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supreme court updates Murder of 12 year old case SC notice to Delhi govt on father s plea seeking CBI probe
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12 साल की बच्चे की हत्या: सुप्रीम कोर्ट का सीबीआई और दिल्ली सरकार को नोटिस, चार हफ्ते के भीतर मांगा जवाब
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: निर्मल कांत
Updated Fri, 31 Mar 2023 12:08 AM IST
सार
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दिल्ली हाईकोर्ट के 7 दिसंबर, 2022 के आदेश में मामले को सीबीआई को ट्रांसफर करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद मृतक बच्चे के पिता सतीश कुमार ने शीर्ष सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में एक लड़के के अपहरण और हत्या की सीबीआई जांच की मांग करने वाली याचिका पर दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है। जस्टिस वीआर सुब्रमण्यम और जस्टिस पंकज मिथल की बेंच ने नाबालिग के पिता सतीश कुमार सतीश कुमार की याचिका पर केंद्रीय जांच ब्यूरो, दिल्ली सरकार और क्राइम ब्रांच के डीसीपी को नोटिस जारी किया और उनसे चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा।
हाईकोर्ट ने जांच को सीबीआई को सौंपने से किया था इनकार
दिल्ली हाईकोर्ट के 7 दिसंबर, 2022 के आदेश में मामले को सीबीआई को ट्रांसफर करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद सतीश कुमार ने शीर्ष कोर्ट में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। सतीश कुमार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे पेश हुए। उन्होंने कोर्ट से कहा किजांच निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से नहीं की गई है और हाईकोर्ट ने जांच सीबीआई को ट्रांसफर न करके गलती की है।
12 सितंबर को हलालपुर गांव से बरामद हुआ बच्चे का शव
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 11 सितंबर, 2014 को करीब 10:30 बजे सतीश की पत्नी ने उन्हें सूचित किया कि उनका बच्चा हेमंत (12 वर्षीय) लापता है, जिसके बाद 12 सितंबर को यहां बवाना पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363 (अपहरण) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। बाद में बच्चे का शव हरियाणा के हलालपुर गांव से बरामद किया गया। फिर आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 201 (सबूतों को गायब करना) के तहत मामले प्राथमिकी में जोड़े गए।
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्राइम ब्रांच को सौंपा था मामला
जांच के दौरान पुलिस ने दो व्यक्तियों सुनील और रंजित को उनके मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर गिरफ्तार किया, जहां शव पाया गया था। बाद में दोनों संदिग्धों को पुलिस ने छोड़ दिया। संतोषजनक जान होने व्यथित सतीश कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाकर जांच सीबीआई को सौंपने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने मामले को क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर करने का आदेश दिया, क्योंकि स्थानीय पुलिस मामले में कोई खास प्रगति नहीं कर पा रही थी।
ठोस सबूत नहीं जुटा सकी पुलिस, मामला सीबीआई को सौंपने की मांग
याचिका में कहा गया, करीब चार से पांच साल बीत जाने के बाद भी संदिग्धों के खिलाफ महत्वपूर्ण सबूतों के बावजूद क्राइम ब्रांच संदिग्धों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं जुटा सकी, जिसने याचिकाकर्ता को 2021 में सीबीआई को जांच ट्रांसफर करने की मांग करते हुए याचिका दायर करने के लिए मजबूर किया। हाईकोर्ट ने 7 दिसंबर, 2022 के अपने आदेश में कहा कि क्राइम ब्रांच ने जांच की और अपराध करने वाले सभी संदिग्धों का नार्को टेस्क, ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट किया।
पालघर लिंचिंग मामला : शीर्ष कोर्ट ने हलफनामा दायर करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि उसे 2020 में पालघर में तीन लोगों की कथित लिंचिंग की सीबीआई जांच का आदेश क्यों देना चाहिए, जबकि राज्य को इस तरह की जांच पर कोई आपत्ति नहीं है। कोर्ट ने राज्य सरकार से इस संबंध में एक हलफनामा दायर करने को कहा है।
महा विकास अघाड़ी सरकार ने किया सीबीआई जांच का विरोध
चीफ जस्टिस (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने आज महाराष्ट्र सरकार के वकील से कहा, 'हमें यह आदेश क्यों पारित करना चाहिए कि आप (महाराष्ट्र) इसे सीबीआई को दें।' इससे पहले पूर्ववर्ती महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार ने मामले की सीबीआई जांच की याचिका का विरोध किया था।
शीर्ष कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 10 अप्रैल तय की
हालांकि, सरकार बदलने के साथ ही रुख भी बदल गया है और राज्य सरकार के वकील ने पीठ से कहा कि वह सीबीआई जांच से सहमत है। बेंच ने इसके बाद राज्य सरकार से इस संबंध में एक हलफनामा दायर करने को कहा और याचिकाओं पर अगली सुनवाई के लिए 10 अप्रैल की तारीख तय की। राज्य सरकार ने बेंच को यह भी अवगत कराया कि अब तक दो आरोपपत्र दायर किए जा चुके हैं और मुकदमे में तेजी नहीं आई है।
