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Supreme Court: Policy should be made to blacklist contractors on the basis of seriousness of lapses
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सुप्रीम कोर्ट सख्त : खामियों की गंभीरता के आधार पर ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट करने की नीति बनाई जाए
राजीव सिन्हा, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: योगेश साहू
Updated Sun, 27 Feb 2022 05:24 AM IST
सार
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शीर्ष कोर्ट की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेशों को रद्द कर दिया है और हाईकोर्ट द्वारा फर्म की लापरवाही व खामियों पर गंभीरता से विचार नहीं करने की आलोचना भी की। दरअसल, घटना के बाद ओडिशा सरकार द्वारा की गई एक उच्च स्तरीय जांच में पाया गया कि फर्म में कई मामलों में कमी थी। यह पाया गया कि निर्माण कार्य क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था में भारी कमी थी। इसके अलावा यह पाया गया कि गुणवत्ता आश्वासन पर जोर नहीं दिया गया था जैसा कि अनुबंध में निर्धारित किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि राज्यों को उन ठेकेदारों को काली सूची में डालने में कोई नरमी नहीं दिखानी चाहिए जिनकी सार्वजनिक कार्यों में लापरवाही के चलते लोगों की जान चली गई हो। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने राज्यों से कहा कि ठेकेदारों को खामियों की गंभीरता के आधार पर ब्लैकलिस्ट करने की नीति बनाई जाए न कि इस तथ्य पर कि यह उनका पहला या दूसरा अपराध था।
पीठ ने कहा कि ब्लैकलिस्टिंग की अवधि पूरी तरह से अपराध की संख्या के आधार पर नहीं हो सकती है। चूक की गंभीरता, घटना की गंभीरता और ठेकेदार की ओर से चूक की गंभीरता आदि पर प्रासंगिक विचार होना चाहिए। पीठ ने यह टिप्पणी ओडिशा सरकार द्वारा मार्च और जून 2021 में उड़ीसा हाईकोर्ट के दो फैसलों को चुनौती देने वाली एक अपील का निपटारा करते हुए की।
हाईकोर्ट ने एक ठेकेदार फर्म पांडा इंफ्रा प्रोजेक्ट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को विकास कार्यों के लिए किसी भी ‘बोली’ में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाग लेने से ब्लैकलिस्ट करने के आदेश को दरकिनार कर दिया था। फर्म को ब्लैकलिस्ट करने का आदेश राज्य द्वारा दिसंबर 2017 में जारी किया गया था क्योंकि भुवनेश्वर में इस फर्म द्वारा बनाए गए एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर से एक स्लैब गिरने से एक व्यक्ति की मौत हो गई और 11 अन्य घायल हो गए थे।
हाईकोर्ट के आदेश को किया रद्द
पीठ ने हाईकोर्ट के आदेशों को रद्द कर दिया है और हाईकोर्ट द्वारा फर्म की लापरवाही व खामियों पर गंभीरता से विचार नहीं करने की आलोचना भी की। दरअसल, घटना के बाद ओडिशा सरकार द्वारा की गई एक उच्च स्तरीय जांच में पाया गया कि फर्म में कई मामलों में कमी थी। यह पाया गया कि निर्माण कार्य क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था में भारी कमी थी। इसके अलावा यह पाया गया कि गुणवत्ता आश्वासन पर जोर नहीं दिया गया था जैसा कि अनुबंध में निर्धारित किया गया था। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को उस घटना की गंभीरता पर विचार करना चाहिए था क्योंकि ठेकेदार की चूक के कारण एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई घायल हो गए थे।
अपराध की संख्या के आधार पर काली सूची में डालने का है प्रावधान
पीठ ने पाया कि ओडिशा लोक निर्माण विभाग संहिता में ठेकेदार द्वारा की गई चूक की गंभीरता को कोई महत्व नहीं दिया जाता है बल्कि अपराध की संख्या के आधार पर काली सूची में डाला जाता है। पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में भले ही फर्म की पहली चूक हो लेकिन चूक बहुत गंभीर थी, जिसकी वजह से एक बड़ी घटना हुई हो। ऐसे मामले में काली सूची में डालने की अवधि तीन वर्ष (पहले अपराध के लिए संहिता के तहत न्यूनतम निर्धारित) से अधिक हो सकती है।
पीठ ने कहा कि चूंकि ओडिशा द्वारा अपनाई गई संहिता या काली सूची में डालने की नीति चुनौती के अधीन नहीं थी, इसलिए हम इस मामले को वहीं रखते हैं और उक्त कार्यालय ज्ञापन (नवंबर 2021) को संशोधित या संशोधित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर छोड़ देते हैं। पीठ ने कहा कि जहां तक मामले में शामिल ठेकेदार फर्म के संबंध है, ठेकेदार किसी भी तरह की नरमी के लायक नहीं है। हालांकि उसे स्थायी रूप से प्रतिबंधित करने के लिए बहुत कठोर दंड कहा जा सकता है। लिहाजा पीठ ने कहा हमारी राय है कि फर्म को पांच वर्ष के लिए ब्लैकलिस्ट करना उचित है।
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