा उपचुनाव के प्रचार के दौरान अखिलेश यादव ने गठबंधन में आई दरार की वजह बताई। अखिलेश ने दावा किया कि गुजरात विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद कांग्रेस का व्यवहार बदल गया।
इस उपचुनाव में सपा के नए गठबंधन की नींव पड़ी। उपचुनाव के दौरान बसपा ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे। पार्टी ने सपा के लिए प्रचार तो नहीं किया, लेकिन अपने वोटरों को सपा उम्मीदवारों के पक्ष में वोट डालने का संदेश जरूर दिया। इस उपचुनाव में सपा को दोनों सीटों पर जीत मिली। इस जीत की बड़ी वजह बसपा का साथ मिलना माना गया। यहीं से 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा गठबंधन की नींव पड़ी।
2019 में एक साथ आए थे अखिलेश यादव और मायावती।
- फोटो : ANI
2019: 26 साल बाद आए सपा-बसपा, गठबंधन 26 हफ्ते भी नहीं चला
2019 के लोकसभा चुनावों के एलान के बाद अखिलेश यादव और मायावती ने सपा-बसपा गठबंधन का एलान किया। दोनों पार्टियों के साथ ही जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल भी इस गठबंधन का हिस्सा थी। 38 सीटों पर बसपा, 37 सीटों पर सपा और तीन सीटों पर रालोद ने उम्मीदवार उतारे। सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पक्ष में अमेठी और रायबरेली सीट से गठबंधन ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा।
नतीजों से पहले ज्यादातर सर्वे में दावा किया जा रहा है था कि भाजपा को इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश में होगा। सपा-बसपा गठबंधन को बड़ी कामयाबी मिलेगी। हालांकि, नतीजों में ऐसा कुछ नहीं हुआ। बसपा को सिर्फ दस सीटों पर जीत मिली। वहीं, सपा 2014 की ही तरह पांच सीटें ही जीत पाई। नतीजा आने के चंद दिन बाद ही मायावती ने सपा से गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया। मायावती ने कहा कि चुनाव के दौरान अखिलेश सपा के वोट बसपा उम्मीदवारों को दिलाने में नाकाम रहे।
2022 में ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा समेत कई छोटे दलों को साथ लाए अखिलेश।
- फोटो : ANI
2022: छोटे दलों को साथ लिया, नतीजों के बाद बारी-बारी बिछड़ रहे
2022 के चुनाव में सपा ने किसी बड़े दल से गठबंधन की जगह छोटे दलों को साधा। अखिलेश के पुराने सहयोगी जयंत चौधरी भी उनके साथ थे। जयंत की पार्टी रालोद के अलावा, सपा ने महान दल, अपना दल (कमेरावादी), सुभासपा, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी जैसे दलों के साथ अखिलेश ने गठबंधन किया।
चुनाव नतीजों के बाद ही सहयोगियों के नाराजगी की खबरें आनी शुरू हो गईं। सबसे पहला नाम सामने आया अखिलेश के चाचा और प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव का। सपा के चुनाव चिह्न पर लड़े शिवपाल सपा विधायकों की पहली ही बैठक में नहीं बुलाए जाने से नाराज हो गए।
राज्यसभा चुनाव के दौरान अखिलेश ने सपा के कोटे से रालोद के जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजा। इससे महान दल के केशव देव मौर्य नाराज हो गए। उन्होंने खुद को गठबंधन से अलग कर लिया। अब विधान परिषद चुनाव में बेटे को टिकट नहीं मिलने से सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर नाराज बताए जा रहे हैं।
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