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up assembly election 2022 bjp plan b, will the party now forward keshav prasad maurya face in assembly election to retain obc and backwad votes after exit of swami prasad maurya, will yogi adityanath not be the face of cm post?
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UP Assembly Election 2022: क्या भाजपा का प्लान बी तैयार है? क्या अब पार्टी केशव प्रसाद मौर्य को आगे करेगी?
स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी छोड़कर जाने के बाद भाजपा को इसलिए झटका लगा है क्योंकि यूपी की राजनीति में सबसे निर्णायक पिछड़े हैं। उत्तर प्रदेश में आबादी के लिहाज से सबसे बड़ा वर्ग यही है।
योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य
- फोटो : अमर उजाला
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स्वामी प्रसाद मौर्य समेत कुछ विधायकों के भारतीय जनता पार्टी छोड़ने और समाजवादी पार्टी ज्वाइन करने के बाद भाजपा को पिछड़ी जातियों खासकर गैर यादव ओबीसी वोट बैंक के खिसकने का डर है। अब तक योगी आदित्यनाथ के चेहरे और विकास कार्यों को आगे लाकर चुनाव लड़ने की बात हो रही थी, लेकिन पिछले सप्ताह के बाद घटनाक्रम जिस तेजी से बदला है, उसके बाद कहा जा रहा है कि पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है और पार्टी का प्लान बी तैयार है।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि योगी को अयोध्या के बजाए गोरखपुर से चुनाव लड़ने के लिए भेजा गया है। कई मामलों में केशव प्रसाद मौर्य को आगे रखा जा रहा है। सहारनपुर जनपद के बेहट से कांग्रेस विधायक नरेश सैनी, फिरोजाबाद के सिरसागंज सीट से समाजवादी पार्टी के विधायक हरिओम यादव और सपा के पूर्व विधायक धर्मपाल यादव ने जब कुछ दिनों पहले भाजपा में शामिल हुए तो उस कार्यक्रम में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा मौजूद थे। इसी तरह स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी छोड़ने के बाद पहली प्रतिक्रिया डिप्टी सीएम की तरफ से ही आई।
क्यों केशव प्रसाद मौर्य पर है भरोसा?
खासतौर पर कोरोना काल में कई विधायकों और उनके रिश्तेदारों को मदद नहीं मिली उसके बाद से उनमें आक्रोश बढ़ गया था। विधायकों की नाराजगी दिसंबर 2019 में ही सबके सामने आ गई थी। एक अप्रत्याशित घटनाक्रम में भाजपा के करीब 100 विधायक लखनऊ स्थित विधानसभा परिसर में अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे। इन विधायकों ने अपनी सरकार के अभिमानी हो जाने और मनमानी करने का आरोप लगाया था।
केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ी जाति का होने के कारण इस नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। ओबीसी वर्ग में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। माना जा रहा था कि केशव प्रसाद मौर्य अभी तक भाजपा के भीतर साइडलाइन थे और अचानक फिर पार्टी उन्हें तवज्जो देने लगी है। पार्टी उन्हें ओबीसी बोट बैंक को बचाने के लिए फ्रंट पर उतार सकती है।
पिछड़ी जातियों के वोट के समीकरण बदलने लगे
भाजपा से स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछड़ी जातियों के वोटों के समीकरण को लेकर कयास लगने शुरू हो गए हैं। अभी तक केशव प्रसाद मौर्य और स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ होने पर भाजपा पिछड़ी जातियों के वोट को लेकर ज्यादा चिंता में नहीं थी, लेकिन स्वामी के जाने के बाद अब दारोमदार सिर्फ केशव प्रसाद मौर्य पर आ गया है। स्वामी प्रसाद मौर्य की अपनी जाति समूह पर पकड़ मजबूत है। यूपी की राजनीति में सबसे निर्णायक पिछड़े हैं। आबादी के लिहाज से सबसे बड़ा वर्ग यही है। करीब 54 फीसदी पिछड़ों का साथ सरकार बनाने में मददगार होता है।
भाजपा शीर्ष नेतृत्व के सामने क्या चुनौती?
