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Supreme Court observed while acquitting three accused facing trial for 13 years case of abetment to murder
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सुप्रीम कोर्ट: न्याय प्रणाली खुद हो सकती है सजा, 13 साल अदालती कार्रवाई के बाद तीन को बरी करते हुए की टिप्पणी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: वीरेंद्र शर्मा
Updated Wed, 30 Nov 2022 06:31 AM IST
सार
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शीर्ष अदालत ने पाया कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के अप्रैल 2009 के फैसले के खिलाफ आरोपियों की अपील 13 साल तक लंबित रही। हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोप तय करने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ आरोपियों की याचिका खारिज कर दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के लिए उकसाने के एक मामले में 13 साल तक अदालती कार्यवाही झेल रहे तीन आरोपियों को बरी करते हुए मंगलवार को तल्ख टिप्पणी कर कहा कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली खुद एक सजा हो सकती है। मामला पंजाब में 2008 में एक छात्र पर अनुशासनात्मक कार्रवाई और उसके आत्महत्या करने से जुड़ा है।
शीर्ष अदालत ने पाया कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के अप्रैल 2009 के फैसले के खिलाफ आरोपियों की अपील 13 साल तक लंबित रही। हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोप तय करने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ आरोपियों की याचिका खारिज कर दी थी। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने 24 नवंबर के अपने आदेश में कहा, हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली अपने आप में एक सजा हो सकती है। इस मामले में ठीक यही हुआ है। पीठ ने कहा, यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। 14 साल पहले कॉलेज में एक छात्र को शराब के नशे में शिक्षक से दुर्व्यवहार के लिए फटकार लगाई जाती है, उसे कॉलेज से निलंबित किया जाता है और उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की कोशिश की जाती है। उसके माता-पिता को कॉलेज में बुलाया जाता है, लेकिन वे नहीं आते हैं और छात्र आत्महत्या कर लेता है। पिता की शिकायत पर अप्रैल 2008 में शिक्षक, विभागाध्यक्ष व प्रिंसिपल के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज किया था। उसी साल आरोप पत्र दाखिल किया और अप्रैल 2009 में आरोप तय किए गए। हालांकि, हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आरोपियों की अपील को स्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने फैसले पर स्टे लगा
दिया था।
जमानत की शर्तें पूरी न कर पाने वाले कैदियों की सूची दें राज्य
सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद कैदियों की रिहाई को लेकर मंगलवार को बड़ा कदम उठाया। अदालत ने मामूली अपराधों में जेल में बंद ऐसे आरोपियों की रिपोर्ट मांगी है, जो जमानत की शर्तें पूरी न कर पाने की वजह से जेल में ही बंद हैं। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि राज्य ऐसे कैदियों का डाटा 15 दिन में एक चार्ट के रूप में दे। साथ ही नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी को कहा कि वो लीगल समेत सभी सहायता प्रदान करेगा।
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