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Uttar Pradesh: रामचरितमानस के बहाने जातिगत जनगणना की तैयारी! सियासी पिच पर 'पंडित और पिछड़ों' का खिंचा खाका

Ashish Tiwari आशीष तिवारी
Updated Mon, 06 Feb 2023 02:49 PM IST
सार

Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश की सियासत को करीब से समझने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दरअसल उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की राजनीति का कितना महत्व है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर राजनीतिक दल बगैर पिछड़ों की बात किए हुए उत्तर प्रदेश में सियासी कदम नहीं बढ़ा सकता...

Uttar Pradesh: श्री रामचरितमानस का अपमान करने वालों के विरोध में प्रदर्शन करते नेता।
Uttar Pradesh: श्री रामचरितमानस का अपमान करने वालों के विरोध में प्रदर्शन करते नेता। - फोटो : अमर उजाला (फाइल फोटो)

विस्तार

लोकसभा चुनावों में अभी एक साल का वक्त है, लेकिन सियासत की पिच उत्तर प्रदेश में मजबूती से तैयार होने लगी है। पिच की मजबूती के लिए रामचरितमानस के बहाने जातिगत जनगणना की गोलबंदी शुरू हो गई है। बिहार में तो जातिगत जनगणना के आंकड़े भी कुछ दिनों में आने वाले हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में इसी आधार पर सियासत का पारा जबरदस्त तरीके से गर्म हो रहा है। सियासी जानकार भी मानते हैं कि पिछड़ों की राजनीति करने और खेल बिगाड़ने का मौका विपक्ष को न मिले, इसीलिए उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी सियासी दांव चलते हुए जातिगत जनगणना का समर्थन कर दिया।

उत्तर प्रदेश में रामचरितमानस की चौपाई पर समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयान के साथ पवित्र ग्रंथ को फाड़ने की घटना से सियासत उफान पर है। उत्तर प्रदेश की सियासत को करीब से समझने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दरअसल उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की राजनीति का कितना महत्व है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर राजनीतिक दल बगैर पिछड़ों की बात किए हुए उत्तर प्रदेश में सियासी कदम नहीं बढ़ा सकता। उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषण राजकुमार सिंह कहते हैं कि जब स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस की चौपाई पर विवादित बयान दिया, तो समाजवादी पार्टी की सियासत के नजरिए से यह बयान बहुत उर्वरा लगा। वह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में जिस तरीके से रामचरितमानस की चौपाई से शुरू हुई सियासत जातिगत जनगणना पर पहुंच गई वह भी सियासत के लिहाज से बहुत उपजाऊ मानी जा रही है।

सियासी जानकारों का मानना है कि इस पूरे मामले में अगर राजनीतिक दलों को देखें तो भाजपा के लिए अब बहुत सधी हुई सियासी बयानबाजी और कवायद बेहद जरूरी मानी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह कहते हैं कि जिस तरीके से स्वामी प्रसाद मौर्य ने जातिगत जनगणना की बात कही उसमें केशव प्रसाद मौर्य के इस पूरे बयान को इसी मामले से जोड़ कर ही देखा जा रहा है। सियासी जानकार बताते हैं कि दरअसल समाजवादी पार्टी ने एक तरह से स्वामी प्रसाद मौर्य के चरित मानस की चौपाई पर दिए गए विवादित बयान को मूक सहमति दी है। क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्या के बयान से समाजवादी पार्टी पिछड़ों के लिहाज से सियासी पिच पर बैटिंग करना आसान बना जा रहा है। समाजवादी पार्टी ने इसके लिए पूरी तैयारी के साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों शहरों और गांव में एक बड़े आंदोलन की भूमिका भी बना ली। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस पूरे मामले में जिस तरीके से समाजवादी पार्टी माहौल बनाकर आगे बढ़ रही है, उसी तरीके से बहुजन समाज पार्टी ने भी रामचरितमानस की उसी चौपाई पर दलित कार्ड भी खेल दिया है।

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