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राम दत्त त्रिपाठी के मुताबिक, जिस दिन स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा छोड़ी, उस दिन दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व की बैठक चल रही थी। इसमें योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे। मौर्य के पार्टी छोड़ने की खबर जब केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंची तो मुख्यमंत्री से यह कहा गया कि पिछड़े वर्ग और दलित जातियों को संभालने की चुनौती को देखते हुए क्यों नहीं अब केशव प्रसाद मौर्य को आगे किया जाए? इसलिए योगी आदित्यनाथ के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है क्योंकि उन्हें पार्टी नेतृत्व के जताए गए भरोसे को कायम रखना है।
क्या मौर्य अब योगी के समकक्ष हैं?
राम दत्त त्रिपाठी के मुताबिक आप टिकट बंटवारे की घोषणा की टाइमिंग पर भी गौर करिए। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों कहां से चुनाव लड़ेंगे, इसकी घोषणा भी एक ही समय की गई, यानी केशव प्रसाद मौर्य को योगी के समकक्ष खड़ा कर दिया गया है। जबकि इन दोनों नेताओं के क्षेत्र में चुनाव चौथे और पांचवें चरण में है। ऐसा लगता है कि यह भाजपा की मजबूरी बन गई है कि वह केशव प्रसाद मौर्य को आगे लाए, क्योंकि माना जा रहा है कि पिछड़े वर्ग में काफी असंतोष है।
मुख्यमंत्री का चेहरा कौन?
लेखक और चिंतक सीपी राय ने एक चुनावी चर्चा में कहा था कि इस बार चुनाव में सिर्फ जातियों की बात हो रही है और दस दिन में और घटनाक्रम बदलेगा। धीरे-धीरे महाभारत का दृश्य पैदा होगा कि ये इधर तो वो उधर। अभी भाजपा को पूरी तरह खारिज करना बेमानी होगा। भाजपा बहुमत से भी आ जाती है तो योगी की चुनौतियां बरकरार रहेंगी। हालांकि, उत्तर प्रदेश के एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते और वे मानते हैं कि भाजपा योगी के दम पर ही चुनाव लड़ेगी।
संघ ने भी दिए थे संकेत
मई 2021 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले की लखनऊ में भाजपा संगठन के पदाधिकारियों के साथ हुई बैठक में भी इस बात के संकेत मिले थे कि विधानसभा चुनाव में डिप्टी सीएम को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। 2017 का विधानसभा चुनाव भी पार्टी ने उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा था। उस वक्त मौर्य यूपी के प्रदेश अध्यक्ष थे और भाजपा 312 सीटें जीतने में कामयाब रही थी।
इसका सबसे बड़ा कारण ओबीसी वोट बैंक ही था। जब 2019 का लोकसभा चुनाव आया तो ओबीसी वोट के लिए पार्टी ने फिर केशव प्रसाद मौर्य की तरफ देखा और यह जिम्मेदारी दी गई थी कि उत्तर प्रदेश में तमाम पिछड़ी जातियों का जातिवार सम्मेलन करें और एक-एक कर उन्हें भाजपा के कार्यक्रमों से जोड़ें।
दलितों और पिछड़ी जातियों के नेताओं को टिकट पर जोर
पिछड़ी जातियों के वोट बैंक के खिसक जाने के डर से भाजपा ने शनिवार को उत्तर प्रदेश के पहले और दूसरे चरण के लिए उम्मीदवारों की जो सूची जारी की है उसमें करीब 60 फीसदी टिकट पिछड़ी और दलित जातियों के उम्मीदवारों को दिया गया है। पार्टी ने जोर देकर यह कहा कि सामान्य सीट पर भी दलित उम्मीदवार उतारा है। यह कहा जा रहा है कि मायावती के वोट बैंक को काटने के लिए आगे भी कई और दलित चेहरों को चुनाव में उतारा जा सकता है।
विस्तार
