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उत्तराखंड के एग्जिट पोल के नतीजों में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला बताया जा रहा है। इसके बाद से ही कुछ विधायकों को लेकर बात फंस नहीं जाए, इसे लेकर दोनों ही पार्टियां सतर्क हो गई हैं। एक तरफ भाजपा ने महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को राजधानी देहरादून रवाना कर दिया है, तो कांग्रेस ने चुनाव नतीजे सामने आने के बाद उत्तराखंड को संभालने की जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कंधे पर सौंप दी है। दोनों पार्टियों ने चुनाव के बाद किसी भी राजनीतिक स्थिति से निपटने के लिए प्लान बी तैयार करना शुरू कर दिया है।
भाजपा की राजनीति में सियासी फेरबदल के माहिर कहे जाने वाले विजयवर्गीय ने अपने उत्तराखंड प्रवास को निजी कारण बताया है। लेकिन दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद जैसे ही वे देहरादून पहुंचे, राज्य की सियासत गर्म हो गई है। रविवार को विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की और फिर निशंक से उनके आवास पर मिले। विजयवर्गीय की इन नेताओं से मुलाकातों ने प्रदेश की सियासत में हलचल शुरू कर दी है। इधर, एकाएक विजयवर्गीय की सक्रियता ने कांग्रेस को परेशानी में डाल दिया है। क्योंकि साल 2016 में कांग्रेस में जो सेंधमारी हुई थी, उस दौरान भाजपा के मुख्य रणनीतिकार विजयवर्गीय ही थे। यही वजह है कि पूर्व सीएम हरीश रावत से लेकर अन्य कांग्रेस नेता विजयवर्गीय को आड़े हाथों ले रहे हैं।
विजयवर्गीय के साथ निशंक की भी बढ़ी सक्रियता
एग्जिट पोल आने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक की भी सक्रियता बढ़ गई है। मतगणना से ठीक पहले निशंक की सक्रियता के यही मायने माने जा रहे हैं कि केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें खास मिशन सौंपा है, जिसे वह विजयवर्गीय के साथ अंजाम देंगे। संगठन के सूत्रों का कहना है कि निशंक को उत्तराखंड की राजनीति का पुराना अनुभव है। उनके भाजपा के साथ साथ कांग्रेस नेताओं के सभी अच्छे रिश्ते हैं। ऐसे में अगर पार्टी को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति यदि आती है या निर्दलीय विधायकों के समर्थन की जरूरत होती है, तो निशंक इसमें अहम रोल निभा सकते हैं।