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सुप्रीम कोर्ट: जिस भाषा में गवाही हो उसमें भी रिकॉर्ड रखा जाए, सिर्फ अंग्रेजी की प्रथा गलत

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Amit Mandal Updated Tue, 31 Jan 2023 05:14 AM IST
सार

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने सभी अदालतों को गवाही दर्ज कराते वक्त सीआरपीसी की धारा 277 के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करने की नसीहत दी।

सर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय - फोटो : PTI

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों में गवाही को मूल भाषा के बजाय अंग्रेजी अनुवाद कर रिकॉर्ड में दर्ज कराने की जजों की प्रथा को गलत ठहराया। शीर्ष अदालत ने कहा, जिस भाषा में गवाह बयान देता है उसमें भी रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए। सिर्फ अंग्रेजी अनुवाद को रिकॉर्ड में शामिल करना गलत है। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।



जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने सभी अदालतों को गवाही दर्ज कराते वक्त सीआरपीसी की धारा 277 के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करने की नसीहत दी। पीठ ने यह टिप्पणी एक आपराधिक अपील का निस्तारण करते हुए की। पीठ ने पाया कि कुछ निचली अदालतों में गवाहों के बयान उनकी भाषा में दर्ज नहीं किए जा रहे हैं। उन्हें सिर्फ अंग्रेजी भाषा में जैसा कि पीठासीन अधिकारी ने अनुवाद किया हो, रिकॉर्ड में लिया जा रहा है। पीठ के समक्ष आए मामले में गवाह ने अपनी मातृभाषा में बयान दिए थे, लेकिन रिकॉर्ड में अंग्रेजी अनुवाद था।


रिकॉर्ड के लिए बाद में किया जाए अनुवाद : पीठ ने कहा, गवाह के साक्ष्य को अदालत की भाषा में या गवाह की भाषा में जैसा भी संभव हो दर्ज किया जाना चाहिए। उसके बाद ही रिकॉर्ड का हिस्सा बनने के लिए अदालत की भाषा में इसका अनुवाद किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, गवाही की सर्वोत्तम तरह से सराहना तभी हो सकती है जब उसे गवाह की भाषा में दर्ज किया जाए। यही नहीं, जब कभी यह सवाल उठता है कि गवाह ने आखिर क्या कहा है तो उसकी वास्तविक गवाही ही मायने रखती है, अंग्रेजी का अनुवाद काम नहीं आ सकता।  
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