स्वामी प्रसाद मौर्य समेत कुछ विधायकों के भारतीय जनता पार्टी छोड़ने और समाजवादी पार्टी ज्वाइन करने के बाद भाजपा को पिछड़ी जातियों खासकर गैर यादव ओबीसी वोट बैंक के खिसकने का डर है। अब तक योगी आदित्यनाथ के चेहरे और विकास कार्यों को आगे लाकर चुनाव लड़ने की बात हो रही थी, लेकिन पिछले सप्ताह के बाद घटनाक्रम जिस तेजी से बदला है, उसके बाद कहा जा रहा है कि पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है और पार्टी का प्लान बी तैयार है।
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स्वामी प्रसाद मौर्य समेत कुछ विधायकों के भारतीय जनता पार्टी छोड़ने और समाजवादी पार्टी ज्वाइन करने के बाद भाजपा को पिछड़ी जातियों खासकर गैर यादव ओबीसी वोट बैंक के खिसकने का डर है। अब तक योगी आदित्यनाथ के चेहरे और विकास कार्यों को आगे लाकर चुनाव लड़ने की बात हो रही थी, लेकिन पिछले सप्ताह के बाद घटनाक्रम जिस तेजी से बदला है, उसके बाद कहा जा रहा है कि पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है और पार्टी का प्लान बी तैयार है।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि योगी को अयोध्या के बजाए गोरखपुर से चुनाव लड़ने के लिए भेजा गया है। कई मामलों में केशव प्रसाद मौर्य को आगे रखा जा रहा है। सहारनपुर जनपद के बेहट से कांग्रेस विधायक नरेश सैनी, फिरोजाबाद के सिरसागंज सीट से समाजवादी पार्टी के विधायक हरिओम यादव और सपा के पूर्व विधायक धर्मपाल यादव ने जब कुछ दिनों पहले भाजपा में शामिल हुए तो उस कार्यक्रम में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा मौजूद थे। इसी तरह स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी छोड़ने के बाद पहली प्रतिक्रिया डिप्टी सीएम की तरफ से ही आई।
Prayagraj News : श्रृंगवेरपुर धाम में सभा को संबोधित करते उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य
- फोटो : प्रयागराज न्यूज
क्यों केशव प्रसाद मौर्य पर है भरोसा?
खासतौर पर कोरोना काल में कई विधायकों और उनके रिश्तेदारों को मदद नहीं मिली उसके बाद से उनमें आक्रोश बढ़ गया था। विधायकों की नाराजगी दिसंबर 2019 में ही सबके सामने आ गई थी। एक अप्रत्याशित घटनाक्रम में भाजपा के करीब 100 विधायक लखनऊ स्थित विधानसभा परिसर में अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे। इन विधायकों ने अपनी सरकार के अभिमानी हो जाने और मनमानी करने का आरोप लगाया था।
केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ी जाति का होने के कारण इस नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। ओबीसी वर्ग में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। माना जा रहा था कि केशव प्रसाद मौर्य अभी तक भाजपा के भीतर साइडलाइन थे और अचानक फिर पार्टी उन्हें तवज्जो देने लगी है। पार्टी उन्हें ओबीसी बोट बैंक को बचाने के लिए फ्रंट पर उतार सकती है।
गुरु गोरखनाथ की पूजा करते योगी आदित्यनाथ
- फोटो : amar ujala
पिछड़ी जातियों के वोट के समीकरण बदलने लगे
भाजपा से स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछड़ी जातियों के वोटों के समीकरण को लेकर कयास लगने शुरू हो गए हैं। अभी तक केशव प्रसाद मौर्य और स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ होने पर भाजपा पिछड़ी जातियों के वोट को लेकर ज्यादा चिंता में नहीं थी, लेकिन स्वामी के जाने के बाद अब दारोमदार सिर्फ केशव प्रसाद मौर्य पर आ गया है। स्वामी प्रसाद मौर्य की अपनी जाति समूह पर पकड़ मजबूत है। यूपी की राजनीति में सबसे निर्णायक पिछड़े हैं। आबादी के लिहाज से सबसे बड़ा वर्ग यही है। करीब 54 फीसदी पिछड़ों का साथ सरकार बनाने में मददगार होता है।
भाजपा शीर्ष नेतृत्व के सामने क्या चुनौती?
