न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Thu, 24 Sep 2020 01:25 AM IST
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली विधानसभा की शांति और सद्भाव समिति को 15 अक्तूबर तक फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अजित मोहन के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई न करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने समिति द्वारा मोहन को उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगों पर गवाही देने के लिए जारी समन के खिलाफ दायर याचिका पर विधानसभा अध्यक्ष को भी नोटिस जारी किया। समिति कथित नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले में सोशल मीडिया के इस प्लेटफॉर्म की भूमिका की जांच कर रही है।
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ में फेसबुक और उसके उपाध्यक्ष की याचिका पर विधानसभा सचिव व अन्य को नोटिस जारी करते हुए एक हफ्ते में जवाब देने को कहा है। पीठ ने कानून एवं न्याय मंत्रालय, गृह मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, लोकसभा तथा राज्यसभा को उनके महासचिवों के माध्यम से और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किए। पीठ ने इन सभी से जवाब मांगे हैं।
पीठ ने कहा, जब तक इस मामले का निपटारा नहीं हो जाता तब तक समिति की बैठक नहीं होगी। समिति की बुधवार को बैठक होनी थी और इसमें अजित मोहन को तलब किया गया था। इसके बाद समिति ने बैठक टाल दी। विधानसभा समिति के चेयरमैन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ को आश्वस्त किया कि मामले का निपटारा होने तक कार्रवाई नहीं होगी। अगली सुनवाई 15 अक्तूबर को होगी।
समन की भाषा और आपकी बात के तेवर अलग हैं
सुनवाई के दौरान सिंघवी ने पीठ से कहा, अजित मोहन को बतौर आरोपी नहीं बल्कि बतौर गवाह समन भेजा गया। समिति यह देखना चाहती है कि कहीं दंगों के दौरान फेसबुक का दुरुपयोग तो नहीं किया गया? कई गवाहों ने कहा है कि फेसबुक का दुरुपयोग हुआ। समिति इसके लिए तंत्र विकसित करने के मकसद से फेसबुक से बात करना चाहती हैं। इस पर पीठ ने कहा, समन की भाषा और जो बातें आप कह रहे हैं, दोनों के तेवर अलग हैं।
समिति को समन भेजने का अधिकार ही नहीं है
इससे पहले अजित मोहन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी ने कहा, समिति को फेसबुक इंडिया के अधिकारी को समन करने का अधिकार नहीं है। साल्वे ने कहा, समिति द्वारा यह कहना कि पेश न होने पर कार्रवाई होगी, सीधे धमकी है। अगर उपाध्यक्ष को जबरन बोलने के लिए मजबूर किया जाता है तो यह अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन है। वहीं, रोहतगी ने कहा कि 31 अगस्त को समिति के चेयरमैन राघव चड्ढा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिल्ली दंगों में फेसबुक की सहभागिता की बात कही थी। उन्होंने कहा कि 18 सितंबर को जारी समन में कहा गया है कि समिति के समक्ष उपस्थित न होने पर उसे विशेषाधिकार हनन माना जाएगा और कार्रवाई की जाएगी, ऐसा उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली विधानसभा की शांति और सद्भाव समिति को 15 अक्तूबर तक फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अजित मोहन के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई न करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने समिति द्वारा मोहन को उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगों पर गवाही देने के लिए जारी समन के खिलाफ दायर याचिका पर विधानसभा अध्यक्ष को भी नोटिस जारी किया। समिति कथित नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले में सोशल मीडिया के इस प्लेटफॉर्म की भूमिका की जांच कर रही है।
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ में फेसबुक और उसके उपाध्यक्ष की याचिका पर विधानसभा सचिव व अन्य को नोटिस जारी करते हुए एक हफ्ते में जवाब देने को कहा है। पीठ ने कानून एवं न्याय मंत्रालय, गृह मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, लोकसभा तथा राज्यसभा को उनके महासचिवों के माध्यम से और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किए। पीठ ने इन सभी से जवाब मांगे हैं।
पीठ ने कहा, जब तक इस मामले का निपटारा नहीं हो जाता तब तक समिति की बैठक नहीं होगी। समिति की बुधवार को बैठक होनी थी और इसमें अजित मोहन को तलब किया गया था। इसके बाद समिति ने बैठक टाल दी। विधानसभा समिति के चेयरमैन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ को आश्वस्त किया कि मामले का निपटारा होने तक कार्रवाई नहीं होगी। अगली सुनवाई 15 अक्तूबर को होगी।
समन की भाषा और आपकी बात के तेवर अलग हैं
सुनवाई के दौरान सिंघवी ने पीठ से कहा, अजित मोहन को बतौर आरोपी नहीं बल्कि बतौर गवाह समन भेजा गया। समिति यह देखना चाहती है कि कहीं दंगों के दौरान फेसबुक का दुरुपयोग तो नहीं किया गया? कई गवाहों ने कहा है कि फेसबुक का दुरुपयोग हुआ। समिति इसके लिए तंत्र विकसित करने के मकसद से फेसबुक से बात करना चाहती हैं। इस पर पीठ ने कहा, समन की भाषा और जो बातें आप कह रहे हैं, दोनों के तेवर अलग हैं।
समिति को समन भेजने का अधिकार ही नहीं है
इससे पहले अजित मोहन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी ने कहा, समिति को फेसबुक इंडिया के अधिकारी को समन करने का अधिकार नहीं है। साल्वे ने कहा, समिति द्वारा यह कहना कि पेश न होने पर कार्रवाई होगी, सीधे धमकी है। अगर उपाध्यक्ष को जबरन बोलने के लिए मजबूर किया जाता है तो यह अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन है। वहीं, रोहतगी ने कहा कि 31 अगस्त को समिति के चेयरमैन राघव चड्ढा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिल्ली दंगों में फेसबुक की सहभागिता की बात कही थी। उन्होंने कहा कि 18 सितंबर को जारी समन में कहा गया है कि समिति के समक्ष उपस्थित न होने पर उसे विशेषाधिकार हनन माना जाएगा और कार्रवाई की जाएगी, ऐसा उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।