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गुरुवार को जारी ग्रीनपीस की रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण भारत में 2020 में 1.20 लाख लोगों की मौत हुई। इसके कारण देश को दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान भी उठाना पड़ा। अकेले दिल्ली में ही 54 हजार लोगों की मौत हुई और 58.89 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ। इसी प्रकार टेरी के अध्ययन ने पाया है कि लॉकडाउन के दौरान जब वाहनों का परिचालन लगभग पूरी तरह बंद था और फैक्ट्रियां ठप पड़ी थीं, तब भी दिल्ली का वायु प्रदूषण काफी ऊंचे स्तर पर था। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जब वाहन और फैक्ट्रियां नहीं चल रही थीं तब यह प्रदूषण कहां से आ रहा था, और क्या अब प्रदूषण से कभी पूरी तरह मुक्ति नहीं पाई जा सकेगी?
टेरी की रिपोर्ट में ये हुआ खुलासा
द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) ने लॉकडॉउन में राजधानी के प्रदूषण पर एक अध्ययन किया था। 'असेसमेंट ऑफ एयर क्वॉलिटी ड्यूरिंग लॉकडाउन इन दिल्ली' नाम की इस रिपोर्ट में टेरी ने पाया था कि निगरानी अवधि के 30-60 फीसदी दिनों में राजधानी का वायु प्रदूषण स्तर मानक से काफी ऊंचा रहा। इस दौरान सामान्य दिनों की तुलना में पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों की मात्रा में तो कमी दर्ज की गई, लेकिन इसके बाद भी यह हानिकारक स्तर पर बनी रही। यानी लॉकडाउन के बाद भी लोगों को वायु प्रदूषण से मुक्ति नहीं मिली।
सेंटर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के 32 निगरानी स्टेशनों के आंकड़े भी बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान पीएम 2.5 की मात्रा में 43 फीसदी और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड की मात्रा में 61 फीसदी की कमी दर्ज की गई। लेकिन इसके बाद भी यह हानिकारक स्तर पर बनी रही।
कहां से आ रहा था ये प्रदूषण
टेरी के निदेशक डॉक्टर सुमित शर्मा ने अमर उजाला से कहा कि लॉकडाउन के दौरान भी आवश्यक गतिविधियां जारी थीं। पॉवर प्लांट्स भी लगातार काम कर रहे थे। दिल्ली के प्रदूषण में बड़ी भूमिका निभाने वाले क्षेत्रों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन 2.0 के दौरान भी कुछ गतिविधियां चालू रही थीं। इस दौरान बायोमास से पैदा होने वाला प्रदूषण भी लगातार बना रहा। यही कारण है कि राजधानी में लॉकडाउन के दौरान भी प्रदूषण स्तर खतरनाक बना रहा।
कैसे मिलेगी मुक्ति
विशेषज्ञों के मुताबिक दिल्ली को प्रदूषण से बचाने के लिए एयर शेड मॉडल पर काम करना पड़ेगा। इसके अनुसार दिल्ली में जिन-जिन इलाकों से प्रदूषण आता है, उन सभी एरिया में प्रदूषण का स्तर कम करना पड़ेगा। इसके लिए सोलर एनर्जी को बढ़ावा देना, बायो फ्यूल के उपयोग में कमी करना और वाहनों में बिजली-गैस आधारित वाहनों के परिचालन को बढ़ावा देना पड़ेगा।
क्या है ग्रीन पीस की रिपोर्ट में
गुरुवार को जारी ग्रीन पीस की रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत को वर्ष 2020 में वायु प्रदूषण के कारण दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। इस दौरान देश में लगभग 1.20 लाख लोगों की जान भी चली गई। अकेले दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण 54 हजार लोगों की मौत हुई और 58,895 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छ हवा उपलब्ध कराकर इन मौतों को टाला जा सकता था।
ग्रीन पीस का अध्ययन बताता है कि वायु प्रदूषण के कारण टोक्यो शहर को दुनिया में सबसे ज्यादा 4300 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। टोक्यो में वायु प्रदूषण के कारण 40 हजार लोगों की मौत भी हुई।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में दुनिया के पांच बड़े शहरों दिल्ली, मैक्सिको सिटी, साओ पौलो, शंघाई और टोक्यो में 1.60 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। पीएम 2.5 के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव के कारण वर्ष 2015 में दुनिया में 42 लाख लोगों की जान गई।
सार
- क्या हर साल होती रहेगी लाखों लोगों की मौत और नहीं मिलेेगी वायु प्रदूषण से मुक्ति, लॉक डाउन में भी क्यों जहरीली रही हवा?