यूपी में सीवेज ट्रीटमेंट पर जवाबदेह तंत्र विकसित करे एनजीटी : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गांवों, कस्बों और शहरों में सीवेज उपचार पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि अनुपचारित कचरे को नदियों और नालों में छोड़ा जा रहा है। इसके चलते पानी के स्रोत प्रदूषित हो जाते हैं, जिससे जनसंख्या और जैव विविधता का अस्तित्व पर खतरा पैदा हो रहा है। शीर्ष कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) से उत्तर प्रदेश में सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) के प्रदर्शन का निरीक्षण करने, उनके उन्नयन और रखरखाव के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराने के लिए जवाबदेह तंत्र स्थापित करने और अन्य सभी प्रशासनिक मुद्दों एवं समस्याओं को दूर करने के निर्देश दिए।
उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा, प्रदेश में देश का सबसे अधिक कुल 5500 एमएलडी सीवेज उत्पन्न होता है। जून 2025 तक राज्य में सीवेज का 100 प्रतिशत उपचार की क्षमता विकसित कर ली जाएगी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के एक आवेदन पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया। इसमें राज्य में 100 प्रतिशत एसटीपी क्षमता स्थापित करने और संचालित करने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को दिया ये निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को उस याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि केंद्र शासित प्रदेश में न्यायिक संस्थानों और अदालतों में नियुक्तियों में पूर्व न्यायाधीशों और कर्मचारियों के रिश्तेदारों का पक्ष लिया है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने शुरू में याचिकाकर्ता एनजीओ 'जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स फोरम' का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को सुझाव दिया कि उन्हें याचिका के साथ हाईकोर्ट का रुख करना चाहिए।
हालांकि, चीफ जस्टिस चंद्रचड़ू ने जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला से बातचीत के बाद शीर्ष कोर्ट में ही याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया और हाईकोर्ट के वकील से चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा। बेंच ने कहा, ''जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की ओर से पेश वकील के अनुरोध पर जवाबी हलफनामा दायर करने का समय चार सप्ताह के लिए और बढ़ाया जाता है। केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से निर्देश लेने के बाद जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जवाबी हलफनामा दायर किया जाएगा।" इसके बाद पीठ ने याचिका पर सुनवाई के लिए 28 अप्रैल की तारीख तय की।
नागरिक प्रक्रिया संहिता के उप-नियम में संशोधन की सिफारिश
विधि आयोग ने नागरिक प्रक्रिया संहिता के एक उप-नियम में संशोधन की सिफारिश की है, ताकि अदालतों, वकीलों, वादियों और आम जनता की सुविधा के लिए एक विसंगति को दूर किया जा सके।
इससे पहले इस सप्ताह की शुरुआत में रिपोर्ट (नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश VII के नियम 14 (4) में संशोधन की तत्काल आवश्यकता, 1908) सरकार को सौंपी गई थी। न्यायमूर्ति रितु राज आवस्थी (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षथा वाले आयोग ने अपनी 18 पन्नों की रिपोर्ट में कहा था कि आदेश VII के नियम 14 के उप नियम 4 में वादी के गवाहों से जिरह का जिक्र किया गया है।
इसमें कहा गया था कि आदेश VII के नियम 14 के उपनियम 4 में उल्लिखित शब्दों को प्रतिवादी के गवाहों के रूप में सही करने की आवश्यकता है। एक वादी, साक्ष्य अधिनियम की धारा 154 में प्रावधान के अलावा, ऐसे प्रश्न नहीं रख सकता है जो उसके अपने गवाहों से जिरह में रखे जा सकते हैं। आदेश XIII के नियम 1 का उप-नियम 3 भी स्थिति को स्पष्ट करता है जब 'दूसरे पक्ष के गवाह की जिरह' अभिव्यक्ति का उपयोग किया जाता है। इसलिए, आदेश VII के नियम 14 के उप-नियम 4 में विसंगति स्पष्ट है।
मालेगांव ब्लास्ट: सुप्रीम कोर्ट ने लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित की 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में आरोप मुक्त करने की याचिका खारिज कर दी। लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा उनकी अपील खारिज करने के दो जनवरी के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।
इस मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित छह अन्य लोग मुकदमे का सामना कर रहे हैं। ये सभी आरोपी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। गुरुवार को उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस ऋषिकेश रॉय और मनोज मिश्रा की बेंच ने हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया।
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