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Supreme Court to consider setting up panel to examine if execution of death row convicts by hanging proportio
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Supreme Court: फांसी से कम दर्दनाक मौत के तरीके पर विचार करे सरकार, विशेषज्ञ पैनल गठित करने के भी दिए संकेत
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Jeet Kumar
Updated Tue, 21 Mar 2023 11:17 PM IST
सार
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शीर्ष अदालत ने 6 अक्तूबर 2017 को इस मामले में केंद्र को नोटिस जारी किया था, जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा था, जिस दोषी का जीवन समाप्त होना है, उसे फांसी की पीड़ा सहने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
क्या देश में मौत की सजा को अंजाम देने के लिए फांसी से कम दर्दनाक तरीका हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से इस विषय पर चर्चा शुरू करने और यह जांचने के लिए आवश्यक जानकारी एकत्र करने को कहा है। शीर्ष अदालत ने यह भी संकेत दिया कि वह राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों और एम्स से भी विशेषज्ञों का एक पैनल गठित करने के लिए तैयार है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी को यह पता लगाने के लिए मई तक का समय दिया कि क्या फांसी की सजा के मुकाबले अधिक मानवीय तरीके व फांसी से मौत की सजा के प्रभाव का पता लगाने के लिए कोई अध्ययन किया गया है।
पीठ ने कहा, हम इस मामले को तकनीक और विज्ञान के नजरिये से देख सकते हैं कि क्या ज्ञान का आज का चरण कहता है कि फांसी सबसे अच्छा तरीका है। क्या हमारे पास वैकल्पिक तरीकों के बारे में भारत या विदेशों में कोई डाटा है। या क्या हम एक समिति बना सकते हैं? हम सिर्फ सोच रहे हैं। हम समिति में दिल्ली स्थित राष्ट्रीय विधि विवि के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को रख सकते हैं।
शीर्ष अदालत ने 6 अक्तूबर 2017 को इस मामले में केंद्र को नोटिस जारी किया था, जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा था, जिस दोषी का जीवन समाप्त होना है, उसे फांसी की पीड़ा सहने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
जीवन के अधिकार में मानवीय गरिमा के साथ जीना शामिल
शीर्ष अदालत वकील ऋषि मल्होत्रा की रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा- 354 (5) के तहत निहित प्रावधान को रद्द करने के निर्देश की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि यह संविधान और विशेष रूप से अनुच्छेद- 21 भेदभावपूर्ण है और साथ ही जियान कौर के मामले (1962) में संविधान पीठ के निर्णय का उल्लंघन भी है। फैसले में तब कहा गया था, जीवन के अधिकार में मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल है।
सजायाफ्ता कैदियों के बीच होता है भेदभाव
याचिकाकर्ता का यह भी तर्क है कि सजायाफ्ता कैदी, जिस पर दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत मुकदमा चलाया गया है और जिस कैदी पर वायु सेना अधिनियम, 1950, सेना अधिनियम, 1950 और नौसेना अधिनियम, 1957 के तहत मुकदमा चलाया जाता है, इनके बीच भेदभाव होता है। याचिका में कहा गया है कि सीआरपीसी की धारा- 354 (5) के तहत, मौत की सजा के निष्पादन के लिए एकमात्र तरीका जो निर्धारित किया गया है, वह मृत्यु तक गर्दन से लटका हुआ होना है जबकि वायु सेना अधिनियम, सेना अधिनियम और नौसेना अधिनियम के तहत, मौत तक गर्दन से लटकाकर या गोली मारकर हत्या करने का प्रावधान है।
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