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राम दत्त त्रिपाठी के मुताबिक, जिस दिन स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा छोड़ी, उस दिन दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व की बैठक चल रही थी। इसमें योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे। मौर्य के पार्टी छोड़ने की खबर जब केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंची तो मुख्यमंत्री से यह कहा गया कि पिछड़े वर्ग और दलित जातियों को संभालने की चुनौती को देखते हुए क्यों नहीं अब केशव प्रसाद मौर्य को आगे किया जाए? इसलिए योगी आदित्यनाथ के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है क्योंकि उन्हें पार्टी नेतृत्व के जताए गए भरोसे को कायम रखना है।
कार्यक्रम में गुफ्तगू करते सीएम योगी व डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य।
- फोटो : amar ujala
क्या मौर्य अब योगी के समकक्ष हैं?
राम दत्त त्रिपाठी के मुताबिक आप टिकट बंटवारे की घोषणा की टाइमिंग पर भी गौर करिए। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों कहां से चुनाव लड़ेंगे, इसकी घोषणा भी एक ही समय की गई, यानी केशव प्रसाद मौर्य को योगी के समकक्ष खड़ा कर दिया गया है। जबकि इन दोनों नेताओं के क्षेत्र में चुनाव चौथे और पांचवें चरण में है। ऐसा लगता है कि यह भाजपा की मजबूरी बन गई है कि वह केशव प्रसाद मौर्य को आगे लाए, क्योंकि माना जा रहा है कि पिछड़े वर्ग में काफी असंतोष है।
मुख्यमंत्री का चेहरा कौन?
लेखक और चिंतक सीपी राय ने एक चुनावी चर्चा में कहा था कि इस बार चुनाव में सिर्फ जातियों की बात हो रही है और दस दिन में और घटनाक्रम बदलेगा। धीरे-धीरे महाभारत का दृश्य पैदा होगा कि ये इधर तो वो उधर। अभी भाजपा को पूरी तरह खारिज करना बेमानी होगा। भाजपा बहुमत से भी आ जाती है तो योगी की चुनौतियां बरकरार रहेंगी। हालांकि, उत्तर प्रदेश के एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते और वे मानते हैं कि भाजपा योगी के दम पर ही चुनाव लड़ेगी।
उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य
- फोटो : सोशल मीडिया
संघ ने भी दिए थे संकेत
मई 2021 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले की लखनऊ में भाजपा संगठन के पदाधिकारियों के साथ हुई बैठक में भी इस बात के संकेत मिले थे कि विधानसभा चुनाव में डिप्टी सीएम को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। 2017 का विधानसभा चुनाव भी पार्टी ने उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा था। उस वक्त मौर्य यूपी के प्रदेश अध्यक्ष थे और भाजपा 312 सीटें जीतने में कामयाब रही थी।
इसका सबसे बड़ा कारण ओबीसी वोट बैंक ही था। जब 2019 का लोकसभा चुनाव आया तो ओबीसी वोट के लिए पार्टी ने फिर केशव प्रसाद मौर्य की तरफ देखा और यह जिम्मेदारी दी गई थी कि उत्तर प्रदेश में तमाम पिछड़ी जातियों का जातिवार सम्मेलन करें और एक-एक कर उन्हें भाजपा के कार्यक्रमों से जोड़ें।
दलितों और पिछड़ी जातियों के नेताओं को टिकट पर जोर
पिछड़ी जातियों के वोट बैंक के खिसक जाने के डर से भाजपा ने शनिवार को उत्तर प्रदेश के पहले और दूसरे चरण के लिए उम्मीदवारों की जो सूची जारी की है उसमें करीब 60 फीसदी टिकट पिछड़ी और दलित जातियों के उम्मीदवारों को दिया गया है। पार्टी ने जोर देकर यह कहा कि सामान्य सीट पर भी दलित उम्मीदवार उतारा है। यह कहा जा रहा है कि मायावती के वोट बैंक को काटने के लिए आगे भी कई और दलित चेहरों को चुनाव में उतारा जा सकता है।
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