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लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों के बीच मनाया जाने वाला नारोपा फेस्टिवल हो या नॉर्थ ईस्ट के नागालैंड में वसंत के स्वागत में मनाया जाने वाला आओलंग फेस्टिवल। अंडमान के निकोबारी नृत्य हों या अरुणाचल का मयूर नृत्य। देश के अलग-अलग राज्यों में सदियों से मनाए जाने वाले ऐसे पारंपरिक उत्सवों और त्योहारो को देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के सभी देश के लोग देख सकेंगे। इसके लिए केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय ने जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्वदेश दर्शन योजना के तहत बड़ी तैयारियां की हैं। मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक जनजातीय बहुल क्षेत्रों में इससे स्थानीय लोगों की न सिर्फ आय बढ़ेगी, बल्कि उनकी परंपराओं को दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर एक अलग पहचान भी मिलेगी।
उत्सवों को विशेष स्थान
केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पर्यटन नीति को बढ़ावा देने के लिहाज से कई तरह के कार्यक्रम तैयार किए हैं। ऐसे ही कार्यक्रमों में स्वदेश दर्शन योजना भी शामिल है। पर्यटन मंत्रालय से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि इस योजना में वैसे तो बहुत से कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। हमारे देश की जनजातीय इलाकों की परंपराओं और उनके समृद्ध इतिहास को दर्शाते हुए आयोजित किए जाने वाले उत्सवों को विशेष स्थान दिया गया है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार के आपसी सहयोग से देश के अलग-अलग राज्यों के जनजातीय इलाकों में धार्मिक उत्सवों समेत तमाम तरह के आयोजनों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने न सिर्फ वित्तीय मदद की है, बल्कि उन्हें एक बड़ा प्लेटफार्म भी मुहैया कराया है। पर्यटन मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक इस योजना के तहत देश के सभी जनजातीय इलाकों को शामिल कर लिया गया है।
केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के मुताबिक स्वदेश दर्शन योजना में जनजातीय बहुल क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से विकास का कार्य किया जा रहा है। ताकि जनजातीय क्षेत्रों में रहने वालों की परंपराओं को समझने और जानने के साथ-साथ पर्यटकों को स्थानीय इलाकों की पुरानी सभ्यताओं को भी समझने का मौका मिल सके। इसके लिए केंद्र सरकार ने नागालैंड में जहां पेरेन, कोहिमा और वोखा परिपथ का निर्माण किया जा चुका है। केंद्र सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए तकरीबन 98 करोड़ रुपये की धनराशि भी जारी की है। इसी तरह नागालैंड के मोकोकचुंग तुएनसांग मोन के विकास के लिए तकरीबन 100 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की है। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि इसी तरह से तेलंगाना, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा समेत समुद्र तटीय और दूरदराज इलाकों के जनजातीय बहुल क्षेत्रों में इस योजना को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेगी पहचान
जनजातीय इलाकों की परंपराओं को आगे बढ़ाने वाले समुदाय के लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार की इस योजना से उन लोगों को बहुत लाभ मिलेगा। लद्दाख की हेमिस मोनेस्ट्री में मनाए जाने वाले सबसे बड़े नरोपा फेस्टिवल के आयोजकों में शामिल पद्मा नामग्याल कहती हैं कि हिमालय के कुंभ के नाम से मशहूर नरोपा फेस्टिवल को वैसे तो हेमिस मोनेस्ट्री की ओर से आयोजित किया जाता है। लेकिन केंद्र सरकार की ओर से हमारी इन परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए जो योजनाएं बनाई गई है, उससे निश्चित तौर पर हमारी अपनी जनजातीय परंपराओं उत्सवों और अन्य तमाम तरह के आयोजनों को न सिर्फ बढ़ावा मिलेगा, बल्कि उनको एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी मिलेगी। इसी तरह से नागालैंड में स्थानीय स्तर पर सदियों पुराने खेलों को आयोजित किए जाने वाले नाक्युलेम आयोजन से जुड़े मेट्यसुबो कहते हैं कि अभी तक हमारे यहां कोंगाखिम नाम के नागा यंत्र को महिलाएं बजाती थी और स्थानीय स्तर के लोग ही देखते थे। वह कहते हैं कि केंद्र की इन योजनाओं के तहत अब हमारी सदियों पुरानी परंपराओं को सहेजने और उसको आगे बढ़ाने के लिए स्थानीय लोगों का मनोबल भी बढ़ेगा।
केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि केंद्र सरकार की योजनाओं के तहत वाइब्रेंट विलेज योजना और देश के सीमाओं पर बसे गांवों को भी पर्यटन के लिहाज से जोड़ा गया है। मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि सीमावर्ती गांवों में पर्यटन से न सिर्फ स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार मिलेगा, बल्कि हमारे देश की सीमाएं और ज्यादा सुरक्षित तथा मजबूत हो सकेंगी। इसके अलावा जनजातीय इलाकों की परंपराओं को जीवित रखने और आगे बढ़ाने के लिए जो योजना शुरू की गई है, वह समूचे देश में लागू हो चुकी है। मंत्रालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि जी-20 के आयोजन के दौरान दुनिया भर के प्रमुख देशों के जिम्मेदारों को अपनी संस्कृति से जोड़ने और उसे रूबरू कराने का बेहतर मौका भी मिला है।