- विशेषज्ञों के मुताबिक, एक एरिया में प्रदूषण से मुक्ति पाने का आइडिया कभी कारगर नहीं हो सकता, इसके लिए एयर शेड एरिया को प्रदूषण मुक्त करना पड़ेगा
विस्तार
गुरुवार को जारी ग्रीनपीस की रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण भारत में 2020 में 1.20 लाख लोगों की मौत हुई। इसके कारण देश को दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान भी उठाना पड़ा। अकेले दिल्ली में ही 54 हजार लोगों की मौत हुई और 58.89 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ। इसी प्रकार टेरी के अध्ययन ने पाया है कि लॉकडाउन के दौरान जब वाहनों का परिचालन लगभग पूरी तरह बंद था और फैक्ट्रियां ठप पड़ी थीं, तब भी दिल्ली का वायु प्रदूषण काफी ऊंचे स्तर पर था। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जब वाहन और फैक्ट्रियां नहीं चल रही थीं तब यह प्रदूषण कहां से आ रहा था, और क्या अब प्रदूषण से कभी पूरी तरह मुक्ति नहीं पाई जा सकेगी?
टेरी की रिपोर्ट में ये हुआ खुलासा
द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) ने लॉकडॉउन में राजधानी के प्रदूषण पर एक अध्ययन किया था। 'असेसमेंट ऑफ एयर क्वॉलिटी ड्यूरिंग लॉकडाउन इन दिल्ली' नाम की इस रिपोर्ट में टेरी ने पाया था कि निगरानी अवधि के 30-60 फीसदी दिनों में राजधानी का वायु प्रदूषण स्तर मानक से काफी ऊंचा रहा। इस दौरान सामान्य दिनों की तुलना में पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों की मात्रा में तो कमी दर्ज की गई, लेकिन इसके बाद भी यह हानिकारक स्तर पर बनी रही। यानी लॉकडाउन के बाद भी लोगों को वायु प्रदूषण से मुक्ति नहीं मिली।
सेंटर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के 32 निगरानी स्टेशनों के आंकड़े भी बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान पीएम 2.5 की मात्रा में 43 फीसदी और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड की मात्रा में 61 फीसदी की कमी दर्ज की गई। लेकिन इसके बाद भी यह हानिकारक स्तर पर बनी रही।
कहां से आ रहा था ये प्रदूषण
टेरी के निदेशक डॉक्टर सुमित शर्मा ने अमर उजाला से कहा कि लॉकडाउन के दौरान भी आवश्यक गतिविधियां जारी थीं। पॉवर प्लांट्स भी लगातार काम कर रहे थे। दिल्ली के प्रदूषण में बड़ी भूमिका निभाने वाले क्षेत्रों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन 2.0 के दौरान भी कुछ गतिविधियां चालू रही थीं। इस दौरान बायोमास से पैदा होने वाला प्रदूषण भी लगातार बना रहा। यही कारण है कि राजधानी में लॉकडाउन के दौरान भी प्रदूषण स्तर खतरनाक बना रहा।
कैसे मिलेगी मुक्ति
विशेषज्ञों के मुताबिक दिल्ली को प्रदूषण से बचाने के लिए एयर शेड मॉडल पर काम करना पड़ेगा। इसके अनुसार दिल्ली में जिन-जिन इलाकों से प्रदूषण आता है, उन सभी एरिया में प्रदूषण का स्तर कम करना पड़ेगा। इसके लिए सोलर एनर्जी को बढ़ावा देना, बायो फ्यूल के उपयोग में कमी करना और वाहनों में बिजली-गैस आधारित वाहनों के परिचालन को बढ़ावा देना पड़ेगा।
क्या है ग्रीन पीस की रिपोर्ट में
गुरुवार को जारी ग्रीन पीस की रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत को वर्ष 2020 में वायु प्रदूषण के कारण दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। इस दौरान देश में लगभग 1.20 लाख लोगों की जान भी चली गई। अकेले दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण 54 हजार लोगों की मौत हुई और 58,895 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छ हवा उपलब्ध कराकर इन मौतों को टाला जा सकता था।
ग्रीन पीस का अध्ययन बताता है कि वायु प्रदूषण के कारण टोक्यो शहर को दुनिया में सबसे ज्यादा 4300 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। टोक्यो में वायु प्रदूषण के कारण 40 हजार लोगों की मौत भी हुई।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में दुनिया के पांच बड़े शहरों दिल्ली, मैक्सिको सिटी, साओ पौलो, शंघाई और टोक्यो में 1.60 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। पीएम 2.5 के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव के कारण वर्ष 2015 में दुनिया में 42 लाख लोगों की जान गई।